Book Title: Mahimna Stotra Tika
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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यात्वमेवप्रायःचेतनत्वेनैवमोक्षयोग्यत्वात्परमात्यानमभ्युपगमादित्यर्थः ननुजमार्गसतितविहा यकुटिलमार्गमजंते ऋजुमार्गस्यैवशीप्रफलदायित्वात् इत्यतआह प्रभिन्न प्रस्थानेइदंपरपथ्यम दम्परंपथमितिचरुचीनविचिच्यात्तस्मिन्शास्त्रप्रस्थानेइदमेवश्रेष्ठमिदमेवममहितमितिइच्छावि शेषाणामनेकपकारत्वात् माग्भावीयत्तत्तत्कर्मचासनावशेनऋजुत्वकुटिलत्वनिश्चयासामर्थ्या रुचीनांचित्र्याजुकुरिलनानापथजुषांनृणामेकोगम्यस्त्वमसिपयसामर्णव इव कुटिलेपिऋजुन्यांत्याप्रवर्ततइत्यर्थः प्रस्थानभेदमेवदर्शयति त्रयीसारख्ययोगः पशपतिमतंवैष्णवमिति सर्वशास्त्रोपलक्षणमेतत् तथाहि त्रयीशब्देनवेदत्रयवाचिनातदुपल क्षिताअष्टादशविद्याभण्याविवक्षिताःतत्रऋग्वेदोयजुर्वेदःसामवेदोथर्ववेदइतिवेदाश्चत्वारः शिन क्षाकल्पोव्याकरणनिरुक्तंछंदोज्योतिषमितिवेदांगानिषद पुराणानिन्यायोमीमांसाधर्मशास्त्रा For Private and Personal Use Only

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