Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobabirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रथमेऽणु.
वर्मकथा.
श्रीगुणचंद दाकालाणुरुवपयट्टियनयमग्गो रजभरं समुषहर, तस्स य विसयसुहमणुहवंतस्स समुप्पन्नो पुत्तो, कयं च से हरि- महावीरच० दत्तोत्ति नाम, तस्स य राइणो सयलरजवावारनिरूवणनिउणो असेसनीइसत्थवियक्खणो वेसमणो नाम अमचो, ८प्रस्तावः
सो य लद्धपसरत्तणेण एवं परिभावेइ-जइ किंपि अंतरं पावेमि ता इमं रायं वावाइऊण सयमंगीकरेमि रजं, ॥२९५॥ किमणेण साहीणेऽवि सामंते दासत्तकरणेणं १, तहावि केणवि उवाएणं एयस्स राइणो पढमं ताव पुत्तं विणासेमि
पच्छा एस सुहविणासो चेव होहित्ति परिभातो अवरंमि वासरे कइवयपहाणपुरिसपरियरिओ गओ उजाणं, उव-18 विट्ठो तरुवरच्छायाए, अह खणंतरं अच्छिऊण कवडेण सहसत्ति उडिओ तहाणाओ भासमाणं च परियणं निवारिऊण उड्डाहो निनिमेसेण य चक्खुणा गयणमवलोइऊण परमविम्हयमुवहतो नियपरियणं भणिउं पवत्तो-भो! भो! किं निसामियं किंपि तुम्भेहिं एत्थ ?, तेहि भणियं-सामि! किमिव ?, अमच्चेण भणियं-आगासे वच्चंतीहिं देवीहिं| इमं जंपियं-जहा एस राया नियपुत्तदोसेण मरिहित्ति, एयं च निसामिऊण अणुकूलभासित्तणं सेवगस्स धम्मोत्तिकलिऊण तयणुवित्तीए भणियं परियणेण-सामि! बाढं निसामियं, केवलममंगलंति काऊण पढमं चेव न कहियं, जइ रे जणगणिबिसेसस्स सामिसालस्सवि एवं होही ता पजत्तं मे जीविएणंति वागरिऊण अमचेण आयट्टिया कजलपुंजसामलुम्मिलंतकंतिपडला खग्गधेणू, समाढत्तं कवडेण नियपोद्दवियारणं, तओ कहकहवि बला मोडिऊण बाहुं परियणेण उहालिया खग्गधेण, नीओ मंदिरं, उम्भडकवडसीलयाए य परिचत्तपाणभोयणसरीरसकारो जरसि
॥ २९५॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696