Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
किं बहुणा ? - जइ पडइ सिरे वज्जं सयणोऽवि परंमुहो हवइ लच्छी । बच्चइ तहावि अलियं कहमवि नाहं वइस्सामि ॥ ६ ॥ इति निच्छयं काऊण भणिओ सो सेट्ठिणा नराहिवो - जं इमे वरागा निजामगा जंपति तं सचं, मम भाया पुण अलियवाइत्ति, इमं च सोच्चा तुट्ठो राया चिंतिउं पयट्टो-अहो अज्जवि एरिसा सच्चवाइणो दीसंति जे नियसहोयरसिरीविणासेवि नियमज्जायं न चयंति, ता मंडिजइ एवंविहेहिं कलिकालेऽवि भूमिमंडलति परिभाविऊण आहूया निज्जामगा, सरोसं तज्जिया य, जहा रे दुरायारा! जइ कहवि अमुणियपरमत्थेणं मम वणिएण तहाविहं जंपियं ता किं वयणछलमेत्तेणवि अणेगभंडभरियवोहित्थं घेत्तुं उवद्विया ?, एवमाई िवयणेहिं निम्भच्छिऊण किंचि दाऊण निवाडिया, दवसारंपि समप्पियं सच्चसेट्ठिस्स, बलदेवोऽवि भणिओ-मा पुण एवं करेज्जासु, इय अलियवयणपरिहारकारिणो इह भवेऽवि जणपुज्जा । हुंति नरा परलोए लीलाए जंति निवाणं ॥ १ ॥ इइ बीयमणुखयं२ भणियं नीयमणुवयमेत्तो तइयं अदत्तदाणवयं । साहिज्जइ सयलाणत्थसत्यनित्थारणसमत्थं ॥ २ ॥ तं पुण दुविहमदत्तं थूलं सुडुमं च तत्थ सुहुममिणं । तरुछायाठाणाई अणणुन्नायं भयं तस्स ॥ ३ ॥ अहसंकिलेस भवं जं निवदंडारिहं च तं थूलं । सचित्ताइतिभेयं धूले गिहिणो हवइ नियमो ॥ ४ ॥ एत्थ उ अप्पडिवन्ने जे दोसा ते जणेऽवि सुपसिद्धा । वहबंधतरुलंबणसिरच्छेयाई चोराणं ॥ ५ ॥ पडवन्नेऽवि एत्थं भवभयभीरुत्तणं परिवहंतो । सुस्सडो अइयारे पंच इमे वज्जइ सयावि ॥
६ ॥
For Private and Personal Use Only
%%%%%

Page Navigation
1 ... 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696