Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

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Page 617
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंडविसुद्धी सुत्तत्थचिंतणं गुरुकुले सया वासो । अणवरयं तवचरणमि उज्जमो कोहचाओ य ॥३॥ गामकुलाइसु पडिबंधवजणं उत्तरोत्तरगुणेसु । अन्भुजमो य निचं बाढं संसारनिवेओ ॥४॥ जहठियजिणमग्गपरूवणा य सत्तेसु करुणभावो य । करणाण निग्गहो तह सतत्तपरिभावणं निचं ॥५॥ इय आजम्मं सुंदर! सुणि धम्मस्स (मुणिधम्मसमग्ग)साहणविहाणं। अचंतमपमत्तेहिं कीरमाणं सिवं देह ॥६॥ एवं मुणीहिं कहिए संवड्डियगाढधम्मपरिणामो । वसुदत्तो भणइ लहुं भयवं! मह देह पवजं ॥ ७ ॥ ताहे मुणीहिं भणियं जणणीजणगाणणुण्णवणपुवं । पवजापडिवत्ती जुजइ नेवऽण्णहा काउं ॥८॥ ता सकुडुंबं मोयाविऊण दिक्खं पयजसु जवेण । सपणाणफलमिमं चिय जं चाओ सबसंगस्स ॥९॥ । एवं मुणीहिं वागरिए गओ सो अम्मापिऊण सगासे, कहिओ नियचित्तपरिणामो, तेहिं भणियं-पुत्त! भुत्तभोगो 8 पच्चजं गिण्हेज्जासि, अणुच्चयाइणा सावगधम्मेण ताव अत्ताणं परिकम्मेसु, तओ सो तेर्सि अप्पत्तियपरिहरणट्टया| दासाहूण समीवे पढंतो गिहत्थवित्तीए चेव अच्छइ, पवजागहणनिच्छएण जोवणत्थोऽवि नेच्छइ परिणे, तं च तहाविहं पेच्छिऊण जणणीए भणिओ वसुदेवो-एस पुत्तो तवस्सिजणसंसग्गीए वासियहियओ नावेक्खइ विसयपडि| वत्ति न मन्नइ दारपरिग्गहं नायरइ सरीरालंकरणं, ता पजत्तं धम्मियसेवाए. सबहा खिवसु एवं दुललियगठिाए, जइ पुण तहाविहसंसग्गीए भावपरावत्ती जायइत्ति, पडिस्सुयमेयं सेटिणा, तओ जे वाणियगा पुत्ता समाणजाइ FACASSEURORSE ( AACARA For Private and Personal Use Only

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