Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

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Page 671
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ESSALA सिट्ठो पुखुत्तो कुहिवुत्तंतो, तं च सोचा सुमरियपुत्वभवो साहुरक्खिओ परं निवेयमावनो संसारवासस्स । अन्नया य तप्पुन्नपन्भारसमागरिसिओब समागओ विजयघोसो नाम सूरी, पउरलोगेण समं सो गओ तवंदणत्थं, सविणयं पणमिऊण निसन्नो गुरुचलणंतिए, सुया धम्मदेसणा, तहाविहकम्मक्खओवसमेण जाओ से देसविरहपरिणामो, पडिवन्नो य सूरिसमीवे दुवालसरूवो सावगधम्मो, अन्नया य अट्ठमीए कओ अणेण पोसहोववासो, इओ य ४ कप्पसमत्तीए विहरिया सूरिणो, सो य पारणगदिवसे पोसहं पाराविऊण उचियसमए अतिहिसंविभागं काउमणो पढिओ य साहुसमीवे, गेहाओ नीहरंतो य भणिओ जणणीए-वच्छ! कहिं वचसि?, भुंजेसु ताव सिद्धं वट्टइ, साहुरक्खिएण भणियं-अम्मो ! अतिहिसंविभागवयं पडिवजिय कहं गुरुणो असंविभाइय सयं भुंजामि, ता वाहरामि ताव साहुणो, तीए भणियं-पुत्त ! विहरिया अन्नत्य भयवंतो किं न याणसि तुमं १, एवं तीए कहिए गहिओ सो रणरणएण समाहओ सोगेणं पारद्धो अरईए, नियत्तिऊण य पडिओ मंचिए, चिंतिउमाढत्तो य कह पोसहोववासो को मए ? कह व विहरिया गुरुणो। अन्नं चिंतियमन्नं च निवडियं मंदभग्गस्स ॥१॥ अहवा मरुत्थलीए किं कप्पतरू कयावि उग्गमई । मायंगमंदिरे वा छज्जइ अइरावणो हत्थी? ॥२॥ आजम्मरोरगेहे विसट्टकंदोदलविसालच्छी । लच्छी कयावि पविसइ करयलरेहंतसरसिरुहा ? ॥३॥ AS AGUASCARACHA For Private and Personal Use Only

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