Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 670
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद दिट्ठो, अइकतेसु य कइवयवासरेसु सो मरिऊण पाउन्भूओ तीए सेद्विणीए गम्भे, जाओ य पडिपुनदियहेहि, कयं । अतिथिमहावीरच० बद्धावणयं, समागओ राया सह वसुमईए देवीए, कयमुचियकायचं सेटिणा, तं च देवकुमारोवमं दारयं पेच्छिऊण| संविभागे ८ प्रस्तावः भणियं देवीए-भो जिणमइ ! पेच्छ अच्छरियरूवं कम्मपरिणई, साधुरक्षित॥३२८॥ कथा. नीणंतपूयपवहो भीसणवणनिस्सरंतकिमिजालो । मच्छीहि भिणिभिणंतो सडियंगुलि गलियनासोट्ठो ॥१॥ एवंविहो वराओ तुज्झ गिहे पवरविहवकलियम्मि । उववन्नो कयपुनो सो कोट्ठी कह विसिटुंगो ॥२॥ सेडिणीए भणियं-देवि ! एवंविहे संसारविलसिए परमत्येण न किंपि अच्छरियमत्थि, जओ-कम्मवसवत्तिणो पा-12 [णिणो केण केण पयारेण न परिणमंति?, देवीए जंपियं-एवमेयं, अह अइकते वारसाहे कयं से नामं साहुरक्खियत्ति,8 कालेण य पत्तो कुमारभाव, गाहिओ कलाओ, संपत्तजोवणो सोहणंमि तिहिमुहुर्तमि परिणाविओ इन्भकन्नगं, | विवाहपजंते य समाहूओ सेट्टिणा देवीए समेओ राया, पूइओ पहाणरयणाभरणवत्थसमप्पणेण, पाडिओ ताण चल-18 नाणेसु नववहूसणाहो साहुरक्खिगो, सो य देवीए सहासं भणिओ-बच्छ! पेच्छ तं तारिसं इमं च एरिसं, साहुर-15 क्खिएण भणियं-अंब! न याणामि इमस्स अत्यं, एवं च तेण कहिए हसियं सहत्थतालं परोप्परं देविसेट्ठिणीहि, ॥३२८॥ दूतओ रन्ना जंपियं-सेट्ठि! किमयाओ हसंति?, सेटिणा भणियं-देव ! अहंपि सम्मं न याणामि, अओ ममावि कोउगं, पुच्छउ देवो, तओ पुच्छियं रत्ना-देवि ! किमेवं तए वागरियं?, सबहा साहेहत्ति वुत्ते तीए| HARSAASARGAON For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696