Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
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श्रीगुणचंद महावीरच
८ प्रस्तावः ॥ ३३० ॥
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जयगुरुणा उबट्ठे तहत्ति पडिवज्जिऊण जहागयं पडिगओ राया नमंतमउलिमंडलो, देवलोगं पट्टिया आखंडला, विकंता पढमा पोरसी । अह चारणगणेहिं थुवंतो जयगुरू सिंघासणाओ समुट्ठिऊण पुत्रं चिय सुरविरइयंभि देवच्छंदर्यमि सुहसेज्जाए निसन्नो । गोयमसामीऽवि कप्पोत्तिकाऊण भगवओ मणिपायपीढासीणो घम्मदेसणं काउमारद्धो । सो य केत्तियं पुचभवाई साहइ ? केरिसो वा लक्खिजइ ?, तत्थ भन्नई
भवे साहइ जं वा परो उ पुच्छेज्जा । न य णं अणाइसेसी वियाणई एस छउमत्थो ॥ १ ॥ असुरसुरखयरकिन्नरनर तिरिया मुक्कसेसवावारा । सवणंजलीहिं तद्देसणामयं परिपियंति दढं ॥ २ ॥ आइक्खर गणनाहो धम्मं ता जाव पोरिसी बीया । पच्छा पइदिणकिचं सामायारिं समायरह ॥ ३ ॥
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एवं च समइते कवि वासरेसु एयंमि वासरे सिंहासणे निसन्नस्स वद्धमाणस्स नियनियट्ठानिविट्ठे चउविदेवि देवनिकाए पंजलिउडं पज्जुवासमाणे य सेणियमहानरिंदे एगो सुरो मायासीलयाए कुट्ठिरुवं विविऊण सरसगोसीसचंदणरसच्छडाहिं सरीरविणिस्सरंतपूयसंकाकारिणीहिं भयवओ समीवमल्लीणो चलणकमलविलेवणं काउमारद्धो, तं च तहाविहं दुर्गुछणिजरूवं पेच्छिऊण चिंतियं सेणिएण-अहो को एस दुरायारो गलंतगाढकोढसुढियसरीरदुग्गंध गंधवाहेण दूर्मितो सयलंपि परिसं भुवणेकगुरुणो समीवद्विओ एवं अच्चासायणं कुणइ ?, अहवा कुणउ किंपि ताव उट्टियाए पुण परिसाए अवस्सं मए निग्गहियवोचि विकप्पंतेण छीयमाणेण
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गणधरदेशना दर्द|रांक देवा
गमः
॥ ३३० ॥

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