Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

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Page 690
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्ताव: इन्द्रप्रार्थना निर्वाणं च. KARNER ॥३३८॥ जस्सट्टाए कीरइ पुरमंदिररजलच्छिसंचागो । मुच्चइ सिणेहबंधुरबंधवजणगाढपडिबंधो ॥१०॥ आयाविजइऽसइ गिम्हुम्हवण्हिसंतत्तसकरुक्करे । भूमीयलंमि हिमकणदुविसहे सीयकालेऽवि ॥ ११ ॥ अँजिज्जइऽसइ सुदूंछतुच्छमरसं च भोयणं पाणं । निवसिजइ भीमसुसाणसुन्नगिहरनमाईसु ॥ १२॥ सेविजंति पइदियहमेव वीरासणाइठाणाई । छट्ठमाइदुक्करतवचरणाई पि कीरंति ॥ १३ ॥ अहियासिज्जइ नरतिरियदेवविहिओवसग्गवग्गोऽवि । न गणिजइ दुविसहो परीसहाणं पबंधोऽपि ॥ १४ ॥ तिहुयणपणमियचलणो भवभयमहणो जिणो महावीरो। उभउचिय एगागी तं मोक्खपयं समणुपत्तो ॥१५॥ सत्तहिं कुलयं ।। अह सवेऽवि सुरिंदा चरविहदेवेहिं परिवुडा झत्ति । चलियासणा वियाणियजिणनिबाणा समोइना ॥ १६ ॥ विगयाणंदा बाहप्पवाहवाउलियनयणपम्हंता । जगनाहस्स सरीरं नमिउमदूरे निसीयंति ॥ १७॥ अह सोहम्माहिवई गोसीसागरुपमोक्खदारूहि । नंदणवणाणिएहिं चियमेगते रया चित्ता ॥ १८॥ अह सुरहिखीरसायरजलेण ण्हविऊण जिणवरसरीरं । हरिचंदणोवलितं नियंसियामलदुगूलं च ॥१९॥ सट्ठाणपिणद्धविचित्तरयणकिरणुब्भडाभरणरुइरं । सिवियाए संठवित्ता नेइ चियाए समीवंमि ॥२०॥ अह देविंदेसु जयजयारवं निन्भरं कुणंतेसु । कुसुमुक्करं मुयंतेसु सबओ खयरनियरेसु ॥२१॥ P॥३३८॥ BOARA For Private and Personal Use Only

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