Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

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Page 679
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हारजजरियसरीरो सुहज्झवसायवसेण मओ समाणो ददुरके विमाणे देवत्तणमुप्पो , अवहिमुणियपुववइयरो य मम वंदणत्थं आगओ। ता देवाणुप्पिया! न एस कुट्ठी, किंतु-सुरोत्ति ॥ | सेणिएण भणियं-भयवं! कीस पुण इमेण मया छीए भणियं-जीव, अभयकुमारेण छीए-जीव वा मर वत्ति, कालसूयरिएण छिक्किए-मा जीव मा मर, तुभहि छीए भणियं-मरसुत्ति, जयगुरुणा जंपियं-सुणासु एत्य कारणंतुमं हि जीवमाणो रजसुहमुव जसि, मरणे य नरयं गमिस्ससि, अओ अणेण महाणुभावेण भणियं-जीवसुत्ति । अभयकुमारोऽवि धम्मनिरतत्तणेण सावजवजणरई ता तस्स जीवमाणस्स रायलच्छिभोगो मयस्सवि सुरसोक्खलाभो, अओ जंपियं जीव वा मर वत्ति, कालसोयरिओऽवि जीवमाणो अणेगनिरवराहपाणिगणघायणण बहुं पायमजिणइ, मओ पुण नियमा नरयगामी, तेण भणियं-मा जीव मा मरत्ति, अवि य अइदुटुकम्मवसओ अवस्स गतव नरयठाणेण । नरनाहाईण परं जीवियमेकं हवइ सेयं ॥ १॥ तवनियमसुट्ठियाणं कल्लाणं जीवियंपि मरणंपि । जीयंतऽजंति गुणा मयावि पुण सोग्गई जंति ॥२॥ अहियं मरणं अहियं च जीवियं पावकम्मकारीणं । तमसंमि पडति मया वेरं वहृति जीवंता ॥३॥ जं च मए छीयंमि मरसुत्ति भणियं तत्थवि इमं निमित्तं-तुम किमिह मचलोए विविहावयानिवासभूए वससि ?, जन माणुस्सं विग्गहमुज्झिऊण एगंतसुहं सिवं गच्छसित्ति । ACCHECCARRORISSACRACK For Private and Personal Use Only

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