Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

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Page 669
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अवराहो?, दुप्पडियाराणि पावकम्माणि एवंविहाहि विडंबणाहिं कयस्थिति निस्सरणं पाणिगणं, देवीए भणियंअलमुच्चावयभणियवेणं, भो महाणुभाव ! साहम्मिओत्तिकाऊण प्रयणिजोसि तुमंति ता साहेसु-किं ते पियं की. रउ?, तेण जंपियं-किमेत्य कायवं अत्थि?, पुर्वि दुच्चिन्नाणं कम्माणं फलविवागमणुहवंतस्स समाहिमरणं चिय में पत्थियवं, तंपि भागविवजएण दुर्लभं व लक्खिजइ, ताहि भणियं-कहमेवं जाणिजइ?, कुट्टिणा भणियं-अहं मंदभग्गो, अइसइणा भणियं-जहा तुम मरणकाले सम्मत्तं वमिहिसि तेणेमं जाणामि, चित्तसंतावं च उवहामि, ताहि जापय-भद्द! तुह जइ एवं ता विसममावडियंति. एवं च खणमित्तं विगमिऊण विम्हियमणाओ गयाओ है ताओ सगिहं । अन्नंमि य वासरे चउनाणोवगओ सूरतेओ नाम सूरी समोसरिओ, तओ सेट्टिणी देवी य गया| तबंदणत्थं, सुया धम्मकहा, पत्थावे य पुच्छियं ताहि-भयवं! पुवं चेइंए गयाहि अम्हेहिं जो कुट्ठी दिट्ठो सो कीस संमत्तं मरणसमए वमिही', सूरिणा भणियं-सो पजंतसमए माणुस्सेसु आउबंध काऊण उप्पजिही, न य गहियसम्मत्तो अणंतरभवे मणुअत्तं तिरियत्तं वा पावइ, जेण भणियं| सम्मट्ठिी जीवो विमाणवजं न बंधए आउं । जइ उ न संमत्तजढो अहव न बद्धाउओ पुद्धिं ॥१॥ रायपत्तीए भणिय-कहिं पुण सो उववजिही?, सरिणा जंपियं-एयाए सेट्रिणीए पुत्तत्ताएत्ति, एवं सोचा वि-11 |म्हियाओ वंदिय सूरि नियत्ताओ ताओ सगि निरूवाविओ भाविपुत्तसिणेहेण सो कोट्ठी सेट्टिणीए, न य कहचि For Private and Personal Use Only

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