Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

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Page 630
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ ३०८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr ताव तेसिं संकहा, संपइ कालोचियं कहसु, तओ सुचिरं कइयवेण सिरं धुणिऊण भणियं तेण-सेट्ठि ! जर अवस्समेयस्स दोसस्स पडिविहाणं काउमिच्छसि ता निविवरविसिद्धसुसिलिट्ठकट्टघडणाए मंजुसाए अभितरंमि एवं नियधुयं पक्खिविऊण सयलभूसणसणाहं सुमुहुत्तंमि दिसिदेवयाप्यापुरस्सरं जमुणानईजलंमि पचाहिज्जासि, जेण सेस हजणस्स जियरक्खा भवइति, तओ गुरुवयणं न अन्नहा जायइत्ति कलिऊण भयभीएण अविमंसिऊण तदभिप्पायं कालक्खेव परिहीणं जहुत्तसमग्गसामग्गिपुरस्सरं नियधूयमन्तरे पक्खिवित्ता सुहंकरमुणिणो समक्खं दुस्सहवच्चविओगसोगसंभाररुद्धकंठेण अणवरय गलंतनयणबाहप्पवाहपक्खालियगंडयलेण पवाहिया सेट्टिणा जमुणाजले मंजुसा, सा य तरमाणा अणुसोएण गंतुमारद्धा, तेणावि सुहंकरेण आनंदसंदोह सुबहंतेण निययासमंमि गंतूण भणिया नियसिस्सा - अरे तुम्हे सिग्धवेगेण गंतूण कोसमेत्तंमि नइहेद्वभागंमि ठायह, तरमाणि च मंजूसं इंतिं जया पासह तया तं गिहिऊण अणुग्धाडियदुवारं मम पणामेज्जहत्ति सोचा गया ते, ठिया य जहुत्तठाणंभि, सा य मंजूसा कलोलपणोलिजमाणी जाव गया अद्धकोसमेगं ताव नइजले मज्जणलीलं कुणमाणेण एगेण रायपुत्त्रेण दूराओ चिय पलोइया, भणिया य नियपुरिसा- अरे घावह सिग्धवेगेण, गिण्हह एवं वारिपूरेण हीरमाणं पयत्थंति, पविट्ठा य वेगेण पुरिसा, गहिया अणेहिं मंजूसा, समप्पिया य रायपुत्तस्स, तेणावि उग्घाडिया सको उहल्लेण, पाया- लकन्नगद्य सवालंकारमणहरसरीरा नीहरिया तत्तो सा जुवई, गहिया य सहरिसेण रायपुत्त्रेण, चिंतियं चाणेण अहो ! For Private and Personal Use Only तुर्याणुत्रते सुरेन्द्रदत्त कथायां शुभंकरारूपानं. ॥ ३०८ ॥

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