Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

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Page 651
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --CRACKERALA म आभरणाणि, निवेइयं च रनो, अह भयसंभंतमणो राया सयमेव परियणसमेओ तस्स सगासोवगओ कयंजली भणिउमाढत्तो-भो भो सद्धम्मपरेकचित्त! जं निन्निमित्तमवि मोहा एवंविहं अवत्थं उवणीओ तं खमसु मज्झ, एवं च सुचिरं पसाइऊण करेणुगाखंधे समारोहिऊण य महाविभूईए पवेसिओ नयरे पालओ, जहोचियं तंबोलाइणा संमाणिऊण पेसिओ सगिह, परितुट्ठो जेट्ठभाया, कयं वद्धावणयं । अवरवासरे य पालगेण भणियं-हे भाय! सचन्नुधम्ममाहप्पमेयं जं वसहमुत्तमेत्तेणवि तुह पसंतो जलोयरवाही, ममावि निकारणमेव कणयसिंहासणत्तेण परिणया सूलिगा, पहारावि जाया आभरणत्तणेणं, ता मुचउ गेहवासवासंगो, अंगीकीरउ एत्तो सबविरई, को हि नाम मुणियामयपाणगुणो विससलिलं पाउमुच्छहेजा?, रविणा भणियं-एवं होउ, तओ ते दोवि थेराणं अंतिए पञ्चजं गहाय समाराहियसंपुन्नसमणधम्मा सुरसिवसुहमायणं जायत्ति ॥ इय इंदभूइमुणिवर ! बीयगुणवयमिमं विनिद्दिडं । एत्तो तइयं वोच्चइ अणत्थदंडस्स विरइत्ति ॥१॥ सो पुण अणत्थदंडो नेअबो चउविहो अवज्झाणो। पमयायरिए हिंसप्पयाण पावोवएसोय ॥२॥ कंदप्पे कुक्कुइए मोहरियं संजुयाहिकरणं च । उवभोगपरीभोगाइरेगयं चेत्थ वजेइ ॥३॥ जेऽणत्थदंडविरया न हुंति तेऽणत्थगाई जंपंता । पार्वति धुवं मरणं लोइयकोरिंटंयमुणिव ॥४॥ जो पुण एसो कोरिटंगो मुणी जह व मरणमणुपत्तो। तह संपय सीसंतं सर्व गोयम ! निसामेसु ॥५॥ RRCROREA ५४ महा• For Private and Personal Use Only

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