Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
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ARMEREKARMACARA
कओ सागरदत्तेण दिसिगमणसंखेवो, जहा अज अहोरपि न गेहाओ वाहिं नीहरिस्तामित्ति, एत्थ य पत्थावे चरणट्ठया गया ते जचतुरगा, हरिया दोहिं चोरेहि, तदवहरणं च निवेइयं रक्खगेहिं सागरदत्तस्स, तेणावि नियधम्माणुहाणनिच्चलचित्तत्तणेण निसामिऊणवि न दिन्नं पचुत्तरं, सयणवग्गोवि लग्गो जंपिउं-अहो सागरदत्त ! किमेवं कट्ठसमो मोणमवलंबिय चिट्ठसि ? न धावसि चोराणुमग्गओ, जओ गोसामिए उदासीणे तयणुचरा कह पयर्टति ?, सागरदत्तेण भणियं-होउ किंपि, न विराहेमि मणागपि नियवयं, तओ निच्छयमुवलम्भ रोसेण जहागयं पडिनियत्तो |सयणवग्गो, इओ य-ते दोऽपि तकरा पिट्ठओ कुडियमित्तमपेच्छमाणा निब्भया निरुविग्गा गंतुं पयत्ता, गच्छंताण |य नीसेसतुरगगहणलोभदोसेण समुप्पन्नो दोण्हंपि परोप्परं वहपरिणामो, तओ भोयणसमए पविट्ठा एगंमि गामे, |कारावियं रंधणीगिहेसु पुढो पुढो थालीसु भोयणं, पक्खित्तं च अणलक्खिज्जमाणेहिं तत्थ दोहिवि महाविसं, सिद्धे य भोषणे कयतकालोचियकायबा अमुणियावरोप्पराभिप्पाया उवविट्ठा भोयणं काउं, अह पढमकवल-18 कवलणेऽवि अभिभूया ते विसविगारेण, निवडिया महीयले, कओ महाणसिणीए कलयलो, मिलिओ गामलोगो, क|हिओ अणाए वुत्तंतो, ते य विसाभिभूया गया तक्खणमेव पंचत्तं, तुरंगमाथि निस्सामियत्तिकाऊण रक्खिया गामजणेण, इओ य-सागरदत्तो पडिपन्नंमि देसावगासियनियमे जिणबिंबपूयापडिवर्ति काऊण कइवयपुरिसपक्खितो चलिओ तुरयाणुमग्गेण, अचंतविसिट्ठसउणोवलंभे य जायलाभनिच्छओ समुप्पन्नचित्तुच्छाहो अविलंबि
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५५ महा०
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