Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
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SARAGAURAT
नईओ, नवहरियसद्दलं जायं धरणिमंडलं, नियनियगेहाइसु अल्लीणो पहियसत्थो, वहलचिक्खल्लोलत्तणेण दुग्गमी
या भूमिमग्गा, तओ सो गंतुमसमत्थो तत्थेव य छाइऊण ठिओ, अन्नदिवसे य चरमाणाणं तुरंगमाणं अणुमग्ग-18 | लग्गो जाव कित्तियंपि भूभागं वच्चइ ताव गिरिगुहागओ एगचलणोवरिनिहियसवंगभारो धम्मनिचओव मुत्तिमंतो है उवसंतपरोप्परवेरेहिं हरिहरिणसहलसूयरपमुहतिरिएहिं परिचत्तचरणपाणिएहिं उवासिजमाणो चउमासतवोविसेसं
पडिवन्नो दिट्ठो अणेण अजसमिओ नाम चारणो मुणिवरो, तं च दहण परमविम्हयमुबहतेण चिंतियं सागरदत्तेणअहो अच्छरियमच्छरियं जमचंतदुदृसत्तावि एवमेयं महामुणिं पजुवासंति, न सचहा हवइ एस सामन्त्रविक्कमो, ता |दसणमयि एयस्स पवित्तयाकारणं, किं पुण विसेसर्वदणंति समुच्छलियनिन्भरभत्तिपन्भारनिस्सरंतरोमंचो समीवे गंतूण पंचंगपणिवायपुरस्सरं निवडिओ से चलणेसु, मुणिणावि उस्सग्गं पाराविऊण भवोत्तिकाऊण धम्मलामेण पडिलामिओ एसो, तओ हरिसवियसियच्छिणा भणियं सागरदत्तेण-भयवं! किमेवं अइदुक्करं समायरह तुम्भे तवं ? किं वा निवसह एवंविहे एगंतवासे?, को वा फलविसेसो एयस्स दुरणुचराणुट्ठाणस्स ?, मुणिणा भणियं-भो महाणुभाव! एयरस अवस्सविणस्सरस्स सरीरस्स एस चेव लाभो जमणुद्विजइ संजमो, एसो य मणसो एगत्तीकरणमंतरेण न सम्म तीरइ काउं, अओ एगंतवासो सुतवस्सीहिं सेविजइ,जं च तए भणियं-किमअस्स फलं?, तत्थ सुंदर ! निसामेसु ।
नरतिरियाइदुग्गइनिवायसंभवसुतिक्खदुक्खाई। दोगचवाहियेयणजरमरणपमोक्खवसणाई ॥१॥
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