Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 659
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ACCUSAGARCACARA एवं वुत्तोपि न जाव कंपिओ सो तया महासत्तो । ताव परुदो देवो गइंदरूवं विउचे ॥३॥ तयणंतरमुल्लालियपयंडसुंडो घणोब गजंतो। वेगेण धाविऊणं गेण्हइ तं सावयं झत्ति ॥४॥ सबत्तो गत्तं विवेई चलणेहिं पक्खिवइ गयणे । तत्तो निवडतं पुण पडियच्छइ दंतकोडीहिं ॥५॥ एवं बहुप्पयारं तं पीडिय कुणइ भुयगरूवं सो । पच्छा तिक्खाहिं दढं दाढाहिं तणुं विदारेइ ॥६॥ तहविहु अखुम्भमाणे गिहिप्पहाणमि कामदेवंमि । रक्खसरूवं काउं उबसग्गं काउमारद्धो ॥७॥ अह खणमेगं घोरट्टहासकरतालतालणं काउं । परिसंतो सो तियसो भत्तीए तयं इमं भणइ ॥८॥ भो कामदेव ! सावय तियसोऽहं तुज्झ सत्तनाणट्ठा । एत्थागओ महायस ! ता पसिय वरेसु वरमेत्तो ॥९॥ थेवोऽविहु उवयारो विहिओ तुम्हारिसे गुणनिहिमि । अस्संखसोक्खखंधस्स कारणं होइ निभंतं ॥ १०॥ एवं भणिओऽवि सुरेण सायरं वरमुणिव थेवपि । जाव न स कामदेयो कहमवि पचुत्तरं देह ॥ ११॥ ताव नमंसिय चरणे उक्वित्तिय गुणगणं च से तियसो । परमच्छरियमुवगओ जहागयं पडिनियत्तो य ॥ १२ ॥ इयरोऽवि धम्ममाराहिऊण तइए भवंमि निषाणं । सायत्ताणंदमुहं पाविस्सइ निहयकम्मंसो ॥ १३ ॥ इय जइ गिहिणोऽवि समुज्जमंति धम्ममि निचला धणियं। ता उज्झियगिहवासा तवस्सिणो किं पमायंति? ॥१४॥ एवं वीरेण जिणेसरेण जइणो पडुच वागरिए । सविसेससंजमुजयचित्तो जाओ समगसंघो ॥ १५ ॥ ANACAS For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696