Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 657
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KARANASANSACRECOR पुणरसं विरसमारसंतो बला चेव पक्खित्तो विवरम्मि पायिओ य विणासंति । अह सवत्यवि नयरे वित्थरियं जहा कवालियतबस्सी। नियजीहादोसेणं पंचत्तं पाविओ विवसो ॥१॥ ताहे सबोऽवि जणो भासागुणदोसचिंतणुजुत्तो । सुमुणिव संपयत्तो किमसकं मरणभीयाण ? ॥२॥ इय तुज्झ मए कहिओ गोअम ! उच्छिखलुलवणरूवो । जमदंडोव पयंडो अणत्थदंडो दुहोहकरो ॥३॥ तिनिधि (एयाई मए) भणियाइं गुणवयाई एताहे। चत्तारिवि सीसंती (सिक्खाई) निसुणसुतं गोअमसगोत्त!॥१॥ सावजेयरजोगाण वजणासेवणोभयसरूवं । सामाइयंति तेसिं पढमं सिक्खावयं होइ ॥२॥ मणवयणकायदुप्पणिहाणं इह जनउ विवजेइ । सयकरणयं अणवट्ठियस्स तह करणयं च गिही ॥३॥ सामाइए उजुत्ता अविचलचित्ता सुरोवसग्गेऽवि । होति भवपारगामी सत्ता नणु कामदेवोध ॥४॥ जह कामदेवसहो संमत्तं पाविमो ममाहितो। सामाइऍ निकंपो सुरोवसग्गेऽवि तह सुणसु ॥५॥ चंपानयरीए विजियमंडलो जियसत्तू नाम राया, कामदेवो सेट्टी, नियनियकम्मसंपउत्ता कालं वोलिति, अन्नया |य गामाणुगाम विहरतो अहं तत्थ समोसढो, तओ उजाणपालगेहिं विनत्तो राया, जहा-देव ! भवियकमलबोहणदिवायरो चरिमतित्थयरो सहसंबवणुजाणे समोसढोत्ति, एवं सोचा रना दिन्नं तेसिं महंतं पारिओसियं, दवाविओ नयरीए पडहगो-जहा नायकलकेउणो महावीरस्स भगवओ वंदणत्थं पत्थिवो निग्गच्छह, ता भो For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696