Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 665
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir %AUNSAHSALAMAUSHAN अच्चंतभवविरत्तचित्तो सबन्नवइटपरमत्थभावियमई जिणदासो नाम सायगो, नायव पडिकूलचारिणी मंगलमुत्तिव तिवरागाणुगया मंगला नाम से भारिया, सो य बहुसो सामाइयपोसहतयोविसेसनिसेवणाभिरओ पवजं पडिवजिउकामो वलतुलणं करेइ । सा य से भारिया अचंतसंकिलिट्टयाए उक्कडवेयत्तणेण समणं व तं विजियमयणवियारमवलोइऊण फरसगिराए निभच्छंती भणइ हे मुद्ध ! धुत्तलोएण वंचिओ तंसि विजमाणेवि । जो भोगे वजित्ता अविजमाणं महसि मोक्खं ॥१॥ निलक्षण! दुरणुचरं तवोविसेसं निसेविउं कीस । सोसेसि नियसरीरं? किं अप्पा वेरिओ तुज्झ ? ॥२॥ जइ तं विसयविरत्तो पढम चिय तान कीस पचइओ । जाओ? जमिण्हि मं परिणिऊण एवं विडंबेसि ॥३॥ अह तं ममनिरवक्खी जहाभिरुइयं करेसि एवं च । अहमवि तुह निरवेक्खा जं भावइ तं करिस्सामि ॥ ४॥ एवं तीए मजायवजिए जंपियंमि जिणदासो । उवसमभावियचित्तो महुरगिराए इमं भणइ ॥५॥ भद्दे ! सद्धम्मपरम्मुहासि निम्मेरमुल्लवसि तेण । तुच्छेऽवि विसयसोक्खे कहऽन्नहा होज पडिबंधो! ॥ ६॥ थोयं जीयं जरमरणरोगसोगाऽणिवारियप्पसरा । एवं ठिएवि कह सुयणु! कुणसि तं विसयवामोहं? ॥७॥ तीए(ता) भणियं होउ अलं तुज्झ सद्धम्मदेसणाए ममं । सयमवि नट्ठो दुच्चे ! चिट्ठ अन्नपि नासेसि ॥८॥ इय तीए दुट्ठनिहरमुहीए दुविणयमूलभूमीए । निभच्छिओ समाणो जिणदासो मोणमल्लीणो ॥९॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696