Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

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Page 628
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ ३०७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कज्जसेसं काऊण समागओ तस्समीवं, निवडिओ तस्स चलणेसु जोडिय करसंपुढं च भणिउमादतो भयवं । पसायं काऊण साह, किं कारणं भोयणं कुर्णतेहिं तुम्हेहिं तिक्खुत्तो दुस्सहदुक्खावेगसूयगो इव सिकारो विमुकोत्ति ?, सुहंकरेण भणियं-भो महाणुभाव ! किं साहिज्जइ ?, एरिसा चेव हयपयावइणो रुई, जं सवं चिय रयणं सोवद्दवं निम्मवेइ, तहाहिसयलकलानिलयस्स य गयण सरोवरसहस्सपत्तस्स सुरलोयभवणमंगलकलसस्स पइपक्खं खओ कओ निसायरस्स, नीसेस तिरियलोयपईवस्स कमलसंडजडखंडणेक्कपथंड किरणस्स भयवओ मायंडस्स अणिवत्तयउग्गाढकुट्टदो सेण विणासिया चरणा, अणेगरयणसंभारभरिय गंभीरकुच्छिभागस्स महाजलुप्पीलपवाहिय विवरं मुहसरियासह स्सस्स सायरस्सवि अणवरयसलिलसंहारपच्चलो निवेसिओ कुच्छिमि वज्जानलो, एवं च ठिए वत्थुपरमत्थे किमत्थि कहणिज्जं ? - को वा वोढच्चो चित्तसंतावो ?, सेट्टिणा भणियं भयवं ! न मुणेमि किंपि गंभीरवयणेहिं, ता फुडक्खरं साहेह, किमिह | कारणं?, सुहंकरेण भणियं -कहेमि, अलाहि एत्तो जंपिएण, नियमज्जायाविधाय परिहारसमुज्जओ चेव जइजणो होइ, एवं भणिऊण डंभसीलयाए समुट्ठिऊण गओ सो निययासमपयं, सेट्ठीवि अयंडविड्डरसूयगं से वयणं निसामिऊण संखुद्धो परिभाविउं पवत्तो - अहो तिकालगयत्थपरिन्नाणनिउणेण महातवस्सिणा अणेण नूणं अम्ह किंपि गाढमावयावडणमवलोइऊणवि चित्तपीडापरिहरणट्ट्या न य पयडक्खरेहिं समुल्लवियं कज्जतंतं, ता जावज्जवि न समुप्पज्जइ कोऽवि अणत्थो ताव तं मुनिवरं गाढाणुरोहपुत्र गमापुच्छिऊण जहोचियमायरामित्ति चिंतिऊण गओ तस्स आसमं, For Private and Personal Use Only तुर्याणुत्रते सुरेन्द्रदत्त कथायां शुभंकरा ख्यानं. ॥ ३०७ ॥

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