Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीगुणचंद महावीरच० ८प्रस्ताव:
इच्छाऽपरि
माणे वासवदत्तदृष्टान्त,
॥३१४॥
CAMERA
अरे! कहं मइ जीवंते असामियंति वुच्चइ ?, किमहं कुवलयचंदसेद्विणो पुत्तो वासवदत्तो तुब्भेहिं नो सुणिो न वा दिवोत्ति बुत्ते कि रे! मिच्छा पलवसित्ति निभच्छिऊण कंधराधरणपुवयं निद्धाडिओ सो तेहिं मंदिराओ, गओ य एसो सयणाणं समीवे, तेहिवि मा पुवदेयं दवं मग्गिस्सइत्ति कुविगप्पेण पञ्चभिजाणंतेहिवि न नयणमेत्ते, णावि संभाविओ, गहिलोत्ति कलिऊण रत्नावि उवेहिओ।
अह गेहसयणधणनासपमुहदुहजलणजालपजलिओ। सो चिंतिउं पवत्तो विवन्नलायन्नदीणमुहो॥१॥ कह अकलियपरिसंखं पुरिसपरंपरसमागयं दबं? । कह वा सभुयबलेण य विढत्तयं तं च अइबहुयं ॥२॥ एकपयं चिय सचं निन्नहूँ मज्झ मंदभग्गस्स? । हा! किं करेमि संपइ ? पुवं व हवेज कह व धणं?॥३॥ एमाइविचित्तविकप्पकप्पणुप्पन्नचित्तवामोहो । उम्मत्तयं उवगओ हिंडंतो नयररत्थासु ॥४॥ चिरकालमाउयं पालिऊण बहुरोगसोगसंतत्तो । अट्टज्झाणोवगओ मरि तिरियत्तणं पत्तो ॥५॥ इय गोअम! जीवाणं परिग्गहारंभविरइरहियाणं । निवडंति आवयाओ जं तेणेमं गुणकरंति ॥६॥ पंचवि अणुवयाई सोदाहरणाई ताव कहियाई । एत्तो गुणवयाई तिन्निवि लेसेण साहेमि ॥१॥ उड्डाहोतिरियदिसिं चाउम्मासाइकालमाणेणं । गमणपरिमाणकरणं गुणवयं होइ पढममिह ॥२॥ बजइ उड्ढाइक्कममाणयणप्पेसणोभयविसुद्धं । तह चेव खेत्तबुद्घि कहिंवि सइअंतरद्धं च ॥३॥
ROCHAKRONACROSACCORREC
॥३१४॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696