Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobabirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीगुणचंद द अच्छिउमचायतो सारधणं करितुरयसाहणं च समादाय पलाणो रयणीए, मुणियवित्तंतो य अमच्चो लग्गो तस्स द्धार महावीरच०
माणे जिनअणुमग्गेण, नासंतो य दस जोअणे गंतूण वेढिओ सबतो अमच्चसेन्नेण, तओ सो सीहसेणो वहलतरुवरगहणमि गिरि८ प्रस्तावः
पालितज्ञातं निकुंज निस्साए काऊण ठिओ, इओ य जिणपालिओ पुवावासियसिविरसंनिवेसं पत्तो समाणो दिसिपरिमाणं चिंति॥३१५॥ 8ऊण भणइ-अहो किमहमिहि करेमि?, पन्नासं जोयणाई मे परिमाणं, तं च इत्तियमेत्तेणं चिय पडिपुन्नप्पायं, सेनं ।
|च दसहि जोयणेहिं दूरीभूयमियाणि, ता वलिस्सामि पच्छाहुत्तं, न कोसमेत्तंपि एत्तो पच्चिस्सामि, सहाइणा बलियलोगेण भणियं-अहो! मा मुहा अत्यहाणि करेहि, तत्थ गयस्स तुह पभूयदविणलामो जायइ, तेण भणियं-अलाहि तेण दवेणं जं नियमखंडणाए संपज्जइ,
अह तस्स नियमनिचलचित्तपरिक्खट्टया सुरो एगो । कयउन्भडसिंगारो सवत्तो पुरिसपरिअरिओ ॥१॥ सत्थाहिवरूवघरो सुरलोआओ समोअरेऊणं । पचासन्नो ठाउं गयंपिउं एवमाढत्तो ॥२॥ हंहो सावय ! नो कीस एसि तं सप्पिविक्कयनिमित्तं? | जिणपालिएण भणियं वयभंगो हवइ जइ एमि ॥३॥
॥३१५॥ देवेण जंपियं सुख वंचिओ तंसि धुत्तलोएण । जो कुग्गहेण हारसि करट्ठियपि हु महालाभं ॥४॥ अहवा वयस्स भंगे पावं होइत्ति तुज्झ संकप्पो। ता तल्लाभेणं चिय पायच्छित्तं चरेज्जासु ॥५॥ जिणपालिएण वुत्तं अहो किमेवं अणग्गलं वयसि ?। वञ्चति धम्मगुरुणो कयाई किं भवसत्तजणं? ॥६॥
RECRUGRLSOCIAACAMACAD
CRICAAAAKARANAS
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696