Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 622
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद रणंतमणिकिंकिणीमणहरवेजयंतीविराइयसुरमंदिरसमुत्तुंगसिंग सिंगारुब्भडरूवरामागणोवसोहियं विजयपुरं नाम चतुर्थाणुमहावीरच०६ नयरं, तर्हि च समग्गनरिंदवग्गपणयसासणो सिवभद्दो नाम नराहियो, सयलंतेउरप्पवरा रायसिरी नाम से भारिया, ते सुरेन्द्र८प्रस्ताव: तेसिं च देवकुमारोवमरूवो धणुवेयपमुहकलाकोसलपडिहत्यो सुरिंददत्तो नाम पुत्तो, सो य पुत्वभववालगिलाण-18 दत्तकथा. ॥३०४॥ गुरुथेरतवसुसियमुणिजणवेयावच्चावजियपुन्नपन्भारवसविढत्तगाढसोहग्गोदएण पढमुम्मिलंतजोवणगुणतणेण य अचंताभिरामसरीरो जत्थ जत्थ परिब्भमइ तत्थ तत्थ परिचत्तवावारंतराहिं अवगणियगुरुजणलजाहिं अणवेक्खियकुलाभिमाणाहिं नयरनारीहिं अणमिसच्छीहिं पिच्छिज्जइ, बाढमब्भत्थिजमाणो य सेडिसत्थवाहप्पहाणजणजुबईहिं सद्धिं सद्धम्मपरम्मुहो अभिरमइ य, लोगोवि एयमत्थं जाणमाणोऽपि जे चेव रक्खगा तेऽवि लुंपगत्ति चिं-18 तंतो न किंपि जंपइ। अन्नया य नयरंमि जाओ अचंतचोरोवद्दयो, तओ पउरजणेण साहियं नरिंदस्स, तेणावि तजिओ आरक्खिगो, कया य सबप्पएसेसु जामरक्खगपरिखेवा, रयणीए सुत्तपमत्तारक्खिगनिरिक्खणत्थं कयवेसपरावत्तो पाणिपरिग्गहियखग्गो एगागी सयमेव निग्गओ गेहाओ तियचउक्कचच्चराइसु परिम्भमिउमारद्धो य, तहा भमंतस्स य रणो विजणंति पढियमेगेण थेरपुरिसेणं ॥३०४॥ चोरोहिं गेहसारो, हीरइ कुमरेण नयरतरुणिजणो । एवं विहरक्खाए नरिंद सिवभद्द ! भई ते' ॥१॥ CRAC RSS For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696