Book Title: Mahavir Chariyam
Author(s): Nayvardhanvijay
Publisher: Ahmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 582
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० प्रस्तावः गोशालकस्य विमलवाहनभव:, ॥२८४॥ अकोसेही एगे उवह सिही तदपरे महापायो । अन्नेसि निग्घिणमणो काराविस्सइ छबिच्छेयं ॥ २॥ एगेसिं हरिस्सइ वत्थपत्तकंबलपमोक्खमुवगरणं । अन्नसिं समणाणं वारिस्सइ भत्तपाणंपि ॥३॥ अन्ने निवासिस्सइ नियनयरपुरागरासयाहिंतो। अन्ने पुण मारिस्सइ सत्थेहि लहू सहत्थेण ॥४॥ इय एवंविहमसमंजसं तओ पेच्छिऊण पउरजणा । भत्तिविणउत्तिमंगा तं एवं विनविस्संति ॥५॥ देव ! न जुत्तं सोऽपि एयमचंतमजससंजणगं । समणाण धम्मविग्यो जं एवं हवइ तुह रजे ॥६॥ दुट्ठाण निग्गहो सिपालणं नियकुलकमायरणं । रायाण एत्तियं चिय सलहिजइ किंथ सेसेहिं ? ॥७॥ एकमकित्ती सवत्थ तिहुयणे उन्नमइ महापावं । अन्नं चिय रजखओ हीलिजंतेसु समणेसु ॥८॥ अन्नं च-जइ देव ! कहव कुप्पंति तुम्ह समणा इमे समियपावा । ता सयलंपिवि रटुं दहति हुंकारमेत्तेण ॥९॥ एएसिं पभावेणं धरति धरणिं सुहेण नरवइणो । एत्तो चिय मजायं जलनिहिणोऽवि हु न लंघंति ॥ १०॥ ता देव ! विरमसु धुवं तवस्सिजणपीडणाओ एयाओ। अकलंकचिय कित्ती जह वियरइ तिहुयणे तुम्ह ॥ ११ ॥ इय पुरजणेहिं सुवहुप्पयारवयणेहिं वारिओ संतो। भावविरहेऽवि सो तं पडिसुणिही तयणुवित्तीए ॥१२॥ अन्नया य सो रहवरारूढो निग्गच्छिही, इओ य सुभूमिभागे उजाणे तिनाणोवगओ विउलतेउलेसामाहप्प-| दुद्धरिसो विविहतवचरणनिरओ सुमंगलो नाम तबस्सी आयाविस्सइ, सो य राया तेणप्पएसेण वचमाणो! PRAKACHCANCE ॥२८४॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696