Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh, 
Publisher: Nag Prakashan Delhi

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Page 655
________________ श्रीमन्महाभारतम् ।। श्लोकानुक्रमणी ६५० रणे विनिहतं श्रुत्वा (द्रोण) ७२.५७ रन वलसंधाता (मौ) ५.६ रत्या मत्या च गत्या च(सभा)७६.२० रयनागाश्वकसिलं (भीष्म) ६३.४ रवमन्वानयत्तस्मै (द्रोण) १४७.४६ रणे विव्याध सप्तत्या (कर्ण) २६.३५ रनश्रङ्गी मगो भूत्वा(वन) २७८.१२ १२ रथ आरोप्यतां (उद्योग) ८३.१२ रवनागाश्व कलिला (द्रोण) १९३.११ रयमश्वसमायुक्तं दत्वा (अनु) ६४.३४ रणषु कदन कृत्वा (शांति) १७.२८ रत्ना करास्तथा (भीष्म) ११.१४ रष एकगुणो मर जय (उद्योग)१७१२३ रखनागाश्वकलिला (वन) २५२.४६ रथमादित्यसङ्काशमा (वन) २३१-६४ रणे हते कौरवाणां (उद्योग) ४८.३६ रत्नानां विविधानां च (द्रोण) ५७.६ रय एष महाराज (उद्योग) १६७.२६ रथनागाश्वकलिला (विरा) ३१.१० स्थमारूहे वीरो (कर्ण) ५८.५६ रणेऽहन्य पुत्रस्त (शल्य) १०.६७ रत्नानि गा: सुवर्ण च (विरा)३४.१२ रथक्षिप्तमहावां (द्रोण) १५६.१७५ रथनागाश्वकलिलां (विरा) ३८.१२ रथमारोप्य कृष्णेन यत्र (आ) २.२३६ रणय प्रवितते (उद्योग) १५७.४ रत्नानि च महाहाणि (आ) १७५.१२ रपया रिपघोषं तु तं श्रुत्वा (वन) ७१.२५ रचनागाश्वमनुजानद (द्रोण) ४१.१३ रथमारोप्य ताः कन्या (मा) १०२.१२ रतानि चान्यानि च (द्रोण) ८.२९ रलानिय मणिय) ४१.३२ षषोष तु त श्रुत्वा (वन) १६.६ रखनीहानि देहांश्च हताना(स्त्री)१५. रयमारोपयामास (विरा) ३३.५६ रतायाश्चाप्यहः पुत्रः (आ) ६६.२० रत्नानि च विचित्राणि (शांति) ४२.३ रथघोषः स संग्रामे (कणं) ७६.१६ रथनेमिनिकृतष (भीष्म) ११७.५४ रथमार्गप्रमाणं तु कौन्तेयो (द्रोण)६६.४ रताहं च्यवने पत्यो (वन) १२३.१२ रत्नानि चाप्युपादाय (आ) १२७.११ स्थघोषश्च बलवान (विरा) २३.१४ रथनेमिनिनादैश्च (उद्योग) १०.११ रथमावार्य गदया केशवं (द्रोण)९३.६४ रतिपुत्रफला नारी (उद्योग) ३९.६७ रत्नानि निधयः सर्व (कर्ण) ८७.४२ रथोषेण नादयन् (द्रोण) ५८.२ रथनेमिसमुन्दूतं नि: (शल्य) २२.४४ रथमास्थाय रुचिरं (उद्योग) १७८.७४ रतिस्तुष्टि नतिः (आश्च) ५२.१३ रत्नानि परीपादाय सभा रषघोषेण महता नादय(द्रोण) १६२.५४ रथनेमिस्वनायव घण्टा (वन) १६६.३ रथं च दिव्याश्वयुजं (आ) २२५.१० रलगालपरिक्षिप्तं (वन) १६०.४४ रत्नानि मक्तामणि शिस्य) रथचक्र च कर्णस्य (द्रोण) १८६.५३ रथनेमिस्वनैश्चात्र (द्रोण) १९६.२१ रथं च वारयामास (भीष्म) ९२.६ रत्नदानं च सुमहत्पुण्य (अनु) ६५.२६ रत्नानि यस्य वीर्येण (वन) १४१.१७ रथचक्र प्रगृह्माजी (द्रोण) १६७.११ रथंतर मत्र बृहच्च गीयते (अनु) १०२.५४ रथं च स्वं समास्थाय (द्रोण) २५.५६ रत्नद ममयश्चित्र (वन) १७३.२ रत्नान्योषधयो दुग्धं (द्रोण) ६६.१६ रथचर्यास्त्रमायाभि (द्रोण) ४५.२४ रयन्तरथ तपसः (वन) २२०.१६ रथं चाग्न्यं हेममालावनद्ध (द्रोण)२.२७ रत्नप्रभूतो रत्लाङ्गो (अनु) १७.१२४ रत्नैः प्रलोभयामासु (आ) २०६.१२ रथज्यातलनिर्वािण (कर्ण) ८७.६ रथन्तरेण तं तात (आश्व) ११.१६ रथं चान्यं समास्थाय (द्रोण) १३६.२४ रत्नभाजं च दाशाह (सभा) २४.३६ रत्नश्च बहुभिस्तत्र (सभा) ३५.१२ रथ द्विरद पत्यवानेकः (कर्ण)२०.१७ रथन्तर्या सुतान्पञ्च (आ) ९४.१७ रथं चान्यः सुबहुभिश्चके(द्रोण)९२.७० रलभाजो हि राजानो (समा) १५.२० रत्नैः स्त्रीभिस्तथा (वन) ३००.१७ रचनागहयावर्ता (भीष्म) ११२.२६ रथबन्धमिम घोरं (कर्ण) ५३.२१ रथं तत्रैव सन्त्यज्य (भीष्म) १०१.२६ रलभूमि प्रदद्यात्तु (अनु) ६६.३२ रत्नोपकीर्णा वसुधा (अनु) ६२.६० रथ नाग या वीर यशस्या(कर्ण)६०.७२ रथभङ्गो बभूवास्य (द्रोण) ६.२ रथं तमागतं दृष्ट्रा दक्षिणं(विरा)४६.६ रत्नं च यन्मरुत्तेन (आश्व) ६३.२ रनौषधिसमेतेन (उद्योग) १२६.१४ रथनागाश्यकलिलं (कर्ण) ६१.१. रयमण्डलमार्गेषु (होण) १२.११ रथं तं तु समालक्ष्य प्राद्रव (वन)१६६८ रत्नरातिविशीर्णोयं (वन) ६५.१७ रत्ययंमिसम्बन्धादन्यो(शांति)३०५.२० रखनागाश्वकमिलः (द्रोण) १२०.२६ रवमन्यं समास्थाय (द्रोण) १३२.५ रथ तु दिव्यं कौन्तेयः (उद्योग) ५६.३ For PRESPersonal use only

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