Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh, 
Publisher: Nag Prakashan Delhi

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Page 745
________________ भीमन्महाभारतम् :: लोकानुज्यनी स गत्वा राजवचनाद् (आश्रम) ११.२ स गाढविद्धः कुद्धश्च (होण) ४५.२१ स गृहीत्वा वसुमतों (वन) १४२.४७ संकर्षण महावीर्य त्वां (वन)१४१.२० संकोच्यायकरान्भीताः (बा) ७६.३० स गत्वा विविधाच्छे (आ) १७७.११ स गाढविद्धो बलवान् (दोण) ११४.६८ स गृहीत्वा सुमनसो (आश्व) ६५.४ संकर्षणाच्च प्रद्युम्नो(शांति)३३६.४१ संक्रद्धो भरतश्रेष्ठ (भीष्म) ६१.२० स गत्वां विषमं घोरं (उद्योग) ६६.१७ स गाडबिद्धो बलिना (द्रोण)१२२.५६ स गुरुं पार्थ कस्मात्त्वं (कर्ण६.२८ संकर्षणो वासुदेवो (आ) १८६.१७ संक्रमा मेदिताः सर्वे (वन) १५.१५ स गत्वा शिविरं तेषां (सौप्तिक) ४.१४ स गाढविद्धो व्यथितः (द्रोण) १६.४ सगुहायां शिरो (शांति) ११२.१० संकल्पनो मित्रवर्गों (शांति)२९८.३८ सक्रान्तभोग इव (कर्ण) ८३३८ स गत्वा हवनीयेऽग्नी (अनु) ६३.५६ स गाढविडो व्यथितः (भीष्म) ६४.२३ स गृह्यान्स रहस्यांश्च (अनु) १३०.४ संकल्पदंशमकं शोक (आश्व) २७.१ संकुदः कृष्णसहितः (भीष्म) ४६.१४ स गत्वा हास्तिनपुर (सभा) ३४.१ स गाढविद्धो व्यथितो (द्रोण) ११४.६५ सगोत्रां वाऽसगोत्रां (गांति) ३२०.६१ संकल्पनियमो पेतः (अनु)- १०.२२ सक्रुद्धयोमहापोर (उद्योग) ६.५१ स गत्वैतदुपाध्याया (वन) १९२.४७ स गाढविद्धो व्यथितो(भीष्म) ७९.१९ म ७९.१९ स गौतमं पुरस्कृत्य (अनु) १०२.६२ संकल्पपक्षविक्षेपं बाह (विरा) ४५.७ संक्रुद्धः शकुनि षष्ट(शांति) १६६.१३ मतपको स गदा बहुधा दृष्ट्वा (वन) २४५.२२ स गाढविद्धो व्यथितो(भीष्म) ८३.५३ 4. सग्रामनगरा पार्थ ससागर(वन) ३७.६ संल्पप्रभवान (भीष्म) ३०.२४ सदश्चकदा स्वामा (शाति) ६.३२ स गाढवितो व्यथितो(भीष्म) ९२.४२ . सगदादीमसेनाद्वा(उद्योग) १६०.११२ सघण्टफलकाः सर्वे (उद्योग) १५५.६ संकल्पयित्वा त्रीन् (शांति) ३४५.१६ संक्रुदान पाण्डवानेको (द्रोण) ४३.१६ सगदाढ़ीमसेनाद्वा (उद्योग) १६१.३० स गाढवितो व्यथितो (भीष्म)९४.१६ सघण्टाश्चन्दनादिग्धाः (द्रोण) ८७.६ संकल्पसिद्ध पुरुष (उद्योग) ४५.१७ संक्रद्धाः सप्रधावन्त (वन) १०७.३१ संक्रदो जामदग्न्यस्तु(उद्योग) २८०.७ सगदानुद्यतान् बाहूना(भीष्म) ५५.२७ स गाढविद्धो व्यथितो (भीष्म)९४.३५ स घोररूपो व्यचरत्(सौप्तिक) ८.४७ संकल्पाजायते हर्षः (आश्व) २४.५ संक्रद्धोऽतिबलः संख्ये (वन) ११७७ सगवामयतां दृष्ट्वा (द्रोण) ४६.५ स गाढवेदनो धीमान् (आश्व) ७६.२३ स घोषः सुमहास्तत्र (भीष्म) ५१.२६ संकल्पनाथ योगेन (गांति) ३२३.१५ संऋद्धो भरतवंष्ठ (भीष्म) ११९.३० सगदायोगुडमासान् (द्रोण) ३६.२४ सगाढवेदनो हित्वा (विरा) १०.२७ स घोषो धार्तराष्ट्राणां(भीष्म)२५.१६ संकल्पेषु निरारंभो (शांति) १७.१३ सगाण्डिवव्यायतपूर्ण (कर्ण) ७९.८१ संकटद्वारकाणि स्युरुच्छ (शांति)५६.४४ संकल्प मनसा यज्ञं (आश्व) संक्रुद्धो महाराजो (शल्प) १२५६ ६.३ संक्रद्धो राक्षसस्तस्या (आ) १५३.१६ स गन्धर्ववचः श्रुत्वा (आ) १७४.१ स गां स्प.शतु पादेन (अनु) १३.११७ संकटेप्यस्य सुमहान्विवरो(वन)७५.१० संकषणानुजः (उद्योग) १५७.१६ संक्रुद्धो राक्षसो (भीष्म) ६४.५५ सगरं च महात्मानं (शांति) २६.१३० स गार्हस्थ्याच्युत (शांति) ३२०.१७४ संकपनष्टिनचरा (ोण) ३०.१७ संकामयिष्यसि जरा (आ) ८३.४१ संकद्धो वे महाराज (द्रोण) ४६.१४ १० स गिरिस्तपसा तस्य (अनु) १४०.११ संकरं कांस्यभाण्ड (शांति) २२०.११५ संकीर्णाचारधर्मषु प्रति (आ) ८४.१४ संक्लिष्टर्माणमति (उद्योग) ३७.३७ सगरान्तिकमागच्छत्त (वन) १०७.३४ स गिरीच्चाप्य (शांति) ३२५.१३ संकराश्चाभ्यवर्तन्त (शांति)२२८.६६ संकीर्णयोनिविप्राच अन संक्षये तु तथभूते वर्तमाने (द्रोण)६७.५ स गर्भ शिरसा देवी(शांति) १२२.१६ स गृहं घृतराष्ट्रस्य (उद्योग) ८६.११ सकरो नरकार्यव (भीष्म) २५.४२ संकुला च तदा भूमिश्च (टद्योग) ५.१७ संक्षेपो वर्तते राजन (भीष्म) १०.१५ स गर्मो दिव्य संस्थानो (अनु)८६.१२ स गृहस्थाश्रमरतस्तया (अनु) २.४० संकर्षणद्वितीयेन जाति (सभा) १४.३४ संकेते पिङ्गला (शांति) १७४.५७ संक्षोमश्चापि सत्वान (उद्योग) १०.४५ JainEducation International For Private Personel Use Only www.janelibrary.org.

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