Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh, 
Publisher: Nag Prakashan Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 789
________________ धीमन्महाभारतम् ।। श्लोकानुगमणी ७८४ सशङ्खघोषः सतलत्र (वन) २६८.१६ स शराचितसर्वाङ्गः (द्रोण) २६.१२ स शिष्यः प्राप्यः तत्सर्वं (द्रोण) १९४.७ स शङ्खी कवची वाणी(वन) १६८.८६ स शराचितसर्वांगः द्रोण) ३७.३२ स शीध्रतरमादाय (द्रोण) २१.११ स शत्रुणामुपरिच (अनु) ६६.३ स शरैः क्षतसर्वाङ्गः (कर्ण) १३.२६ स शीघ्रमचलप्रख्यं (शांति)३००.४१ स शत्रुनिहतः संख्ये (द्रोण) १९७.३६ स शरैः सर्वतो विद्धः (शल्य) १०.२५ स शीघ्रमामिना तेन (शल्य) ५४.४१ स शत्रुभिः परिवृतो (द्रोण) ५२.२८ स शरैः समवच्छन्नश्च (आव)७७.१३ सशीलयन्देवयानी कन्या (आ)७६.२५ स शत्रुसेनामभिभूय (विरा) ६७.२३ स शरौधादितो नागो (कर्ण) १२.३७ स शुश्राव महाबाहुः (वन) १०८.२ सशासनामवाजत्य (विरा) ६७.१२ स शल्यमभिवाद्याथ (भीष्म) ४३.७७ समृद्रः संशिततपाः (अनु) १४१.५८ स शत्रुसेना तरसा (विरा) ५४.१ सशल्यमा भाष्य कर्ण) ३७.१२ स शून्यमाश्रमं रम्यं (शांति) ४६.४१ स शब्दः प्रदिशः सर्वा (द्रोण) १८.३ सशल्यं पञ्चविंशत्या (भीष्म) ५५.६ सगरः क्षत्रियश्रेष्ठो (अन) १४७.३१ स शब्दम भवद्व्य (सौप्तिक) १४.१० स शल्येनाभ्युपगते (कणं) ३५.३४ स शूर सत्यवाक् (द्रोण) २१.३८ रा शब्दः सुमहान् (राजन्) १०४.२१ स शस्त्रवष्ट्याऽमिहत:(भीष्म)६४.४७ सरसेनाकास्नयन (सभा) ३१.२ स शब्दस्तुमुलः सं द्या (द्रोण) १६५.४८ स शापादऋषिमुख्य (शांत) ३४१.५४ १.५४ स शूललमिव हर्यक्ष बने(शल्य) १२.३ स शूललमिव हर्यक्ष बने(शल्य) १२.३ स शब्दो भरतश्रेष्ठ (द्रोण) ४१.२२ स शालिभवनं रम्य (उद्योग) ८४.१५ स शेते दिहतो भूमौ (भीष्म) १३.१३ स शब्दो भरतश्रेष्ठ (द्रोण) १०३.४७ स शाल्व इति विख्यात (आ) ६७.१७ सशेते निहतो भो भीष्म १४.१ स शरक्षयमासाद्य (द्रोण) १९१.१० स शाल्ववाण राजेन्द्र (वन) १७.१७ सशेषकारिणस्तत्र (शांति) १३३.२० स रारक्षयसासाद्य (मौ) ७.६२ स झाल्वं सौभनगरं (वन) २०.१० सशैलमासाद्य किरीट (वन) १६५.४ स शरः पण्डितं हत्वा (भीष्म)८८.२५ स शालस्कन्धशबलं (शल्य) ४६.८५ सजलं मानसं गत्वा (वन) २२३.६ स शरः प्रेषितस्तेन (भीष्म) ६३.५२ स शाश्वतीः समा राजन्(आ) ७५.३६ सशैलसागरचना (द्रोण) ७.३३ १ सशरं तदनुर्घोर (द्रोण) १९२.४७ स शिक्षितो नृत्यगुणान् (वन) ४४.११ स शोचत्यापदं प्राप्य(सौप्तिम) ६.२० स शरीरं समुत्सृज्य (वन) १००.१० स शिरांसि रणेऽरीणां (भीष्म) ४७.५ स शोचन्नरशार्दूलः (शांति) ६३.५७ स शोभमानो वरदः (कर्ण) ३४.६१ स संस्मरन् द्रोणमहं (कर्ण) ३७.१६ स श्राद्धयज्ञो ववृते (आश्रम) १४.७ ससंहाराणि सर्वाणि (विरा) ५८.७ स श्रुतर्वाणमादाय (वन) १८.७ स संहत्य प तत्कर्म(शांति) १४१.६६ स श्रुत्वा कटुका वाचो (शल्य) ३२.६ ।। स धुत्वाऽचिन्तयन्नेह (वन) १६२.८ स संख्ये निधनं प्राप्य(शांति) ६७.३० स श्रुत्वाध्यात्मनो देहं (आ) २४.१ स संगृह्य स्वयं वाहान् (कर्ण) ६४.२६ स श्रुत्वा निहतं कर्ण (कणे) १.१९ स संगृह्य स्वयं (भीष्म) ७५.३२ स श्रुत्वा माधवं यान्तं (उद्योग) ७.५ स संग्रामो महाराज (भीष्म) ८६.२८ स श्रृंगे प्रथमे दिव्ये (शांति) ३३३.८ स संज्ञामुपलभ्याण (भीष्म) १२०.२७ स श्वा प्रकृतिमापन्न (शांति) ११८.१ स श्वा प्रकृतिमापन्न (शाति) ११८.१ स संज्ञामुलभ्याध (आश्व) ७६.२५ स षष्टया सात्यकि (कर्ण) १३.२४ स सन्दीप्त महतमाति) ११ सष्टिप्रासासिनबराः (द्रोण) २७.२४ ।। स संधायमहास्त्राणि (कर्ण) ४६.४० स संरब्धः समावृत्य (उद्योग)१८४.१० स सन्धाय शरान् (भीष्म)११३.२१ स सरंभी दुरात्मा (सौप्तिक) १२.४१ स सन्नद्धो महाबाहु (द्रोण) १४.७३ स संवार्य बलौघांस्तान्(भीष्म) ६३.८ स सन्निपातस्तु तयो (कर्ण) ८६.६ स संवार्य रणे राजा (भीष्म) ८४.३ स सन्निपातस्तुमुल (द्रोण) १५३.१४ स संवृतः पिशाचाना (वन) २३१.२१ स सन्निपातस्तुमुलो (कर्ण) ५०.३५ स संशयं गमितः पांडव (कर्ण) ६५.७ स संनिपातो रथयधपा(कर्ण) ५७.१२ स संसुप्ती जले देवा (अनु) ८५.२५ स संनिमन्त्रयामास (वन) ५४.६ स संस्कृत्य नरश्रेष्ठ (भा) २.३५८ स संनिवर्ष मागम्य (वन) ३६.७ For Private Jain Education Internation www.iainelibrary.org Personel Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840