Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh,
Publisher: Nag Prakashan Delhi
View full book text
________________
भीमन्महाभारतम् ।। श्लोकानुगमणी
७१३ स विनिजित्य संग्रामे (सभा) २७.२६ स विसृष्टो महाराज (गल्त। ३५.८३ स वृष्णिनिलयं गत्वा (मो), ५.४ स वै मनुष्यतां गच्छेत (अनु)१४५.३५ सव्यसाचिनमासाद्य (द्रोण) १७०.५० स विनिः श्वर बहु गो (वन) ७०.७ स विस्फार्य धनुर्दिव्यं (अनु) ६५.१६ सवृष्णिभोजान्धकयो (वन) १२०.२० स वै यत्नेन महता (वन) १२७.३ सव्यसाचिन्महाबाहो (वन) ४१.३५ स विन्नरयो भीमो (द्रोण) १८५.२३ स विस्फार्य महच्चाप (द्रोण) ४३.६ स वेगवति कौन्तेय (वन) १६.१६ सबै यदा सत्त्वगुणेन शांति)२८०.३६ सव्यसचिवधाकांक्षी (द्रोण) १८३.५६ स विमुक्तो बलवता (द्रोण) १६२.३२ स विस्फार्य महच्चाप (भीष्म) ६५.७० स वेदनातर्तोऽम्बूदयिस्वनो (कर्ण)१८.१५ स वै रुद्रः स च शिवः (अनु) १६०.३६ सव्यसाची तु तं (वन) २७१.३६ स विराटस्य दुहितर (आ) ६५.८३ स विस्फुलिङ्गो दीप्ता (कर्ण) १५.२७ स वेदाध्ययने युक्तो (वन) ११६.१ स वै रुद्रः स च शिव(द्रोण)२०२.१०२ सब्यसाची तु संकद्धो(आश्व) ८२.१७ स विवर्ण कृशो दीनो (द्रोण) १५०.४ स विहायो व्यदधात् (अनु१५५.२७ सबैदिकश्चत्य इवाति (कणे) १०.८४ सवै विवदनाद्रीतः (सभा) ६८.६६ स व्यासवाक्यमुदितो (वन) ३६.४१ स विविन्ध्याय सकोध: (वन) १६.२६ सविहलाद्भिश्च गतासुभि कर्ण)१४:३ स वेदे मोक्षशास्त्रे च (शांति) ३२०.५ स वै विवस्त्रो विकटो (वन) ६२.६ सव्येन च कटीदेशे (आ) १६३.२, स विवृद्धस्तदा वह्निः (आश्रम)३६.४ स विहलः प्रहारेण (शल्य) ५७.५७ स वेपमान उत्थाय (उद्योग) १७६.२० स वै शाकरसं दृष्ट्वा (शल्य) ३८.४० सव्ये पाणी गृहीत्वा तु (वन) १२८.४ स विवृद्धो महावीयों (अनु) ८६.२६ स विह्वलितसर्वाङ्गः (कर्ण) ५४.२७ स वै किरीटं बहुरत्न (कर्ण) ६०.३६ सवै शोचामि सर्वान् (उद्योग) ५१.५२ सब्योरः कामिनीभोग्य (आ) १७.१० स विशोणाऽपतच्छलो(वन) २२५.३४ स विह्वलितसर्वांगः (द्रोण) ६१.२४ सवै कृत्वा मन: (उद्योग) १६०.१७ स वैश्यः क्षत्रियो (अनु) १४३.३५ सबीड ३ भवति हि (अनु) १०.५१ स विशेषमवर्तन्त (आधम) १.२७ स विह्वलो महाराज (शल्य) २८.१८ स वै कुद्धः सिंह (द्रोण। १७६.५२ सर्वश्रान्तः अधि तः (वन) १३.१६ स बीडया नम्रशिराः (कर्ण) ७०.३६ स विशेषात्वमोधाया:(द्रोण) १८२.१६ स वीक्षमाणस्तत् सन्य (वन) २८७.२ स वैकल्यं महत्प्राप्य(द्रोण) १३१.५८ सवै संपत्स्यते कर्ण (कर्ण) ५०.३० सशकवजाभिहतः (वन) १०१.१५ स विधान्तो महातेजा:(आप) ५९.२१ स वीतहव्यदायादरागत्य (अनु)३०.११ सवै क्षारकमादाय (शाति) १४३.१५ भायमाणो वन
सशकवहानवदत्य (वन) १५४.२३ स विश्व इति विख्यातो (आ)६७.३६ स बीरः सत्यवान् प्रज्ञो (द्रोण) १४.८ सवै तत्रावसद्रजा वैदर्भी (वन) ६७.६
बाबसद्रजा वदमा (वन) ६७.६ स वै सर्वेषु भूतेषु (शांति) २८०.२०
सशक्तिपासतूणीर (कर्ण)२०.१० ISANEY स वीर्यमदमत्तत्त्वाद् (शांति) ४.१३ सवै तथा वक एवाभ्य (वन) १३२.१२ सवै सृजति भूतानि शांति)२३२.१४ स विष्णु विक्रम (शांति) ९८.४३ स वृक्षस्तन दष्टस्तु (आ) ४३.५ सवै तस्यामवस्थायां(शांति)१९६.२१ मध्यानात तांस्तत विरा) १२.२ सशकचापप्रतिमन (कर्ण) ८२.२० स विष्णु शिरसा (उद्योग) १०५.२६ स वृत्तवांस्तेषु (वन) ११८.२ सवै धर्मो विप्रलब्धः (वन) ४.५ सयदेशे तु देवस्य ब्रह्मा (अनु) १४.२७६ स शकलोकगो नित्यं (अनु) १४२.५६ स विसृज्यश्रु नेत्राभ्यां(शांति) १४१.४६ स वृतो राक्षसोंर (वन) २६०.२ 'सवै निष्क्रम्य (शांति) २६.३२ सव्यं चक्र महीग्रस्तं (कर्ण) ९०.१०६ स शकलोके वसति पूज्य(अनु)६६.१६ स विसृष्टो बलवता (कर्ण) ५०.४६ स वृद्धवालमादाय (आ) २.३६० सवै पथि समागम्य (उद्योग) ८६.५ सव्यं तु मण्डलं तत्र (शल्य) ५७.२६ सशको ब्रह्मचारी (शांति) १२४.६० स बिसृष्टो बलाता (द्रोण) १७०.११ सवृद्धबालेष्वथवा (सभा) ३८.३२ स वै प्रविशमानस्तु (बन) १३६.१८ स व्यलीक परं प्राप्तो (वन) ६.१० सशङ्कमानस्तन्मिध्या(द्रोण)१६३.५४
in Education Intersalon
For Private
Personel Use Only
www
libraryong

Page Navigation
1 ... 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840