Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh, 
Publisher: Nag Prakashan Delhi

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Page 790
________________ बीमन्महामारतम् ।। श्लोकानुक्रमणी से संनिववृते श्रुत्वा (स्वर्ग) २.२८ स समाप्ययितः शको (वन) १०१.१२ स सम्पश्यन् गिरिनदी: (वन) १७८.६ ससर्ज वाणान्विशिखा (कर्ण) ८५.३६ स सागरं समासाद्य (वन) ११४.२ स सन्निवृत्तो धर्मात्मा (शांति) २.३१ स समानीय तान् सर्वान् (वन)१५८.२ स संप्रहाय शयनं राजन (विरा) १७.१६ ससर्ज भगवान् यत्र (शल्य) ४७.२३ ससागरवनामुवीं (उद्योग) ११२.७ स सत्त्वा गतसत्त्वाश्च(द्रोण) १४८.३८ स समान् विभजन (वन) १६३.३२ स संप्रहारस्तुमुलः (द्रोण) २०.२७ ससर्ज रोषात्सोमाय (शल्य) ३५.६२ ससागरः सगगनः (शांति) १८२.५ स सत्यजितमालोक्य (द्रोण) २१.२१ स समालोक्य दूरान् (वन) २०.१८ स संप्रहारस्तुमल (द्रोण) २५.३६ ससर्ज शूलं कोपेन (शांति) ३४२.११० ससागरः सगगनः (शांति) १८२.७ स सत्य भुजनिर्मुक्तो (द्रोण) ४६.१७ स समाविश्य च नल (वन) ५९.४ स संप्रहारस्तुमुलः (द्रोण) ८६.३ ससर्जेन्द्रजितः क्रोधा (वन) २८८.१८ ससागरांता धनुषा (आश्व) ३०.३ स सत्यसङ्गगतो भूत्वा (द्रोण) ४.१४ स समावृतविद्यो मां भक्तां(आ)७७.५ स संप्रहारस्तुमुल (द्रोण) १२०.२२ स सर्पसत्रात्किल नो मोक्ष (आ)४८.४ ससांख्य धारणं चैव(शांति) ३१७.२० स सत्यसन्धः स तथा(उद्योग) १४६.३३ स समाश्वास्यमानोऽपि (शल्य) १.६ स संप्रहारस्तुमुलः (भीष्म) ७०.१२ स सर्वतः परिवृतस्त्रि (भीष्म)८२.१३ स सात्यकि विभिर्वाणर(द्रोण) ४३.७ स सत्यसन्धः सुकृती (द्रोण) ६.३३ स समासाद्य तं नागं (द्रोण) २६.४१ स संप्रहारस्तुमुलः (वन) १६६.२२ स सर्वतः प्रेक्ष्य दिशो (कर्ण) ८६.९७ स सात्यकेराशु वचो (शांति) ४६.३३ स सत्यसन्धो बलवान् (द्रोण) १६.२२ स समासाद्य पौलस्त्य (वन) २८४.६ स संप्रहारस्तुमुलो (द्रोण) ११७.२ स सर्वत्र गतान् क्षुद्रान (वन) १६०.६७ स सात्यकेस्तु बलिन (द्रोण) १७०.३२ स सत्यसन्धो वीभत्सुः(उद्योग)१३७.६ स समासाद्य रजानं (शल्य) २१.८ स संप्रहारस्तमलो (द्रोण) १७२.३५ स सर्वदोषनिर्मुक्तस्ततः(आश्व)४२.६३ स सात्यवत्यामतिरथः (आ)२२१.६८ स सप्तदशकेनापि (शांति) ३५१.१६ स समासाद्य संग्रामे (कर्ण) ७७.५० स सम्प्रहारो ववृधे (वन) २६५.११ स सर्वयज्ञैरीजानी राजा(शांति)९७.६ स साम्राज्यं महाराज(सभा) १४.१० स सप्तभिः सप्तशर(भीम) ५६.१११ स समास्थाय मायां (द्रोण) १७८.१७ स संप्राप्य शुभान्कामान् (आ) ८५.७ स सर्वविदोपदी वीक्ष्य (वन) २५.६ स सायकः कर्णभुजव (कर्ण) १०.२८ स सभाद्वारमागम्य विदुर (वन) ६.३ स समिद्ध महत्वग्नी (वन) १३५.१७ स संभावय नागेन्द्र मणि(आ) २४.३२ स सर्वानाश्रमान गत्वा (वन) २६८.२ स सायकमयैर्जाले (द्रोण) १३२.२२ स सभा षोडशाष्टौ (आ) १००.२० स समीक्ष्य क्रमोपेत (उद्योग) १३५.६ स संमुङ,क्ते सहस्राणां (अनु)१५६.१६ स सर्वान्याधिवाजित्वा(आ) १.१२६ स सायकमर्जालरर्जुन (विरा)५८.२६ स समन्तात् परिवृतः (भीष्म)८६.१७ स समीक्ष्य महीपालः (बन)५४.८ स संभ्रमं ततस्तूर्ण (द्रोण) १६७.१० स सर्वाम्लेच्छन् पती (सभा) ३०.२७ स सायकमर्जालः (विरा) ६२.२ स समन्तात परिवतो(भीष्म) ११७.११ ससमुद्रगुहा तेन (वन) २००.७४ रा संभ्रममिदं वाक्यम् (द्रोण) १३०.४ स सव्यसाची गुप्तस्ते (शल्य)६२.२६ स सायकान्द्विजो (अन) १५.१० स समं धर्मकामावान् (आ) २२२.३ स समुद्रमभिप्रेक्ष्य शोका(आ)१७६.४८ स संभ्रम हषीकेशम् (कर्ण) ७०.५६ स सब्यसाची भीमेन (द्रोण) १८.१२ स साश्य व्यधमच्चापि(द्रोण)२००.४८ स समर्थोऽपि मोक्षाय (आ) १३३.१३ स समुद्रवनद्वीपनदीन (द्रोण) ६६.१४ स संवतस्तदा विप्रः (शांति) ३८.१६ स सहस्राचिषं देवं (शांति) ३३६.१३० स सिंह इव मातङ्ग (भीष्म) १०६.६२ स समागम्य शर्मिष्ठा (आ) ५२.२५ स समेत्य नमस्कृत्य देव (वन) ४७.२ स सरस्येव तं बाणं (द्रोण) ८१.१९ स सहायोऽसहायो वा (शांति) १५.२ स सिंह इव मातङ्ग (द्रोण) १४२.५६ स समाजजनः सर्बो (आ) १३६.७ स समेत्य महेन्द्राण्या (उद्योग) १८.४ ससर्ज तीर्थानि तथा (शल्य) ४७.२४ स साक्षादेव सर्वाणि (वन) ८६.१४ स सिंहदंष्ट्रो जानुभ्यां (द्रोण)११६.४२ For PrivalsPersonal use Dily www.ininelibrary.org

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