Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh,
Publisher: Nag Prakashan Delhi
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स नागः प्रेषितस्तेन (भीष्म) १५.३८ स नागभवने रात्रि (आ) २१४.३४ स नागराजः प्रवराङ (द्रोण) २६.६५ स नागराजः सनियन्तु (कर्ण) ८५.१८ स नागराजः सह राज (कर्ण) ८५.१४ स नागलोके संवृद्धो (भीष्म) १०.१० सनागस्यन्दनहयान् (द्रोण) ७२.७७ सनागाश्वमनुष्याणां (उद्योग) १९५.१८ सनातनस्त धर्मस्य ( आश्व) ६१.३४ सनातनानामपि शाश्वत (वन) २३२.१७ सनातन वै मधुहा (अनु) १४७.ε सनातन हि सङ्कल्पः (अनु) ८५.११ सनातनी महात्मानौ (उद्योग) ४९.२४ सनात्सनातनतमः (अनु) १४९.१०९ सनाथमिव मन्येऽहं भवतां (द्रोण ) ५.२ सनाथा पाण्डवा: (वन) १५१.१४ सनादान्विनदन्धोरान्ा (वन) १२.१०४ सनामायां सनामा स ( आ ) ३८.१५ सनाम्नी यद्यहं कन्यामुपल (आ) ४६.८ सनाम्नी या भवित्री (आ) १३.२६
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५९.२ १३०.४२
स नाम सम्यग्वर्तत (उद्योग) ७८.१८ स नायमफलो धर्मो (वन) ३१.३१ स नाराचगणैः पार्था (द्रोण ) १५६.१८० स निकृत्तं धनुद्दष्ट्वा (भीष्म) १०.६२ स निकृत्या जितो राजा (वन) ५२.५६ स निकृष्टां कथाप्राज्ञो (शांति) १२०.२१ स निगृह्यात्मनो दुःखं (वन) ७४.२४ स निगृह्यत्मनो दोषान् ( आश्व) ३१.६ स नित्यमन्तर प्युनिषधे (वन) स नित्यमाश्रमं गत्वा (आ) स नित्यमाश्रमं गत्वा (आ) स निनीषति दुर्बुद्धि (द्रोण) ७४.५ स निमन्जति कालस्य (शांति) ३१८.७६ सनिमित्तं विनष्टे तु (वन) १३५.५३ स नियाय महाबाहुः (सभा) २४.२९ स नियुक्तो मया व्यक्त (आ) १०५.१७ स निरीक्ष्य महाबाहुः सव (आ) १३६.६ सनिघता ज्वलन्त्यश्च (द्रोण) ८८.६ स निर्घातोऽभवद्भूभि (विरा ) ४५.३१ स निर्जित्य महीं कृत्स्नां (सभा) १२.१३
१६६.७
श्रीमन्महाभारतम् । श्लोकानुक्रमणी सनिर्भिद्य भुजं सव्यं (कर्ण) २७.१६ सनिभिद्य महात्मानं (शल्य) ११.३२ सनिर्भिद्य रणे पार्थ (द्रोण) १३४.९ सनिभिन्नः शरैर्घोरै ( भीष्म) १००.४३ सनिभिन्नो विविध (द्रोण ) १७९.५८ स निर्ययौ गजपुराद्याज (अनु) १६७.६ स निर्ययौ महातेजा (शांति) ६७.३० स निर्ययौ महाराज पिता ( भीष्म) ६६.५ स निर्ययौ महासेनो (शल्य) ४६.६३ स निर्विण्णस्ततो राजंस्तप (शल्य ) ४०.५ सनिवतं रथेनाशु पुनर्दा (वन) १८.३० स निवासोऽभवद्विप्र (वन) ४७.१३ स निवृत्तस्ततः कर्ण (द्रोण ) १८८.११ स निवृत्तो नरव्याघ्रो (विरा) ६६.८ सनिःशेष तदा चक्रे (मौ) स निश्चयमय कृत्वा (शांति ) २७१.४ स निश्चित्य ततः कृत्यं (वन) २७७.५३ स निष्क्रम्य ददी युद्ध (अनु) ३०.२० स नःसंज्ञो जलस्यान्त ( आ ) १२८.५५ स निस्तरति स्वर्गलोकं (वन) २००.३२
३.४६
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सनिस्त्रिशपुरोवातः (द्रोण ) ९५.१७ निहत्य बहुञ्छूरान (द्रोण) १६०.५६ स नीचैः प्रणतो भूत्वा (सभा) २४.४१ स नीललोहितो धूम्र: (कर्ण) ३४.५२ स नूनमृषभस्कन्धों (कर्ण) स नृत्यन्निव नागेन्द्रो (आश्व) स नृत्यन्वं रथोपस्थे (भीष्म) स नेमिघोषस्तनित (द्रोण)
६. ६५
७६.६ ५९.२२ १३६.३६
स नो जयस्य दाता ( भीष्म) १०७.५० स नो दास्यति सुप्रीतो (शल्य) ३०.३४ स नो दिष्टयास्त्र (द्रोण) १७.१४ स नोपृच्छद्द: खमूलमुक्त (आ) २१७.१६ स नो बहुमतान्राजा बुह्या ( आ ) ३७.१४ स नो मन्यामहे दृष्ट्वा (विरा) ३८.३८ स नो रक्ष्यतमस्तात ( द्रोण) १३०.१६ स नो राजा धृतराष्ट्रष्य (वन) ३४.७ सन्तता गतिरेतस्य नैष (वन) १६३.४१ सन्ततार पुनस्तेन (वन) २९१.५३ सन्ततास्तत्र मातङ्गा (बिरा) ५५. २४ सन्तः प्रतिष्ठा हि सुख (आ) ८८.१२
७५६
सन्तर्पयन्तः सततं वन्पेन (वन) ६५.८ सन्तर्पयित्वा ज्वलनं (आ) १८५.३२ सन्तस्तार क्षितिं क्षिप्रं (कर्ण)
६१.८
१६.६ सन्तस्तार शुभां शय्यां द्रोण ) ७६.२ सन्तः स्वर्गजितः शुक्ला वन ) २०७८७ सन्ताड्या न तु पादेन (अनु) सन्तानकवनैः फुल्लः (वन) २३१.२३ सन्तानमावयोस्तात वृद्धयो स्त्री) १५.२२ सन्तानं हि परो धर्म (आ) ४५.१४ सन्तानात्तव सन्तानं आश्व) ९०.६८ सन्तानार्थं महाभाग आ) १०४.४४ सन्तापभ्रश्यते रूपं उद्योग) ३६४४ सन्तापं मानसं वीरश्चि कर्ण, ७४.४१ सन्तापयति नः सर्वानसी (वन) ३८. ३१ सन्तापयन्तावन्योन्यं (कर्ण) १७.२ सन्तापाभ्रश्यते (शांति) २२६.६ सन्तापा रूपमायास: (आव) ३७.२ सन्तापितः पिता माता ( वन २६८.२६ सन्तापिताश्च ये केचि (शांति) १११.७६ सन्तापोऽप्रत्ययश्चैव (आश्व) ३७.६
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