Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh, 
Publisher: Nag Prakashan Delhi

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Page 763
________________ श्रीमन्महाभारतम् ।। श्लोकानुक्रमणी सन्ध्यायां च न (अनु) १०४.१४१ सन्निधौ ते महाराज(उद्योग)१३०.२६ सन्निवार्यात्मनो नागं (कर्ण) १२.३६ सन्यांसस्य महाबाहो (भीष्म) ४२.१ स पथः प्रच्युतो धर्मात्(सौप्तिक) ६.२१ सन्या वसिष्ठमासीनं तमत्य(आ)९६.१४ सन्निधौ बिदुरस्य त्वा(आ) २००.२८ सन्निविष्टेष पार्थेष (शल्य) ३०.१० सन्यासी ज्ञानसंयुक्तः (आश्व) ४३.२७ स पथः प्रच्युतो धर्मा (सौप्तिक)६.२७ सन्ध्या रात्रिः प्रभा निद्रा (विरा) ६.२३ सन्निपत्य तु शाखाया (सौप्तिक) १.४० सन्निवत्तस्ततस्तूर्ण (कर्ण) ५१.६२ सन्मित्राश्च कृतज्ञाश्च (शांति)१६८.१८ स पन्थानमथासाद्य (शांति) १६६.६ सन्ध्याशे समनुप्राप्ते (शांति) ३३९.५५ सन्निपातो न मन्तव्यः (शांति)१०२.२२ सन्निवत्तांस्ततस्तांस्त/भीष्म) ५८.३३ सपक्षयोः पर्वतयोयथा (द्रोण) २६.३७ ॥ सन्ध्या संरज्यते घोरा (आ) १७०.८ सन्निपाते बलौघाना(भीष्म) ७१.३८ सन्निवृत्तास्तु ते शूरा(शल्य) २१.३ स पक्षाभ्यां स्पृशन्नातं (कर्ण) ४१.५६ स पन्नगपतिस्तत्र (शांति) ३६१.१ सन्ध्यय वतते रोद्रा न(उद्योग)१०.३५ सन्निमज्जेज्जगदिदं (शांति) २८.४४ सन्निवृत्त जनौघे तु शल्यो(शल्य)२०.१ स पक्षाभ्यां स्पशन्नार्त (कर्ण) ४१.५६ स पपात तता भूमी (भाष्म) ७६.५२ सन्नरः कवची खङ्गा (आ) २२०.५ सन्नियच्छति यो वेग (उद्योग)३७.५१ सन्निवृत्त तव सुते सर्व (भीष्म)५५.१५ सपक्षिसंघाचरितमाकाश (कर्ण) ८०.४ स पपात तता वाहात्(कण) ५६.२१२ सन्नद्धमनुगच्छन्त (द्रोण) ११२.७० सन्नियम्येन्द्रियग्राम (आश्व) १६.३६ सा ११.७० सन्नियम्येन्द्रियग्राम (आव) १६. सन्निवेश्य च कौरव्य (वन) १६.७ स पञ्चधा पडचजनो AAYE.४० स पपात तदा भूमा (कण) ६४.२२ सन्नसाचाजूना यावा (द्राण) ८५.४५ मन्तियन्दिय ग्राम भीष्म) ३६४ सन्निहत्यामुसस्पृश्य राहु (बन)८३.१६२ स पचनदमासाद्य (मी) निहत्यामसस्पश्य राह(वन)८३.१६२ स पंचनदमासाद्य (मी) ७.४५ ७.४५ स पपात तदा भूमो (विरा) १६.१२ सन्नद्धः सगदो राजन् (शल्य) ३२.६५ सन्नियम्येन्द्रियग्राम(शांति) २४०.२६ सन्यिवर्तत तं भीमो (कर्ण) ७७.५१ स पतका ध्वजाः पेतु (कर्ण) २१.३७ ।। स पपात तदाराजा (कर्ण) १४.३३ सन्नद्धा धन्विनः सर्वे (वन) ३११.१६ सन्निरुद्ध' रणे द्रोणं (वन) १२२.३६ सन्यिस्यते यथाऽत्माऽयं (शांति)३२०.२ स पतन्तमभिद्रुत्य परिजग्राह(अनु/२६.७ स पपात द्विधा च्छिन्न (द्रोण)१६२.२७ समदृश्यन्त (भाष्म) १६.१६ सन्निरुद्धस्तु ते पार्थों (द्रोण) १२.१ सन्यिस्य वीराः (भीष्म) ११६.११६ स पतन् शुशुभे नागो (आश्व) ७६.१६ स पपात नरव्याघ्रो (शल्य) ५८.४८ त्यजुना यात (सभा) ७४.१२ सन्निरुद्धाश्च कौरव्ये (द्रोण २२.१४ सन्यिस्य सर्वकर्माणि(शांति) १६०.३० सपताकध्वजहयः (द्रोण) ४५.२६ स पपात महाबाहु (सभा) २०१.४१ सन्नद्धो दीक्षितः सर्वो(शांति) १८.१३ सन्निरुध्येन्द्रिय ग्राम (आधम) ३७.३१ सन्यिस्याग्नीनूदासीनाः (शांति)२९६.३७ सपताकं विचित्राङ्गं (विरा) ४६.५ स पपात महावीयों (वन) २८७.१६ सन्ना कांचन वर्म (आश्व) ७९.१४ सन्निवर्तय कौन्तेय(वन) १४०.२ सन्यिासः कर्मयोगश्च (भीष्म) २६.२ सपताकाश्च मातङ्ग(भीष्म) ११७.६१ स पपात महानागो (कर्ण) १२.४२ सनातां पदातीना (भीष्म) ७५.३ सन्निवार्य च योधान्स (तर्ण) ६४.४७ सन्यिासफलिकः कश्चिद् (शांति)३२०.४ सपत्रद्धि यत्तात (आ) २००.२६ स पपात रणे तूर्ण (भीष्म) ८२.२३ सन्नाहं सयुगे कतुं (उद्योग) १६०.६४ सन्निवार्य ततः सर्वान् (द्रोण) ७.५० सन्यिास कर्मणां कृष्ण (भीम) २६.१ स पपात रथाद्भूमि (शल्य) १०.४१ सन्निकाशयेद्धमं (आश्व) ४६.२५ सन्निवार्य महाबाणास्तव(कर्ण)२३.१४ सन्यिासं तप इत्याहु (आश्व) ४६.५६ सपत्रानां मधे हन्ता (वन) ६४.५२ र सपत्नसहिते कायें (शांति) १४०.१४ ४.२ स पपात रथोपस्था (द्रोण) १०७.२७ सान्नकृष्टश्च दवश्य (शांति) २७१.८ सन्निवार्य शरांस्तांस्तु(भीष्म) ८४.२१ सन्यिासं तप इत्यांहः (आश्व) ४७.१ सपत्रानध्यतोत्मानं (सभा) ४६.१६ स पपात विनिदग्धः (शात) २०१५ सन्निकष्टाश्चरेदेतान्न(शांति) १२३.७ सन्निवार्य स तां घोरा (भीष्म)५४.८० सन्यिासस्तु महाबाहो (भीष्म) २६.६ सपल्या वचनं श्रुत्वा(शांति) १४६.१ स पपात हतः पृथ्व्या (द्रोण) १५७.१५ Jain Education Interna For Private Personel Use Only wwwalibrary

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