Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh, 
Publisher: Nag Prakashan Delhi

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Page 746
________________ संक्षोभ्य सलिलं वेगाद्ग (शल्य) ३२.३७ संङ्खशब्दा समुरजा (उद्योग) १४१.३५ संख्यं चानर राजेन (वन) २८०.११ संख्यं वानर राजेन (वन) २८०.५८ संख्या नैव शक्यानि (वन) ३२.२६ संख्यामतिगुणां चापि (अनु) १०७. ३६ संख्यासमयविस्तीर्ण (शांति) ६८.२१ संख्यास्यामि फलन्यस्य (दन) ७२.१५ संगतं भ्रातृभिश्वापि (विरा) २५.८ संगत्या तत्र भगवान् (उद्योग) १०४.२३ संगत्या जठरे न्यस्तं (शांति) ३३१.२३ संगत्या धृतराष्ट्रश्न (उद्योग) ६.१४ सङ्खान्यांश्च विच्छेद (उद्योग) ५४.६५ संगम मम कल्याणि (आ) ६३.७२. संगम्य षड्भिः माहुस्त् (वन) २२६.५ संगरेषु निपातेषु (उद्योग) १२२.९ संगुप्तान्यात्मनो द्वारा (शांति ) २५१.१६ संगृहीतजनो स्तब्ध (शांति) ११८.२१ संगृहीतमनुष्यश्च यो (शांति) ११५.२३ गृहीतायुधान्य (शल्य) २१.४ Jain Education International १.८० संगृह्णन्तः परिजनं (शांति) १६५.२४ संग्रहं च त्रिवर्गस्य (शांति) २८७.१६ संग्रह: सर्वभूतानां (शांति) ११.४७ संग्रहाध्यायबीजो वे (आ) संग्रहानुग्रहे यत्नः (शांति) १४०.५३ संग्रहेणैष धर्मः स्यात् (उद्योग) ३९.७३ संग्रहे विग्रहे चैव यत्न: (आ) १४०.८० संग्रामचन्द्रोदयवेग (सौप्तिक) १०.१८ संग्रामनिजिताल्लोकान् (कर्ण) ६.२३ संग्रामदुर्मदा राजन् (द्रोण ) ४५.१५. संग्रामशिरसो मध्ये (द्रोण) १५५.३६ संग्रामशिरसो मध्ये ( भीष्म) १०.७१ संग्रामस्तु न कर्तव्यः (द्रोण) १११.२८ सग्रामाणं हि धर्मज्ञ (द्रोण) १४३.१८ संग्रामादिनिवृत्तानां (द्रोण) १८३.४ संग्राम द्विमुखः कतु" (कणं) ४०.४८ संग्रामाद्व्यपयातव्य ( भीष्म) १०६.२७ संग्रामांश्च बहूञ्जित्वा (विरा) ५०.२ संग्रामे क्रियतां यत्नो (द्रोण) ११२.४४ संग्रामे च जयेन्नित्यं (वन) ३.७९ श्रीमन्महाभारतम् : :: श्लोकानुक्रमण संग्रामे न च कार्य मे (विरा) ३८.२७ संग्रामे निहता ये ते ( भीष्म) ६६६ संग्रामे न्यहनं जत्रा (द्रोण) २०२.४ संग्रामे बभ्रुवाहन संशयं ( आ ) २.३४२ संग्रामे भारतश्रेष्ठ (भीष्म) १११.२३ संग्रामे भीरमासाद्य ( भीष्म) १०६.२० संघट्टयति सैन्यानि (द्रोण) १५.२२ संघर्षात् पावकं मुक्त्वा (द्रोण ) १०६.४० संघर्षेण महाराज (कर्ण) ६२.१६ संघातवन्मत्र्यलोक (शांति ) २६८.१६ संघातेनासन भ्रष्ट रश्या रो (शहद) २३. ७३ संघाय च शित वाण (भीष्म) ६२.१: स चकार तथा सर्व (वन) १२८.१८ स चकार तदाऽऽलस्यं (शांति) ११२.८ स चकार सभां दिव्यां (आ) ६१४९ स च किल कृतनिश्चयो (शांति) ३६५.२ सचकेत लोकाना ( आ ) १७६.१० सच कौरव्यमासाद्य (उद्योग) २०.१ स चक्रकूबररथं साश्व (द्रोण) ६३.१८ स चक्रधर लोकानां (शांति) २४३.२६ For Private & Personal Use Only सचक्रं क्षुरपर्यन्तमपश्य (आ) ३३.२ स चक्ररक्षान पाद (कर्ण) ८९.९४ सालिनां (आ) ७०.२५ स चक्रे वसुधां कीर्णा ( भीष्म) ५४.६२ स च क्रोधसमाविष्टः (भीष्म) ८४.१२ स च गान्धर्वमखिलं (वन) १६८.५८ स च घोरतमो धीमान् (अनु) ४१.२४ स चचार बहून्मार्गान (भीष्म) ५४.४३ स चचार सहामात्यो (आ) १७५.५ स च तद्वचनात्सर्व (आश्रम) ८.११ स च तं क्षमयामास हेतु (वन) ७७.१० स च तं विजने दृष्ट्वा (आश्व) ६.२१ स तान्प्रतिविव्याध ( आ ) १०२.३० स च तान् प्रति ( भीष्म) ११३.२४ स च तान्प्रति संरब्धः शल्य) २२.३८ स च तामाह (उद्योग) १७८.६३ स च तां प्रतिजग्राह विधि ( आ ) १५.३ सतां प्रतिजग्राह (वन) ७७.१८ स च तां मंत्रवत्पूजा (शांति) ३२६.६ स चतुर्दशवर्षाणि वने (शांति ) २६.५६ ७४१ स चतुर्थी ततो वर्षे (वन) ७६.५१ स चतुभिर्महेष्वासः (शल्य) १३.३४ स च ते धर्म एव (आ) २१४.२९ स च तैरेव संसिद्धो (अनु) १०० ३६ स च तव्यंथितः शक्रो (अनु) १५५.२१ स च दुर्योधनो नूनं (उद्योग) ४.९ स च द्विजातिप्रवरः कस्य ( आ ) १३.४ स च नास्मासु कृतवान् (आ) २१६.२२ सचन्ममार सृजय (द्रोण ) ६४.१७ स चन्द्रमाः स चेशान (अनु) १६०.४० स च पारावताश्वस्य ( भीष्म) ५४.९८ स च पिष्टरसस्तात (अनु) १४.१२० स च पश्यन्तु देवेन्द्रो (उद्योग) ६.४७ स च प्रियः सखा तुभ्यं (वन) २४६ ७ स च पौरजनः सर्वः (वन) २४०.७ स च पुत्रो महावीर्यो (आ) १६७.३४ स च मण्डूकराजो (वन) १९२.३७ स च मौनव्रतोपेतो नैव तं ( आ ) ४१.८ स चंपा नगरीमेत्य (अनु) ४२.३३ स च म्लेच्छाधमः पापो ( आ ) १४१. ११ www.jainelibrary.org

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