Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh,
Publisher: Nag Prakashan Delhi
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चौमामहाभारतम् : श्लोकानुगमणी
७.१
शत्रुपक्षं समध्यन्त यो (सभा) ५५.१६ शत्रणां विग्रहे नित्यं (शल्य) ४६,४० शपे सात्वतपुत्राम्या (द्रोण) १५६.७ शब्द-रूप-रस-स्पर्श (स्त्री) ७.१० शब्दः स्पर्शस्तपा रूपं (शांति)२३६.१. शत्रुः प्रबुद्धो नोपेक्ष्यो (उद्योग) ६.२२ शत्र नेत्र प्रपद्यन्ते (उद्योग) ११६.३ शपेऽहं कृष्णचरण (द्रोण) १५६.१६ शवलक्षणमाकाशं (आश्व) ४.२२ शम्दस्पी रूपरसो (माश्व) २१.३ शत्रभिजितबद्धस्य (वन) २४७.१ शत्रन जय प्रजा रक्ष (शांति) ६. शप्तः प्रसादयामास (शति) २.२७ शब्दश्च तुमुलः संख्ये (शल्य) २२.४६ शब्दस्पशों तथा रूपं (सभा) ११.२१ शत्रुभिवहुभिर्ग्रस्तो यथा(शांति)१३८.४ शत्र न्हत्वा मही लकवा (शांति) ८.४ शप्तस्तु भृगुणा वह्निः (आ) ७.१ शब्द: थोत्रं तथा खानि(शांति) १६४.६ शब्दं गाण्डीवघोषण(द्रोण) १३९.१२२ शत्र भिवंशयानौती (शांति) २२७.१५ शत्र हत्वा हतस्याजो (शांति)२४.२४ शस्तस्त्वेवं सुप्रतीको (आ) २६.२३ शब्दः थोत्रं तथा बानि(शांति)२४७.१ शब्दं तेषां स शुधाव (आ) १७०.६ शभिविविधैः शस्त्र : (शांति) ४४.३ शत्रोरपि गुणा ग्राह्या (विरा) ५१.१५ शप्तानां नो महादेव्यां (अनु) ८५ ५४ शब्दबोत्रे तथा बानि(शांति)२८५.१० शब्द न पोरं सत्याना(वन) २७६.२८ शत्र भिश्चावहसितो (वन) २४६.२१ शत्रोरपि प्रपन्नस्य (वन) १४१.१५ शप्ताः स्म इति जानन्त (आ) १६.३६ शब्दसंस्कारसंयुक्त (आ) ७०.४१ शब्दं न बिन्देछोत्रेण(शांति) १९५.६ शत्र रूपा हि सुहृदो(शांति) १३८.१३८ शत्रोमया विपन्नानां (विरा) ४८.२० शप्तो वैश्रवणेनाह (उद्योग) १९२.५५ शब्दः समभवद्राज (द्रोण) १८७८ शब्दं सोडुन शक्यन्ति (होण) ३.२१ शत्र रेष त्वया बीर (वन) २६१.३१ शनकरभ्ययावेत (भीष्म) ४८.६६ शस्तो ह्यष पुरा पापो(वन) २८०.६० शब्द: स्पर्श च रूपं (शांति )२१६.१२ शब्द स्पर्श रसं गंधं (अनु) ११७.१६ शत्र निमज्जता (उद्योग) १३३.२० शनैरलभत प्राणान् (शल्य)
शनैरलभत प्राणान् (शल्य) १-४४ १-४४ शप्वा च तान्महाभाग (1) ६६.३४
शब्दः स्पर्शश्च रूपं (भीष्म) ५.५
शब्दादीविषयान् (शांति) २१२.५ शनर्याहीति यन्तारम (द्रोण)१२०.१४ शप्वाथ शपधान (द्रोण) १५.२८
शब्द: स्पर्शश्च रूपं (वन) २११.५ शब्दायमाने संग्रामें (भीष्म) ४८.२१ शत्रचव हि मित्र' च(सभा) ५५.१० शनिबदमादत्ते (शांति) २७३.२२ शवरा उद्भूसाश्चंब (भीष्म) ५०.५३
शब्दः स्पश्च रूपं (वन) २११.६ शब्दाश्च रूपाणि (शांति) २०१.२० शत्रु सेनाकलत्रस्य (शांति) १८.३६ शनैविधम्भयन्नश्वान् (द्रोण)११६.१३ शवराणां किरातानां (द्रोण) ११६.४६ शब्दः स्पशंश्च रूपं (वन) २११.७
शब्दाः श्रुतिमनोबाह्यः (वन)२६१.११ शत्र हस्तगतो राजन् (वन) ३३.६० शनैः शनैरुपरमेद् (भीष्म) ३०.२५ शबलास्तु बृहन्तोऽश्वा (द्रोण) २३.५८ शब्दः स्पर्शश्व रूप (शांति) १६४.३०
शब्दाः स्पस्तिथा (शांति) १०२.१४ शत्र'च मित्ररूपेण (शांति) १४०.१५ शनैश्चोत्सादितस्तत्र (अनु) २०.३ शब्द आसीत्सुतुमुल (शल्य) ५७.३१ शब्द: स्पर्शश्च रूपं (शांति) ३१०.१३
शब्देन नाविताऽभीषण (द्रोण) ८५.५ शत्र, मित्र च ये (अनु) १४४.३४ शनैः स तु भवान्यात उद्योग) ११२.११ शब्द एकपदरेष (शांति) ३४२.८४ शमः स्पशेश्च रूपं (शांति) ३१०.२०
शब्देनाकाशमखिलं (शांति) ३३२.14 शत्रूणां क्षपणे युक्तः (सौप्तिक)१.४६ शन्तनोश्चैव पुत्रंण (स्त्री) २५.३५ शब्दब्रह्मणि निष्वातः(गांति) २७०.२ शब्दः स्पर्शश्च रूपं (शाति) २१०.३१ __ शब्दे स्पर्श च रूपे (शांति) ३३०.२६ शत्रणां पश्यतो (सभा) ५२.४१ शपिष्ये त्वामहं क डो(वन) ३०६.१७ शम्बरागाण्योत्रमस्य (शांति)२१३.१६ शब्दः स्पर्शश्च रूप (शाति) ३११.१२ शब्दे स्पर्श प रूपे च (वन) १०१.११ शत्रणां या बधे वृत्तिः(आ) ११८.१२ शपेऽत्मनाऽहं शैनेय (द्रोण) २००.६४ शब्द-रूप-रस-स्पर्श (शांति) २७.२३ शब्दः स्पर्शस्तथा रूपं (आश्व) ४२.६ शब्दे, स्पर्श तथा रूपे (शांति)२७३.२० शत्रणां ये प्राणहराः (वन) १५१.१५ शपेयं त्वां न वेदेवं (उद्योग)१७६.१६ शब्द-रूप-रस-स्पर्श (भीष्म) ३.७२ शब्द: स्पर्शस्तया क (आश्व)५०.४० शम एव परो धर्म (मा) १८१.१३
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