Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh,
Publisher: Nag Prakashan Delhi
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श्रीमहाभारतम् ।। श्लोकानुक्रमणी मेरेरवचकोंग्रेः ऋद्धो(द्रोण) १५३.२६ शरैर्नानाविधस्तूर्ण पार्थ(बा) १३५.३५ पचावाकिरद्वाज (द्रोण) १६.३५ शर्मकान्वर्मकांश्चैव (सभा) २७.१३ शल्यपुत्रस्तु विक्रान्तः (कर्ण) ५.२७ परैरग्निशिखाकारैराज(द्रोण)१२३.२६ शहभिरत्युगः(द्रोण) १३९.७० शपचन सुबहुभिः (द्रोण) २००.१२२ शर्म तै: सह वा नोऽस्तु (उद्योग)७८.११ शल्यभूतस्तु शत्रुणां (कर्ण) ३२.५७ परैरग्निसमस्पर्श (द्रोण)४०.१३ शरबहुभिराच्छिद्य (भीष्म) १२.२६ सरश्छिन्नानि गावाणि(कर्ण) ७४.३८ शर्म वर्म प्रतिष्ठा च (कर्ण) ७८५ शल्यभ्रातर्यथा (द्रोण) ३८.१० मरैरन्यर्कसंकाशः (द्रोण) ११५.३० शरबहभिरानछत् (भीष्म) १२.३१ करैः संछादयामास (शल्प) १०.३५ शर्मार्थ ते विशेषेण (उद्योग) १२४.६ शल्यमग्निं तथा कृत्वा (अनु) १६०.२६ परैरतिरषो युद्धे दारयन् (भीष्म)५७.२ शरबहुभिरानछत् (भीम) ७२.२७ शयः संछादयामास (कणं) ५९.३७ शर्मिष्ठया यदुक्ताऽस्मि (आ) ७८.३२ शल्यमद्योरिष्यामि (शल्य) ३३.३४ परैरनलंसंकाशं (द्रोण) ११३.६ शरबहुविपश्चनं (भीष्म) १२.६० शरः संच्छिद्यमानानां (विरा) ६२.७ मिष्ठया महाभाग (आ) १८.२८ शल्यमेवाभिदुद्राव (शल्य) ८.३१ शरैरनेकसाहः (द्रोण) ९२.४२ शरविव्याध गात्राणि (वन) १६०.५१ शरः सहस्रशो विद्धा (होण) ९३.३६ शर्मिष्ठा प्राक्षिपत्कृपे (आ) ७८.१३
पाभिपतको ७.१३ शल्यश्च चित्रसेनश्च (शव्य) ६.२ पररनेकसाइस (द्रोण) १६७.१२ शरविशकलीकुवन (कर्ण)१६.४६ शरैः सुतीक्ष्णः (द्रोण) ११८.८ शर्बयो दिवसाश्चव (अनु) १६५.१७ शल्यश्च दशभिर्वाण (द्रोण) १७०.१६ पररनेकसाहसं (शल्य) २८.४६ शरर्वीक्ष्य विनुन्नाङ्गो (शल्य) १४.७ शरैः सुनिशितः पार्थ (भीष्म) ११०.४८ शलभा इव ते दीप्त (द्रोण) १४६.१४ शल्यश्च पुण्डरीकाक्षं (कर्ण) ८७.१०० पररण्याइताना न (आ) २२६.१३ शरै शरांस्ततो द्रोणिः (कर्ष) १५.५ रोत्तमान्संप्रहितान् (कर्ण) ७६.७७ शलभानामिव वाताचार(कर्ण)२५.२५ शल्यएच येन वै सर्व (स्त्री) १.२८ सरैरवकोंपैः कुलो(होण) १२४.३५ शरैः शरीरान्तकरः (कर्ण) ८९.६. शरोत्तमेनाञ्जलिकेन (कर्ण) १०.५१ शलभानामिव वाता: (द्रोण) १३६.३६ शल्यश्च समरे जिष्णु (भीष्म) ११४.६ शरैरबचकर्तांग्रेडों णि (होण) १६६.२३ शरै शरीरार्तिकरः (कर्ण) ८२.३२ रोभिणं ध्वजावतं (द्रोण) ९६.५१ शलभा यत्र सौवर्णास्त (विरा) ४२.५ शल्यः श्रुत्वा तु दूतानां (उद्योग) ८.१ परैरवर्षन् ग्रुपवस्य पुत्र(भीम)७७.४३ शरैः शरीरे बहुभिः (कर्ण) १०.७६ शरो वीरः कृतार्थच (द्रोण) ७१.१२ शलभा यत्र सौवर्णास्त(विरा) ४३.११ शल्यसायकनुम्नानां (शल्य) १५.११ शरराचितसङ्गिः शोणिती(कर्ण)९१.६१ शरपच जनयंधितं (कर्ण) ७६७४ शारीषिणं पार्थिवान (कर्ण) ४२.१६ शलभरिव चाकाशे (द्रोण) ४१.६ पाल्यः पायकवाणि (शल्य) १५.६
पलवल्या १३.११ शचतुभिश्चतुरो (भीष्म) ६१.२१ रोपाञ्छरजालेन (द्रोण) ३२.५४ शलश्च रथिनां श्रेष्ठो (द्रोण) १५८.६६ शल्यस्तु कर्णाज'नयोः (कर्ण)२१ शरैरेकायनीकुर्वन् दिशः(भीष्म)४६.५१ परंपच बहुधा राजन् (कर्ण) ७७.६८ शरोधान्सम्यगस्यन्तो (विरा) ६३.५ शलश्च सत्यव्रत (कर्ण) ७.१६ शल्यस्तु नवभिर्वाण (भीष्म) ११३.४ सररेकायनीकुर्वन् दिश:(भीष्म) ५६.२१ शरैपच मेथों बहुभि (आ) २२४.१७ शरीषिणी धनुः स्रोतां (द्रोण) २१.४१ शलं विनिहतं संख्ये (स्त्री) २४.६ शल्यस्तु नकुलं वीरः (द्रोण) १४.३१ मररेभिः प्रणुन्नानां (बिरा)४७.१६ शरश्च विविधः (स्त्री) २३.४० रोषेणाप्रमेयेण (द्रोण) ४६.२६ शलाकानखपातश्च (विरा) १३.२६ शल्यस्तु पीडितस्तेन (शल्य) १५.१५ शरैण्डिीवनिमुक्त (मो) ८.२२ शरपच वेगं सहसा (शल्प) २०.२० शरीषः पूरयन्तौ (द्रोण) १६०.४६ शलो भरिश्रवाः शल्य (उद्योग) १६५.१० शल्यस्तु शरवर्षण (शल्य) १६.५६ भरेर्धातयतु क्षिप्रं (भीष्म) १०७.८५ शरैरज शतशो विद्धास्ते (दोष) ९३.४८ सविमलस्तीक्ष्णै (भीरम) १०२.२७ शलो भूरिश्रवाश्चैव (उद्योग) ५५.६५ शल्यस्तु समरे जिष्णु (भीष्म) ११४.२६
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