Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh,
Publisher: Nag Prakashan Delhi
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श्रीमन्महाभारतम् । : श्लोकानुभमनो रविपरिघावद्भिर्गजे (द्रोण)११६.१० रन्तिदेवश्च सांकृत्यो (शांति)२३४.१७ रमते यस्तु पुत्रेण (उद्योग) १३५.१२ ररक्ष सा चापि (वन) १३२.१७ रसज्ञानं तु वक्ष्यामि (आश्व) ५०.४४ रविपरिधावद्धि (द्रोग) ११०.७३ रन्तिदेवेन लोकेष्टा (शांति) २९२.७ रमते सोऽय॑मानो हि शान्ति) ३४३.५५ ररक्ष सा मां सरथं (उद्योग) १८२.१७ रसज्ञाने तु जिह्वयं (शांति) २१०.३२ रचं हताश्वसूतेश्च (कर्ष) ६४.१३ रन्ध्रागनमधाश्वानां(शांति) २८३.५४ रमत्ययं यथा प्ने (शान्ति)२१३.१४ रराज कुन्त्या माद्रा (आ) ११४.६ रसन चेन्द्रियं जिह्वा(शान्ति) २५२.७ रथैईया हय पाः (द्रोण) १८७.४ रमणीयं शिवं पुण्यं मर्व (आ) २७६ रमन्ते चोपहासेन (कर्ण) ४५.४३ रराज भगवांस्तत्र (अनु) १४.३८५ रसं च प्रतिजिह्वया (अनु) ११४.१३ रश्च कुजरंश्चैव (कर्ण) ७८.४५ रमगीयः समुद्देशो (अनु) ५३.५६
रमन्ते पुण्यकर्माणस्तत्र (अनु) ८१.२८ रराज भूमि पतितः (कर्ण) ६१.७० रसं पिबेत्कुमारोऽयं (आ) १२८.६८ रवैश्च सर्वतो भग्न (भीष्म) ९६.६४ रमणीया कथा दिव्या(अनु) १३०.१४
रममाणः प्रिया (शान्ति) १०४.३६ रराज राजपुत्रस्ते (शल्य) ५५.२० रसवत्पाययामासुः (द्रोण) ११२.५५ रथश्चाधि रथेमार्ग (कर्ण) ५६.५४ रमणीयानि चित्राणि (आ) २१४.५
रममाणस्तया साधं (आ) १८.१२ रराज वसुधाऊकीर्णा (द्रोण) १६१.८ रसवन्ति च तोयानि (सभा) ८.७ रथस्तैनंगरप्रख्य (शान्ति) ४८.२ रमणीयानि पश्यन्तो (आ) १५७.३
रममाणी यथाकस्म (आ) ७२.६ रराजातिभशंम मिः (द्रोण) ११३.१८ रसवेगश्च दुर्वायः (शांति) १५८१० रथोडपशताकीर्णा (द्रोण). १४६.३४ रमणीयानि यावन्ति (अनु) ६५.२७
रमयन्ति स्म नृपते (सभा) ७.२५ राम ने कलत आ) २२.६ रसांश्च तास्तान्वि (शांति) २६२. रथोपस्वं समासाद्य (द्रोण) १५६.२६ रमणीमान भूतानां (अनु) १५१.५
रमस्तु चतुरो मासान् (वन) २८०.४० रविप्रम वजनाभं (कर्ण) ७६.३३ रसातलगतः श्रीमाननंता(शांति) ४७.७५ रथोपस्थामिपतित विरा) ६२.६ रमणीये जनाकीर्ण (आ) १४३.१५
रमस्व परमामित्रे (शान्ति) १०५.१५ विस्त सन्तापयत शान्ति) ३३१.१६ रसात
रविस्तु सन्तापयते (शान्ति) ३३१.५६ रसातलगतश्चापि (शांति) २०६.२६ रथो मातलिसंयुक्त (वन) ४१.४५ रमणीये वने विप्र (अन) १६.५५ रमस्वैघस्व मोदस्व (अनु) १२०.२७ रश्मिज:लामिवादि (शान्ति) ३०३.३२ रसातलगता मे च(शांति) २८४.१८० रमो मे युज्यता (द्रोण) १४७.४२ रमणीये वनोहेशे (वन) ३८.२२ रमामि स्म पुरा कान्तर शाति) १४८.६
रमामि स्म पुरा कान्त (शांति) १४८.६ रश्मिवतामिवावित्यो(उद्योग)१५६.१२ रसातलतले देवा (अनु) ८५.२४ रथो वेदी सधः (उद्योग) ५८.१३ रमणोयेषु देशेषु घोषा: (वन) २३६.४ रमिताऽभ्यधिकं स्त्रीत्वे (अनु) १२.५३ रश्मिभिर्भास्करो (द्रोण) १७२.१५ रसातलान्ते सलिलं (शांति) १०२.२८ रथो तयोः श्वेतहयो (कर्ण) ८७.८६ रमणीये समाजाते (वन) २४०.२ रमे चाहं त्वया पुत्र (आश्रम) ३६.१५ रश्मिभिश्च समुद्यम्य (वन) ७१.२२ रसातले विनिक्षिप्य(शांति) ३४७.५७ रथो तो कुरुशार्दूल (उद्योग) १५६.१६ रमणीयर्वनोद्देशस्तत्र (अनु) १९५.८ रमे चाहं त्वया साधं (आश्व) १५.१७ रश्मिभिः सूर्यरम्या (द्रोण)१७५.१६ रसानां चाथ बीजानां (अनु)२३.१०१ रथोद्याश्च हयोद्याश्च (कर्ण) ५२.२ रमते देवकन्यानो (क) १९.२ रमते देवकन्यानां (अनु) १०७.१०५
र
रमे जपन महाभाग (शान्ति) १६६.२७ रश्मिभिस्तापितोऽकस्य(अनु)१२५.५६ रसानां चाभवाकुल्या (द्रोण) ६१.५ रन्तिदेव च साकृत्य (शाति) २९.१२० रमते देवकन्याभिदिव्या(बनु) १०७.६६ रम्यान्पपोत्पत्नधरान (अनु) ५४.७ रश्मीन्योक्वापि (ब्रोण) १३९.६३ रसाना प्रतिसंहारात् (अनु) ५७.१७ रन्तिदेवं महादेवं (अनु) १५०.५१ रमते देवकन्यभिविष्या(मनु)१०७.१०२ रम्याश्च विविधास्तत्र(आ) २०७.४८ समीन समुत्सृज्य (विरा) ६६.१५ रसानां प्रतिसंहारे (अनू) ७१० रंतिदेवश्च सांकृत्यो (अनु) १३७.६ रमते भगवास्तत्र (आश्व) ८.७ ररक्ष पृथिवीं देवीं श्रीमान(आ) ४६.६ रश्मीस्तेषां स मनसा(शान्ति)१९४.४५ रसानां सर्वगन्धाना(शांति) १५३१७
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