Book Title: Mahabharatam
Author(s): Nagsharan Sinh, 
Publisher: Nag Prakashan Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 696
________________ भीमन्महाभारतम् ।। श्लोकानुजाची ६५ विशालायतताम्राक्ष : (कर्ण) ७६.२५ विशीणे कामके राजन(शांति) १६६.३ विशेषधर्मा नृपते (शांति) २६६.२२ विशोकाश्चाभवन् सर्वे (द्रोण) ७.२० विश्रुतं त्रिषु लोकेषु (कर्ण) ६३.३३ विशालरग्निशरणः (वन) १४५.३० विशीर्णविप्रधावन्तो(भीष्म) १०३.२६ विशेषधर्मान्वर्णानां (गांति) २९६.१६ विशोकां कुरु मां क्षिप्रम(वन)६४.१०३ विश्रुतं त्रिषु लोकेषु (कर्ण) १३.४३ विशिखेन च तीक्ष्णेन (द्रोण) १६६.१५ विशीर्यमाणं ददृशुस्त्व (भीष्म) ६०.२६ विशेष न प्रपश्यन्ति (स्त्री) ४.१७ विशोको निर्ममः (शांति) २५१.१४ विश्रुता कथमज्ञाता कृष्ण(वन) ३५.२८ विशिखेन सुतीक्ष्णेन (द्रोण) १५६.८५ विशीयमाणा दश्यन्ते (शांति) २८४.४३ विशेषनियमाश्चषाम (सभा) २१.५० विश्रन्तोऽसि महाभाग (वन) २६७.६७ विश्वकर्मकता दिव्या (सौप्तिक) १३.४ विशिखोन्मयितर्गा(भीष्म( ७०.८ विशीला भिन्नमर्यादा(अनु) १०४.१२ विशेषयन्तावन्योन्यं (द्रोण) १७४.२६ विश्रमस्व त्वमव्यग्रः (सौप्तिक) ४.१२ विश्वकर्मकृतदिव्य (द्रोण) ७९.३८ विशिखोन्मथितंत्र (विरा) ६२.१२ विशुद्धधर्मा शुद्धन (शांति) ३०८.२७ विशेषयिष्यन् शिष्यं (द्रोण) ११.२६ विधमेद्यत्र वे थान्तः (वन) २००.४८ विश्वकर्मन्नमस्तेऽस्तु (आश्व) ५२.८ यिशिरस्कानथो कायान् स्त्री) १६.५१ विशुद्धमनसो दान्ताः (आश्व) १०.३६ विशेषयन्सूतपुत्र (द्रोण) १३६.५१ विधम्भो हीस्तितिज्ञा (आश्व) ३८.६ विश्वकर्मन्नमस्तेऽस्तु (आञ्च) ५५.७ विशिरस्कैमनुष्यश्च (भीष्म) ६३.२६ विशुद्धमिच्छन्गाङ्गय (आ) १३१.५३ विशेषस्त्वत्र विज्ञ यो (वन) २५६.३२ विश्रम्य च यथान्यायं (भीष्म) ८०.२ विश्वकर्मन्नमस्तेऽस्तु (शांति) ४३.५ विशिष्टतरमेव त्वं (कर्ण) ६०.१११ विशुद्धि चक्ष रादीनां (वन) २००.६८ विशेषं चैवकर्तास्मि (आश्व) १२.२४ विधम्यका निशामद्य (शल्य) ३०.१८ विश्वकर्मन्नमस्तुऽस्तु (शांति) ४७.८४ विशिष्टया विशिष्टेन (वन) ५३.३१ विशेषत इहास्माकं (उद्योग) १३८.२२ विशेषाणां मनस्तेषां (शांति) ३०७.५ विश्वकर्मन्नमस्तेऽस्तु (शांति) ५१.३ विश्रव्या नाम निहता (कर्ण) ५६.६१ विशिष्टः सर्वयज्ञाना (अनु) ६०.२० विशेषत इहास्माकं (विरा) ४६.३१ विशेषात्सर्वमेतत्स (सभा) १३.१३ विश्वकर्मा महाभागो (आ) ६६.२८ विधान्तं चैनमासीनम (वन) २७८.२ विशिष्टस्य विशिष्टाच्च(शांति)२६२.३ विशेषतः कौरवाणां (द्रोण) १५४.१६ विशेषाः पंचभूतानामिति(आश्व)३५.४८ विश्वकृद्विश्वकृतां (शांति) २८४.१६४ विश्रान्तश्च विनिद्रश्च(सौप्तिक) ४.६ विश्वजित प्रतिरूपश्च शांति २२७.५३ विशिष्टं देवकीपुत्रात् (कर्ण) ३५.२६ विशेषतश्च वासार्थ (उद्योग) ८५.१६ विशेषेण च वक्ष्यामि (अनु) १६४.११ विशिष्टं बलमीप्सन्त्या (आ) १६.२२ विशेषतः सूतपूत्रो राजा (कर्ण) १.५ विशेषेण तु राजेन्द्र (अनु) ४०.१८ विधान्ताय ततस्तस्मै (अनु) ४१.३१ विश्वभुग्भूतधामा च (आ) १९७.२६ विशिष्टं सर्वशिष्येभ्यः (आ) १३३.१६ विशेषतस्तु शपयं (द्रोण) १८६.५३ विशेषोऽस्ति महास्तात(शांति)१२४.२४ विधान्ताश्च वितृष्णाश्च (शल्य)२५.१० विश्वमूतिर्महामूर्ति (अनु) १४६.६० विशीर्णकवचं चैव(शांति) ९६.३ विशेषतो नरपतेविषम द्रोण) १२४.२८ विशोकश्चाभवद्राजा (द्रोण) १२८.३७ विश्रान्तास्तु महात्मानः(आ) २०७.२३ विश्वमूर्धा विश्वभुजो (शांति) ३५१.५ विशीर्णदन्तं निहतं तदा(कर्ण) ३६.३१ विशेषतो नारदपर्वता(द्रोण) १६३.१५ विशोकस्तमुवाचेदं (भीष्म) ७७.२१ विश्वान्तेऽथ गुरी तस्मिन् (आ) १३२.२ विश्वरूपविनाशेन (उद्योग) १७.३ विशीर्णनागाश्वरथप्रवीरं कर्ण) १२.१० विशेषतो विकवचः (शल्य) ३२.१३ विशोकस्य वचः श्रुत्वा (भीष्म) ७७.२६ विश्वान्तोऽभ्यर्चित (शांति) ३५७.६ विश्वरूपः स्वरूपश्च (सभा) ६.१४ विशीर्णमलिनोष्णीष (वन) २१.२४ विशेषतो हि नृपतेस्त(द्रोण) १३७.३४ विशोक प्रेक्ष्य निभिन्न(भीष्म)११३.२६ विश्राम्यतामित्युवाच (वन) ७३.२६ विश्वरूपो हि वै (शांति) ३४२.२८ विशीर्णरयसङ्घाश्च(भीष्म) ७१.४० विशेषयिष्यन्नाचार्य (द्रोण) ११.१५ विशोका नष्टरजसस्तेषां(शांति)२६६.४ विश्राव्य पलितः (शांति) १३८.२०१ विश्वलोकेषु पुण्यत्वाद् (अनु) २६.८० For Private Personel Use Only www.alinelibrary.org Jain Education Intersalon

Loading...

Page Navigation
1 ... 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840