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(xii)
१. ऋणादान प्रकरण
सामान्यतः आवश्यकतानुसार ऋण लेना, सूद देना, ऋणव्यवहार का मूलस्रोत था। कौन सा ऋण देय या अदेय है, ऋण देने व वसूल करने की पद्धति क्या है? इस व्यवस्था से सम्बन्धित प्रकरण ऋणादान प्रकरण कहलाता था । तृतीय अधिकार के इस प्रथम प्रकरण में भगवान सुमतिनाथ की स्तुति के पश्चात् ऋण का लक्षण, ऋणकर्त्ता की अर्हता और ऋण के प्रयोजन, ऋण कर्त्ता से लिया जाने. वाला प्रपत्र, वर्ण-विशेष हेतु भिन्न-भिन्न ब्याज दर का प्रावधान, चतुर्विध ब्याज और ऋणी द्वारा धन न लौटाने पर राजा से निवेदन का वर्णन है। साथ ही हिरण्य-धान्य-वस्त्रादि धरोहर रखने, धरोहर रखी गई वस्तु के चोरी होने की स्थिति, पितृकृत ऋण की पुत्रों द्वारा वापसी, नियत अथवा अनियत धरोहर, स्थावर एवं जङ्गम धरोहर, धनी द्वारा विना ऋण दिये ऋणी से प्रपत्र लेना, ऋण का ब्याज, धरोहर रखने पर ब्याज का दर, पशु, वस्त्र आदि को धरोहर रखना, पिता का देय पुत्र द्वारा वापस न करने की स्थिति, स्वामी के कुटुम्बार्थ दास कृत ऋण की वापसी आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
२. सम्भूयोत्थान प्रकरण
सम्भूय का अर्थ संयोग, उत्थान का अर्थ उन्नति । जब अनेक जन या व्यापारी या कलाकार, शिल्पकार एवं अन्य लोग परस्पर मिलकर या साझेदार होकर किसी कार्य को करते थे, तब उसे सम्भूयोत्थान कहते थे । सहकारी आधार पर किया गया कार्य भी सम्भूयोत्थान कहलाता था । सम्भूय उत्थान में प्रत्येक भागीदार बराबर होता है। इस प्रक्रिया से सम्बन्धित विवाद एवं व्यवधान को सम्भूय उत्थान व्यवहार कहते थे। इसमें भगवान पद्मप्रभु की स्तुति के पश्चात्, समवाय के स्वरूप और सदस्यों के हिस्से की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है। ३. देय विधि प्रकरण
तृतीय देय प्रकरण में भगवान सुपार्श्व की स्तुति के पश्चात् देय विधि के दो रूप, छः प्रकार के देय पदार्थ, सोलह और नव प्रकार के अदेय तथा देय का स्वरूप वर्णित किया गया है।
४. दाय भाग प्रकरण
चतुर्थ दाय भाग प्रकरण में भगवान चन्द्रप्रभ की स्तुति के बाद दायभाग का स्वरूप, पितामह की सम्पत्ति में भाइयों का भाग, पिता की सम्पत्ति में पुत्रों का भाग, पिता की सम्पत्ति में पुत्रेतर भागीदारों का निर्णय, माता-पिता की सम्पत्ति में माता-पिता की इच्छा की प्रमुखता, पिता द्वारा कृत भाग के अमान्य होने की स्थितियाँ, सम्पत्ति में ज्येष्ठ भाइयों का विशेष अधिकार, पिता की सम्पत्ति में