Book Title: Laghvarhanniti
Author(s): Hemchandracharya, Ashokkumar Sinh
Publisher: Rashtriya Pandulipi Mission

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Page 12
________________ (x) - बलाबलसूत्र (बृहद्वृत्ति) - बालभाषा - व्याकरणसूत्रवृत्ति लघ्वर्हन्नीतिशास्त्र का प्रतिपाद्य कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र द्वारा ९१८ संस्कृत श्लोकों में विरचित कृति लघ्वर्हन्नीति चार अधिकारों में वर्गीकृत है। इसके चारों अधिकारों का शीर्षक १. भूमिका-भूपालगुणवर्णन, २. युद्ध तथा दण्डनीति, ३. व्यवहार अधिकार और ४. प्रायश्चित्त है। युद्ध तथा दण्डनीति एवं व्यवहार अधिकार में दो और शेष दो अधिकारों - भूपालगुणवर्णन और प्रायश्चित में एक-एक प्रकरण ही है। व्यवहार अधिकार उन्नीस प्रकरणों में वर्गीकृत है। प्रथम प्रकरण में व्यवहार मार्ग का स्वरूप और इसके अठारह भेदों का वर्णन किया गया है। शेष अठारह प्रकरणों में एक-एक विषय का वर्णन है। व्यवहार मार्ग के अठारह भेदों के शीर्षक इस प्रकार हैं - १. ऋणादानस्वरूप, २.सम्भूयोत्थान, ३. देयविधि, ४. दायभाग, ५. सीमा-विवाद, ६. वेतनादान, ७. क्रयेतरानुसन्ताप, ८. स्वामिभृत्यविवाद, ९. निक्षेप, १०. अस्वामिविक्रय, ११. वाक्पारुष्य, १२. समय-व्यतिक्रम, १३. परस्त्रीग्रहण, १४. द्यूत, १५. स्तैन्य, १६. साहस, १७. दण्डपारुष्य और १८. स्त्री-पुरुषधर्म। वर्ण्य-विषय की आवश्यकतानुसार आचार्य हेमचन्द्र ने एक विषय के लिये अधिकतम १४५ और न्यूनतम १२ श्लोकों का उपयोग किया है। इस दृष्टि से दायभाग सर्वाधिक विस्तृत (१४५ श्लोक) और सम्भूयोत्थान- प्रकरण, समयव्यतिक्रान्तिप्रकरण और द्यूतप्रकरण लघुतम आकार वाले हैं। इनमें प्रत्येक में श्लोकों की संख्या मात्र बारह है। लघ्वर्हन्नीति के प्रथम अधिकार 'भूमिकाभूपालादिगुणवर्णन' का आरम्भ मङ्गलाचरण, जिसमें प्रथम तीर्थङ्गर भगवान ऋषभदेव और अन्तिम महावीर स्वामी की स्तुति है तथा ग्रन्थ-निर्माण का प्रयोजन, राजगृह में महावीर आगमन, महावीर के समीप राजाश्रेणिक का आगमन, श्रेणिक का महावीर से प्रश्न और नीतिशास्त्र की उत्पत्ति के वर्णन रूप ग्रन्थ की भूमिका से किया गया है। इसके बाद राजा के छत्तीस गुण, राजा को नीति शिक्षा, राजा के पाँच यज्ञ, राजा को प्रजापालन की शिक्षा, मन्त्री के गुण, मन्त्री को शिक्षा, राजा और मन्त्री के गुणवान होने से राज्य को होने वाले लाभ, अच्छे सेनापति के लक्षण तथा सेनापति को शिक्षा, दूत के लक्षण तथा राज्य के अधिकारियों को सामान्य शिक्षा का निरूपण किया गया है। दो प्रकरणों-युद्ध एवं दण्डनीति-में वर्गीकृत द्वितीय अधिकार के प्रथम 'युद्ध प्रकरण' का आरम्भ जिन अजितनाथ की स्तुति से किया गया है। राजा और मन्त्री के गुप्त मन्त्रणा स्थल, त्रिविध नीति, षड्-अङ्ग, चतुर्विध साधन, साधन-लक्षण,

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