Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur

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Page 12
________________ ( ८ ) एक अमूल्य संग्रह हो जाता है। इन आलेखों में मुनिजी म. का भी सम्पादन-सहयोग प्रशंसनीय धर्म, दर्शन, इतिहास, साहित्य, विज्ञान आदि नाना रहा है। इस अभिनन्दन ग्रन्थ के सम्पादन का भार विषयों का समावेश होता है जो विशिष्ट सन्दर्भ वहन किया है-प्रतिभासम्पन्न साध्वी जी श्री ग्रन्थ का रूप ग्रहण कर लेता है। दिव्यप्रभाजी म. ने जो महासती श्री कुसुमवतीजी की शिष्या भी हैं। इस ग्रन्थ में सतीजी का परिश्रम ___ महासती श्री कुसुमवती जी म. सा. का जन्म व सूझबूझ स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। उदयपुर में हुआ किन्तु जिस समय आप तीन वर्ष ग्रन्थ के आशीर्वाद प्रदाता मार्गदर्शक सम्पादक की हुई उस समय आपके पिता का देहावसान हो मण्डल आदि के प्रति तो हम आभारी हैं ही, साथ गया। उसके पश्चात् आप अपनी माताजी के साथ ही हम उन विद्वद्रत्नों का भी हृदय से आभार प्रकट | उदयपुर में अपने ननिहाल में रहने लगीं। इस करते हैं जिनके सक्रिय सहयोग के परिणामप्रकार उदयपुर में ही आपका जीवन व्यतीत हुआ स्वरूप यह ग्रन्थ मूर्तरूप ले सका है। साथ ही अर्थ और यहीं आप महासती श्री सोहनकुंवरजी म. सा. सहयोगियों का भी हृदय से आभार प्रकट करते हैं। के सम्पर्क में आई तथा उनकी पावन निश्रा में जिन्होंने उदार हृदय से सहयोग प्रदान कर हमारी दीक्षित होकर जैन धर्म की महती प्रभावना कर कल्पना को साकार बनाया है। रही हैं। यहाँ उल्लेखनीय बिन्दु यह है कि आपकी ग्रन्थ को मुद्रण कला की दृष्टि से सर्वथा आकमाताजी श्री सोहनबाई ने भी उसी दिन जैन भागवती दीक्षा अंगीकार की थी जिस दिन आपने संयम र्षक बनाने का सम्पूर्ण श्रेय स्नेहमूर्ति श्री श्रीचन्द ग्रहण किया था। वे महासती श्री कैलाशकुँवर जी जी सुराणा 'सरस' को है। इसके साथ ही स्वल्पाके नाम से प्रसिद्ध हुईं। वधि में उन्होंने ग्रन्थ को तैयार भी कर दिया । ऐसे । सुराणा जी को धन्यवाद देकर या प्रस्तुत ग्रन्थ में राजस्थान केसरी अध्यात्मयोगी उनका आभार मानकर मैं उनका महत्व कम करना उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म. सा. का आशीर्वचन नहीं चाहता। वे हमारे हैं, हमारे रहेंगे। एवं साहित्य वाचस्पति उपाचार्य श्री देवेन्द्र मुनिजी ग्रन्थ के रूप में यह श्रद्धासुमन आपके हाथों में म. का समुचित मार्गदर्शन समय-समय पर मिलता है। विश्वास है कि यह ग्रन्थ भावी पीढ़ी का मार्गरहा है। उसी अनुक्रम में उपप्रवर्तक श्री राजेन्द्र दर्शन करने में सफल होगा। -सम्पत्तिलाल बोहरा अध्यक्ष तारकगुरु जैन ग्रन्थालय शास्त्री सर्कल उदयपुर ) O साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International randitadiseas e sBAADI For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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