Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur

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Page 10
________________ शुभ सन्देश मुख्य मन्त्री गुजरात सरकार यह जानकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हई कि परम विदुषी तथा आत्मद्रष्टा साधिका श्री कुसूमवती जी महाराज की दीक्षा के ५० वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में सार्वजनिक सम्मान के रूप में उन्हें जैन समाज द्वारा एक अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने का निर्णय किया गया है। जैन धर्म-दर्शन के उदात्त सिद्धान्त अहिंसा, सत्य, शील, सेवा, सदाचार के कल्याणकारी पथ पर जन-समुदाय को निरन्तर अग्रसर होने के लिए महान प्रेरणा प्रदान करने वाली श्री कुमुमवती जी वास्तव में सार्वजनिक अभिनन्दन की अधिकारिणी हैं। मुझे पूरी आशा है कि अपने सद्कार्यों के माध्यम से वे पुण्य प्रकाश-पुञ्ज वनकर जन समाज का पथ सदैव आलोकित करती रहेंगी। __ अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रकाशन की सफलता की मैं हार्दिक शुभकामना करता हूँ। - माधवसिंह मध्यप्रदेश, विधान सभा भोपाल दिनांक : २२-१०-८६ यह जानकर प्रसन्नता हुई कि परम विदुषी साध्वी रत्न श्री कुसुमवती जो महाराज के अपनी साधना के पचास वर्ष पूर्ण होने पर धर्मप्रेमी सज्जनों के सद्प्रयास से अभिनन्दन कार्यक्रम आयोजित किया गया है और इस अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करने का निश्चय किया गया है। यद्यपि पश्चिमी देशों की आधुनिकता के मोह में पड़कर हमारी धर्म-भावना और आस्तिकता दिशाहीन होती जा रही है किन्तु ऐसे समय में भी जिन साधु-साध्वियों और सन्त-महात्माओं ने धर्म के न मूल तत्व को हमारे समाज से जोड़ रखा है उनमें महासती कुसुमवती जी महाराज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अब जिस प्रकार से पश्चिमी विचार निस्सार सिद्ध होते जा रहे हैं इससे ऐसा संकेत मिलता है कि आत्मशान्ति और श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए पश्चिमी समाज को फिर से इन भारतीय मनीषियों के चरणों में बैठने को विवश होना पडेगा। मैं महासतीजी के चरणों में विनम्र प्रणाम प्रेषित करते हुए आपके आयोजन की सफलता की कामना करता हूँ। CHIEF JUSTICE जोधपुर Rajasthan १८ अक्टूबर, १९८६ महासती श्री कुसुमवतोजी ने अपनी संयमयात्रा के दौरान जैन दर्शन का गहन अध्ययन किया है। परम विदुषो होने के साथ-साथ वे उच्चकोटि की साधिका हैं। आगम धर्म का गहन ज्ञान और 10 तात्विक विवेचन आपके प्रवचनों में मिलता है और आपके ओजस्वी प्रवचनों के माध्यम से जन-जीवन को अध्यात्म के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है। उनकी दीक्षा के स्वर्ण जयन्ती के अवसर , पर उनका अभिनन्दन करना धर्मबन्धुओं के लिए सराहनीय कार्य है और इस अवसर पर उनके सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन भी समीचीन है। । साध्वी श्री कुसुमवती जी महाराज के चरणों में शत-शत वन्दन । -मिलापचन्द जैन .. लाश जोशी A साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International acordate & Ressonal use only www.jainelibrary.org

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