Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१७)
अवगुण जांही॥आडी दीजें नूंय घणी,दूर वसीजें जाइ ॥५॥ ढाल पूर्वती॥ इम मुगी ऊती नीसखो रेला ल, अमरष याणी शरीर ॥सु तेजी न सहे ताज पो रे लाल, हंस सहे नहीं बीर ॥सुमा ॥२०॥ आंख ऊघाडी चिंतवे रे लाल, धिधिग् वेश्या नेह ॥सु॥गिरिवाहला वादल बांहज्यु रे लाल,अंतें दीखा वे देह ।।सुमा०॥२१॥दोहा॥ वेश्यानेह जूधार धन, काती अंबर बार ॥ पाबल पहोर बनत घर, जा तां न लागे वार ॥ १॥ ढालं पूर्वली॥धनदत्तनुं घर पूबतो रे लाल, थावे मारग मांह ॥सु०॥नगरशेठ मल्यो तिसें रेलाल, कुमर पूढे वली राह ॥९॥मा० ॥२॥शेठ कहे जाणे नहीं रे लाल, तुं परदेशीलो क ॥ सु०॥ जुनुं दूलं घर तेहर्नु रे लाल, नाम गडे वली फोक ॥
सुमा०॥२३॥ शेठ शेगणी बे मूओं रे लाल, निवडयो पुत्त कुपुत्त ॥१०॥धन खाधु संघ
तिणे रे लाल, वेश्यासेंती विगूत ॥१०॥मा॥२४॥ निज श्रवणें अवगुण सुख्या रे लाल, धिधिग मुज अवतार स॥नयंणे बे यांस जरे रे लाल, जाणे मोतीहार ॥सु०॥मा॥२॥ तीरथनत पिता कह्यो रे लाल, वली विशेषे मात ॥॥ न करी सेवा चाकरी
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