Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४०) ॥ २॥ थे जो गुणह गंनीर, जाणो वात त्रिवन त पीजी ॥ माहरी नणदनो वीर,कहोने वीरा कदि या वशेजी ॥३॥ मानीश तुज नपगार,देश सखर वधा मणीजी ॥ जाणो ज्योतिष सार, कहो फल पीयर माहरांजी ॥४॥ वरष पूरा दूवां बार, पीयु चाल्यो परदेशडेजी॥ नावी चीही समाचार, सार सुधी काहिं नहींजी॥५॥ चाल्यो धननें काज,माहरो वरज्यो नवि रह्योजी॥ देश विदेशांमांज,घरे घरगी किम होशेजी ॥ ६॥ वाये तू उनाले, वरसालें मेह ऊरहरेजी॥शी त पडे शीयाले, किम सहेशे नाह माहरोजी॥ ७॥ सूती पहुं जंजाल,जाएं पियु घर भावीयोजी॥ हसी मलीयो हेजाल,जबकी जागी देखू नहींजी॥॥ दैव न दीधी पाख, नहीं तो कडी म नाहनेंजी ॥ जो, जरीनरी आंख, बोडुं न पासो जीवतीजीए॥ सही न देती शीख,पहेली इम जो जाएतीजी॥नरण न देती वीख, बेहडो जाली राखतीजी ॥ १०॥ किम जाये जमवार, वरष समी वोले घडोजी॥नाह विद एनार, रस विण जाणे शेलडीजी॥ ११॥ अंगून नी बाग,कदी थावे माथा लगेजी। पियु विण नहीं सौनाग्य,यौवनियु किम जायशेजी॥ १॥ न रहे को
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