Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 49
________________ (४ ) ग्य दशा ए जागी माहरी रे ॥ ए 'यांकणी ॥ राजा मन हर खिन दून रे, कौतुक लोक निहाले रे ॥ गो दडीमां गोरख सही रे, अर्जुन जे गाय वाले रे॥ तो रे ॥ २ ॥ रतन जतनशुं संग्रही रे, चाल्यो घणो गहगाट रे ।। पेठो नदीमा पाधरो रे,फाटयु जल दश वाट रे ॥ तोरे० ॥ ३ ॥ तेतू मत्स अलगो रह्योरे, जल विण जोर न कोइ रे ॥ लूटयो सींचाणक हाथीयो रे. जलमांहे पसखो सोइ रे ॥तो॥॥ हरख्यो नगरी नो राजीयो रे, हरख्यां नगरी लोक रे ॥ दरबारें या एयो हाथीयो रे, पुण्ये टले रोग शोक रे॥ तोरे॥५॥ कंदोनें कहे राजवी रे, किहांथी रतन अमूल रे ॥ कहे साचुं नहीं तुं नणी रे, मारीश कूडे बोल रे॥ ॥ तोरे० ॥ ६ ॥ लक्षणाथी देणे पडयुं रे, मनमा र ही सदु श्राश रे ॥ हैहै दैव तें झुं कीयु रे,नांग्यो मां मयो घरवास रे ॥ तोरे ॥ ७ ॥ कूड कपट जायगा नहीं रे, कूडे विणसे गोठ रे॥ होठ ध्रुजे कूडं बोलतां रे, कूडे पडे नाव नोठ रे । तोरे०॥ ॥ साच वडुं सं सारमा रे, साचे बीक न शंको रे ॥ फुरे साच वाच जतीसतीरे,धन्य साच काच निकलंको रे ॥तोरेगा। मंत्र यंत्र फुरे साचथी रे,साच सम मित्र न कोय रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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