Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 76
________________ (७५) पार उतरशे, अविचल शिव सुख वरशे जी ॥ धन्य कयवन्नो करी ए करणी, सुणतां दुवे पुण्य नरणी जी ॥ध० ॥ ७ ॥ जोगी नोगी या नर जाजा, पए ए सदु शिरराजा जी ॥ उत्तम साधु तणा गुण गाया, अनंत लान सुख पाया जी ॥ध० ॥ ॥ ॥ दान तणुं फल प्रत्यक्ष देखी, द्यो दान सुवि शेषी जी ॥ परें सूधी नावना नावो, ज्युं मन वं बित पावो जी ॥ध० ॥ए ॥ कवियण वचनें रच ना कीधी, सरस चौपै ए सीधी. जी ॥ मिहाडक्कड अधिके ने, में दीधो गुन शोचें जी॥ ध० ॥१०॥ संवत सत्तरशें एकवीशे, बीकानेर सुजगीरों जी ॥ आदीश्वर मूलनायक सोहे, नर नारी मन मोहे जी ॥ध० ॥ ११ ॥ ए संबंध रच्यो हित काजें, श्रीजिए चंद सूरिराजे जी ।। नएतां गुणतां बहु सुखदायी, सु जो चित्त लगाइजी॥ध० ॥१२॥ श्रीजिराचं सूरि सुखदाइ, सुरतरु साख सवार जी॥ वाचक श्री नयरंग विख्याता, वडवडा जस अवदाता जी॥ध. ॥ १३ ॥ विमल विनय तमु शिष्य बिराजे, वाचक अधिक दिवाजे जी ॥ श्रीधरम मंदिर वैरागी, तास शिष्य वड नागी जी॥ ध० ॥ १४ ॥ महोपाध्याय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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