Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्री॥ शेठ कयवन्ना शाहनो रास. दानफल महात्म्यरूप. तेने यथायोग्य संशोधन करीने श्रावक भीमसिंह माणके श्री मुंबईमध्ये निर्णयसागर मुद्रायंत्रमा मुद्रित कराव्यो छे. संवत् १९४१ ना पौष शुद्ध ९ भृगुवासर, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्री सर्वज्ञाय नमोनमः॥ ॥ अथ ॥ ॥ श्री कयवना शाहनो रास प्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ स्वस्तिश्री सुखसंपदा, दायक अरिहंत देव ॥ से व करूं सूधे मने, नाम जपुं नित्यमेव ॥ ॥ सम रुं सरसति सामिनी, प्रणमुं सदगुरु पाय ॥ कयवना चापै कहूं,दान धरम दीपाय ॥ २॥ प्रथम वही धुर मांमीयें, गौतम स्वामीनी लब्धि ॥ सुरगुरुसम श्रीप नय कुमर, मंत्रीतरनी बुद्धि ॥३॥ अखुट अत्रुट नं मार सब, शालिननी झदि ॥ कयवन्ना सौनाग्य तिम, नाम जीये दि सिदि॥॥ वारे श्रीमहावीर नै, श्री श्रेणिकने राज ॥ नोगी नमर नर. ए थयो, सायां आतम काज ॥ ५॥ ॥ ढाल पहेली॥ कर जोडी बागल रही ॥ए देशो॥ ॥नगरी राजगृही नली,सुर नगरी सम शोहे रे॥ राजा राज्य प्रजा सुखी, सुर नरनां मन मोहे रे ॥ न गरी० ॥ १ ॥ धनदत्त शेठ वसे तिहां,रि समृस. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नूरो रे ॥ कोटीध्वज व्यवहारियो, राजा मानें पूरो रे ॥नगरी॥२॥ चंवदनी मृगलोचनी, सती वसुमती तस नारी रे॥ देव धरम गुरु रागिणी, नमणी खमणी सारी रे॥नगरी॥३॥ गालि रालि मुखथीन नीसरे, उंचे साद न बोले रे ॥ कुलवंती सौनागिणी, तेहने कोई न तोलें रे ॥नगरी॥४॥ सुखलीलानर विलस ता,नपन्यो गर्न उद्योती रे ॥ सूर्यबिंब ज्युं पूरवें बीप शोहे जेम मोती रे ॥नगरी॥५॥ निशि नर सूती निं दमें,चं स्वपन तेणें दी रे॥ ज जणाव्युं नाथने, फल नांरख्यु पीयु मीतुं रे ॥नगरी॥६॥ त्रोजे मासे मोहलो,उपजे गर्न प्रजावें रे॥चोरी चुगली नवि सुणे, तप जप शीयल सुहावे रे ॥नगरी॥७॥ देव गुरु वांदे सासता, धर्मे अमारि पलावे रे ॥ जिन पूजा यात्रा वली, दान मानें सुख पावे रे ॥नगरी॥७॥ श्रघर णी आबरें, कीधी शेठें ताजी रे ॥ ताजे जाजे नो जनें, सघना कीधां राजी रे ॥नगरी॥ए॥ हवे पूरे मासे दुवे, ग्रह श्राया उंचराशे रे॥ गुन लगन वेला घडी, पुष्य नक्षत्र चंपासें रे ॥ नगरी० ॥१०॥ तिण वेला तिण वसुमती, बेटो सखरो जायो रे ॥ तेजें करी तनु दीपतो, सूरज जेम सवायो रे ॥ नग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३ ) ० ॥११॥ रंग रली वधामणां, मंगल गावे गोरी रे ॥ नानाविध नाटक करे, बांध्यां तोरण कोरी रे | नगरी० ॥ १२ ॥ कुलदीपक सुत जनमीयो, वाग्यां ताल कंसा जो रे || पहेली ढाल पूरी थई, जयतसी रंग रसाज़ो रे ॥ नगरी० ॥ १३॥ ॥दोहा॥ ॥ दशोटण देवांगना, करी सघनां विधि काम ॥ मावित्र दीधुं ननुं, कयवन्नो तस नाम ॥ १ ॥ दिनदिन वाधे चंड् ज्युं, चढते चढते वान || पांच धायें पाली जतो, लाड कोड बहुमान ॥ २ ॥ याव वरसनो ते थयो, नणे निशाल पोसाल ॥ सकल कला शीखी नजी, विद्यानो बहु ख्याल ॥ ३ ॥ सोनागी शिर से हरो, रूपें देव कुमार ॥ जणी गणी पंमित थयो, जोबनमें सुविचार ॥ ५॥ ॥ ढाल बीजी ॥ थाहारा महेला उपर मेह, ऊ रूखे वीजली हो लाल ऊ०॥ ए देशी ॥ ॥ वसुमती सती एकदिवस के, गजगति मलपती दो जाल के गजगति मलपती ॥ खाई प्रीतम पास, बोले जेम सरसती हो लाल ॥ बो० ॥ स्वामी सुलो घरदास, पूरो यारा माहरी हो जाल ॥५०॥ परणावो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) कृतपुण्य, बेटी जुवो शाहरी हो लाल ॥बेटी०॥१॥ वहूअर विण घरवास, शूनो रण जाणीय हो लाल ॥शूनो॥ वदूधर पडे मुज पाय, तो विकसे वाणी दो लाल ॥तो वि०॥ वहू परणे जो पुत्र,देखुं हुं पोतरो हो लाल ॥दे॥ रहे आपणुं घर नाम,वली वंश गो तरो हो लाल ॥वली॥॥ धनदत्त मानी वात,जोशी तेडी करी हो लाल ॥जोशी॥ सागरदत्त वड शाह, मागी तस दीकरी हो लाल॥मागी॥ कुंवरी जयसिरि नाम,रूपें देवकुंवरी हो लाल ॥ रूपें ॥ परणावी धरी प्रेम,बारिम कारिम करी हो लाल ॥धारि॥३॥ कुन वंती गुणवंती, शीलें सीतासती हो लाल ॥ शीलें ।। चौशल कलानीजा, वागीयमीरस वरसती हो ला लावाणी ॥ नारीने जरतार, जोडी सरखी जडी हो लाल ॥ जोडी॥ हर गैरीि राधा कृष्ण,काम रती पर गडी हो लाल ॥काम॥४॥ हर्षित दूध मावित्र,सुज श जग विस्तखो हो जाल ॥ सुज०॥ दीधो महेल या वास, चित्रामें चितस्यो हो लाल ॥चित्रा॥ जाणे देव विमान, दीसे ए दूसरो हो लाल ॥ दीसे ० ॥ अलमल फलके जोर, धूनो नवि धूसरो हो ताल ॥धूनो॥५॥ विच हिंमोला खाट,सोने रतने जडी हो लाल सोने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५ ) 0 ऊल के हीरा लाल, मोती लड परवडी हो लाल ॥ मो ती ॥ रंग रली दिन रात, हिंचे वींद वींदणी हो लाल ॥ हिंचे ॥ चूवा चंदन चंपेल, सुवास महके घणी हो लाल ॥ सुवा ॥ ६ ॥ सकन पुरिजन लोक, सदु संतोषी या हो लाल ॥ सदु० ॥ ताजां करी पकवान, नली परें पोषीया हो लाल ॥ जली० ॥ कीयो सखरो विवाह, शोना जस महमहे हो लाल ॥ शोना० ॥ बीजी जयत सी ढाल, कही मन गह गहे हो लाज ॥ कही० ॥ ७ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ वली बजा पंमित कनें, शीखे शास्त्र उदार ॥ रहे विषय वेगलो, कयवन्नो सुकुमार ॥ १ ॥ विद्याशुं रातो रहे, मनमें नहीं विकार || देखी जयसिरि दिन घणे, सासूने कहे सार ॥ २ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राग सारंग ॥ यारी गंगीरी कस चंगी, सुगुणा सावटु मारुजी ॥ ए देशी ॥ ॥ महारो नाह नगीनो जाणे, सुगंधो केवडो ॥ सासुजी ॥ सोनागी वडनागी, नहीं को एवडो ॥ सा० ॥ ॥ १ ॥ ए पीतलीयो देव, रंगीलो साहिबो ॥ सा०॥ मुं जनुं वात न चित्त, नहीं कोइ बाहिबो ॥ सा० ॥२॥ बोले न मीग बोल, न खोले दियडलो ॥ सा० ॥ पीन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डो न करे सार,कुःखी रहे जीवडो॥ सा ॥३॥ मु जणुं न करे राग, वैरागी सारीखो ॥ सा० ॥ जोग स जाइ बोडी, जोगीसर आरोखो ॥ सा॥४॥ करे विद्या अन्यास, ए पोथी पिंमीयो॥ सा० ॥ न रहे घरमा जाणी, वटान हिंमीयो ।सा॥५॥ ढुंतो सुगंधी जाइ, नमर नहीं जोगीयो ॥सा॥ मुजने न माने नाह, रहे वियोगीयो । सा० ॥ ६ ॥ जले सुरंगी देह, सु यौवन जागीयो ॥ सा ॥ हुँ कुलवंती नारी, नाह नीरागी यो । सा० ॥ ७ ॥ दूई चिंताजोर, के काली कोयली॥ सा॥ सखी सहेली साथ,हसे दुं दोहलीसा॥ नयणे नावे निंद, के सूतां सेजड़ी।सा॥ जांखर थ जूरी जूरी, हुँ रत खेजडी ॥ सा० ॥ एराचे न रूप सरूप, खल गुल सारिखो ॥ सा॥ समजे न संसार वात, जोयो में पारिखो। सा० ॥ १०॥ ए नहीं ब यल बबाल, बयलमां पूतडो॥ सा॥ न रुचे सरस सवाद, जाणे नई नूतडोसा॥११॥ जातां न कहे जाने, श्रावो नहीं आवतां॥ सा० ॥ नहीं नयणानुं हेज, न खाता पीवतां ॥ सा० ॥ १२॥धापणी जांघ नघाड, करुं नहीं लाजती॥सा ॥ थां धागें कही वात, बीजागुंजाजती ॥ सा०॥१३॥ वदूधरना बहु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोल, शेवगणी सांजली ॥ सा॥शेठ नणी कहे वा त, के फुःखनर थाकुलीसा॥१४॥ करो कोइ दाय उपाय, ज्युं सुःख दूरे दुवे ॥ सा०॥ बाज लगें नोलो ए, वहूने उहवे ॥सा॥१५॥ बोले शेत विमास, व्य सन कोण शीखवे ॥ सा॥ ए अशीखी वात, स हनें संनवे ॥ सा ॥१६॥ कुण शिखवे गति हंस,न मर जोगी नला॥सा० ॥ मोर पीड चित्राम, चोर . चोरीकला ॥ सा॥१७॥ सुगीने शेठनी वाणी, रीशाणी सुंदरी॥ सा०॥ जयतसी त्रीजी ढाल, कही ए बंदरी॥सा० ॥१७॥ ॥दोहा॥ ॥ वयण घणां शेजें कह्यां, पण समजे नहीं ना र ॥हत जाले नारी जिको, नवि मूके निरधार ॥१॥ नट विट लंपट लालची, जूआरीने लडाक ।। व्यसनी तेड्या धनदत्त, जेह चढावे चाक ॥२॥ मोहवशे ध नदत्त नणे, कयवन्नो सुकुमाल ॥ माल घणो लश्शी खवो, व्यसन कला ततकाल ॥३॥ ॥ढाल चोथी॥ राग केदारो॥ नदी यमुनाके तीर, उडे दोय पंखीयां ॥ए देशी॥ ॥ कुमर पासें रहे बाय के, दिनने रातडी ॥ व्य Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सने पाडे पास, करे रंग वातडी ॥१॥ करे माहोमांहे गोत, मसी सदु गोतीया ॥ खावे पीवे दिन रात, लूटा जिम पोठीया ॥२॥ पुहा कवित्त कनोल, गाहा गूढा वली ॥ हास्य तमासा ख्याल,खुशी खेले रली ॥३॥ यावीचोपड़ मामी, सारि पासा रमे ॥ उडे होडाहोड, कोडा कोडी धन गमे ॥४॥ हारे जीते एक, खेले व ली जूवटां ॥ करे मदिरापान, पडे जिम नवटा ॥५॥ • एक घालापेराग,काफीनट कान्हडा ॥ तन नन रीरी रीरी, करे तान मानडां ॥६॥ चटपट ताल कंसाल, धप मप मामलां ॥ ढम ढम ढमके ढोल, गाजे जि म वादलां ॥७॥ ततथेई नांचे पात्र, हाथ लटकावती ॥जयलने पाडे पास,यांख मटकावती॥॥पीवेनां ग तमाकु, तणां वली गेतरां ॥ नरक तणा व्यापार, जाणे दाहोत्तरा ॥७॥ गट गट पीवे दूध, दहींनां मा टकां ॥ नरे कसुंबा चूंट,नरी नरी वाटका ॥१०॥ मलमें जाणे कोश,घूमे नूतडा ॥जुलीखुली पडे मुख लाल,खरा ते विगतडा ॥११॥ हवे रहे तियांरे साथ, मातो मदमां नरो ॥ कयवन्नो दुजेम,योगीनो वान रो ॥१॥ विणसे मीठो दूध, बिंड कांजी तणे ॥ क स्तूरी कपूर, लसण परिमल हणे॥१३॥ गंगा जल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खूण संगें, सही खारो दुवे॥ कुरंग संगी चंद,कलंकी जन चवे ॥ १३॥ नट विट साथे कुमार, थाव्यो वे श्याघरें ॥ देवदत्ता तिहां देखी, आगत स्वागत करे ॥१५॥ नक्ति युक्ति हाव नाव, मुखें जीजी करे ॥ वे श्या धूतारी नारी, दीनां तन मन हरे ॥ १६ ॥ पाडे मृग ज्युं पास, बोले विकसी हसी ॥ म करो इणरो संग, चतुर कहे जयतसी ॥ १७ ॥. ॥दोहा॥ ॥ चंवदनी मृगलोयणी, रूपें गोरी रंन ॥ कय वन्नो नोगी नमर, देखो धरे अचंन ॥१॥.. ॥ ढाल पांचमी॥ राग शोरठ मलार मिश्रं ॥ - चालरी वरीयां नहीं हो लाल, धणवारी लाल चलण न देगुं ॥ ए देशी॥ ॥ कर जोडी वेश्या कहे हो लाल, हूँ थारे बलि हार हो ॥ कयवन्ना शाह, नले रे पधाखा बाज ॥ ढुं दासी बु ताहरी हो लाल, थें मुज प्राण आधार हो ॥ कय ॥१॥ ए मंदिर ए मालियां दो लाल, एह हिमोला खाट हो ॥कय॥ तन मन धन ए थां हरांहो लाल, हसो वसो गहगाट हो ॥ कय॥॥ हाव नाव वचनें करी हो लाल, चोरी लीयो तमु चि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) त्त होकय०॥ कयवन्नो वेश्या घरें हो लाल, मोह। रह्यो धरी प्रीत हो ॥कय॥३॥ दासी निजघर मूकी ने हो लाल, अणावे धन कोडी हो ॥कय॥ मनवंडि त लीला करे हो लाल, ए बिहुँ सरखी जोडी हो । कय० ॥४॥ घर कुटुंब सदु वीसयां हो लाल, परणी मूकीवीसार हो ॥कय॥ मावित्र मूक्यां बापणां हो लाल,धिधिग् काम विकार हो ॥ कय॥५॥ खाणां पीणां खेला होलाल, रंग रातां धन जोडि हो । कया मावित्र तमु धन मोकले हो लाल, वरसां व रस एक कोडि हो ॥ कय० ॥६॥ बार वरस वोठ्या तिकें दो लाल, मावित्रं करी नेह हो ।कय॥ दासी मेली सुत तेडवा हो लाल, श्रावो पापणे गेह हो । कयामावित्र इयां मोसला हो लाल, करो घर घरणीनी सार हो॥ कय० ॥ कयवन्नो माने नहीं हो लाल, दासी पानी गइ हार हो ॥कय॥॥ वेश्यागुं रातो रहे हो लाल,जिम नमरो वनराजि हो ॥कय॥ बोडयां मावित्र आपणां हो लाल,डोडयां सदु लाज का ज हो॥कय॥ए॥ ब्रूमा ते नर बापडा हो लाल,जे करे वेश्यागुं रंग हो।कया पांचमी ढाल वेश्या त जो हो लाल, जिम पामो जयरंग हो ।कया ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) ॥ दोहा ॥ ॥ दासी उदासीन मन, वात कहे घर आय ॥ कु मर वेश्यायें नोलव्यो, धावण वात न कांय ॥ १ ॥ वात सुणी माता हवे,करे विविध विलाप ॥ बाप क माया कम्मडा, करे घणो पश्चात्ताप ॥ २॥ ॥ ढाल नही॥राग देशाख, घरें यावो मन मोहनां दो धोटा ॥ए देशी॥ ॥ तुं जीवन तुं यातमा हो बेटा, तुं मुज प्राण थाधार बेटा ॥ सास तणी परें सानरे हो बेटा, तुं वसे हियडा नार बेटा ॥१॥ घरें श्रावो रे मन मोहन बेटा॥ एयांकणी॥तिलजर जीव रहे नहीं बेटा, किम जावे जमवार बेटा॥ एकरसो आव यांगणे बेटा, कर माय डीनी सार बेटा ॥घरें॥२॥तुं मुज यांधा लाकडी बेटा, कालेजानी कोर बेटा ॥ यांत्रचूहण तुं माहरे बेटा, किम होये कठिण कठोर बेटा ॥ घरें ॥३॥ कुण क हेशे मुंज मायडी बेटा, कुणने कहीमु पूत बेटा ॥ एकें जाया बाहिरो बेटा, नवि रहे घरनुं सूत बेटा॥ घरें ॥ ४ ॥ तुं पुत्त नोजननें समे बेटा, हीयडे बेसे थाय बेटा ॥ जो माता करी लेखवे बेटा, तो घर बाय वसाय बेटा ॥ घरें॥५॥ साले साल तणी परें बेटा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२) ए घर थाहीतगण बेटा ॥प्राण दोशे हवे प्रादुणा बे टा, तुं मन जाए म जाण बेटा ॥घरें॥६॥ हुँ मोसी तुज तातडो बेटा, नयण गमायां रोय बेटा ॥ घर शूनं करी गयो बेटा, रह्यो परदेशी होय बेटा॥घरें॥॥ बालपणे दु जाणती बेटा,करशे बूढापण सेव बेटा॥ बोरु कुबोरु दुवे बेटा, न गणें तुं मा गुरु देव बेटा॥ घरें० ॥ ७॥ जो बालापण साजरे बेटा, शीयालानी रात बेटा ॥ तो बोडे नहीं मातने बेटा, चढयु कलंक विख्यात बेटा ॥ घरें ॥॥ पाली लाली महोटो कि यो बेटा, धोयां मलने मूत्त बेटा ॥ सगाइ गाइमांग णी बेटा,तुं मारे घरनुं सूत्त बेटा ॥ पागंतरें ॥ खूतो वेश्यागुं विगुत्तं बेटा ॥घरें ॥ १० ॥ वद रतन ए ताहरी बेटा, सुगुण सती सुकुलीय बेटा ॥ को ल ज्युं काली दुबेटा, विरहिणी जूरी जूरी दीण बेटा ॥ घरें ॥११॥ नीचनो संग करावीयो बेटा, ते फल लागां एह बेटा ॥ पाणी पीने घर पूq बेटा, दू उखाणो तेह बेटा ॥ घरें ॥ १२ ॥ जो विहडे पेटज थापणुं बेटा, तो कलि कथल होय बेटा ॥ ए उखाणो हां करो बेटा, ते साचो दु जोय बे टा॥बरें॥ १३ ॥ ढुं पापिणी सरजी अबु बेटा,कुःख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) देखणने काज बेटा ॥ फुःखीयाने उताव बेटा,मरण न ये महाराज बेदा ॥ घरे॥१४॥ आप कमाइ ए सही बेटा, इहां नहीं किणरो दोष बेटा ॥ पापी जीव रहे नहीं बेटा, सास दुवे तां शोष बेटा ॥ घरें ॥ ॥ १५ ॥ देव गुरु शीख माने नहीं बेटा, माने नहीं मावित्त बेटा ॥ ढाल बही कहे जयतसी बेटा, ए व्यसनीनी रीत बेटा ॥ घरें ॥ १६॥ ॥दोहा॥ ॥ फररी पूरी पिंजर दूओं, बूढां पण मावित्र ॥ पण पाडो आव्यो नहीं कयवन्नो धरी प्रीत ॥१॥ मात पिता बेदु थयां, काल धरम व्यवहार ॥ कय वन्ना- नारी घरें, पाले कुल आचार ॥ २ ॥ नारी धन मूके तिहां, तिमहिज पतिने सार ॥ धन वीत्युं तब यानरण, भूके सती शणगार ॥३॥ घरेणां गांठां दे खीनें, अक्का करे विचार ॥ घर खाली दू एहनु, नहीं कमावणहार ॥४॥ करे घर बेठी कांतj, लही आपणो प्रस्ताव ॥ विरहिणी नारीनो सही,एहिज मूल स्वनाव ॥५॥ अनुक्रमें अकायें सुणी, मरणवात मा वित्त ॥ दवे स्वारथ अण पूगते,जोजो करे कुरीत॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) ॥ ढाल सातमी ॥ अलबेलानी देशी ॥ ॥ हवे ते अक्का मोकरी रे लाल, बेटी कहे ते डि ॥ सुविचारी रे ॥ कयवन्नो निर्धन दुळ रे लाल, बांम तुं एहनी केडि ॥सु०॥१॥ माने वात तु माहरी रे लाल ॥ म करे एहनो संग ॥सु०॥ रहेजे रीश जरी रूशणे रे लाल,करजे रंग विरंग ॥ सुमा ॥२॥ माल विना ए मुथा जिस्यो रे लाल दीगे न थावे दाय॥सु॥ अखट ए असुहामणो रे लाल, काढीश कूटी धकाय ॥सु० ॥ मा० ॥३॥ व्यसनीने वेषरची वली रे लाल, मरे न बोडे मंच ॥सु० ॥ स्वारथ विए किए कामनो रे लाल, नगलो कर संच ॥सु॥ मा०॥॥ किण किणनें चीतारस्यां रे लाल,लख आवे लख जा य ॥सु०॥ नाई मूमे नव नवा रे लाल,वेश्या गिगि खाय ॥९॥मा॥ ५ ॥ कहे बेटी सुणो मातजी रे लाल,ए सुकुलीण सुजात ॥सु०॥ नेह न बूटे एहनो रे लाल, पडी पटोले नात ॥९॥ मा० ॥ ६ ॥ मन मान्यो ए माहरे रे लाल, बीजो नावे दाय ॥९॥ जिम नयणां विच पूतली रे लाल, तिम तन मनने सुहाय ॥ सु०॥ मा० ॥ ७ ॥ लागो रंग मजीठनो रे लाल, बगेह लागे जिम जीत ॥सु०॥ वलगी रहें वेली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुंखा रे लाल, जिम कागलगुं चीत ॥९॥ मा० ॥ ॥ ॥ करतार जरतार ए सही रे लाल, न रहे इण विण जीव ॥सु०॥ बोडुं नहीं हुँ जीवती रे लाल,सा चो रंग सदीव ॥ सुमागाणा एक दिन जो अलगो रहे रे लाल,तो नयणें नावे नींद ॥सु०॥ कूड कढुं तो बाखडी रे लाल,दू वींदणीएवींद ॥सु०॥मा ॥१०॥ रहे रहे बानी बोकरी रे लाल,मोकरी बोले एह ॥९॥ नाचणरो किशोराचणो रे लाल, ज्या लागो त्या नेह ॥ सु०॥मा०॥ ११ ॥रीश त्रिशूलो चाढीयो रे लाल, करी यांख्यां राती चोल ॥ सु०॥ गालो राम बोले घ गी रे लाल, जाणे फूटो ढोल ॥सुगमा०॥१॥ मो सो पोसी पापिए। रेलाल,न चले बेटी जोर ॥सु०॥ बुड बुड बुड बुड बोलती रे लाल, सुखणी मांमयो सोर ॥सुआमा०॥१३॥ कयवन्ना नपरें हवे रेलाल, करे तोबारण.गेर ॥ सु०॥ बेटी रोवे देखीने रे लाल, ज्युं पग देखी मोर ॥सुमा०॥ १५ ॥ रूती कूती जेहवी रे लाल, खूती लोन लबक ॥सु॥ य का उबलका यागती रेलाल, करे तडक भडक । सुमा॥१॥ पापिणी सापणीज्यं उबले रेलाल, लागुंजाणे नूत॥सु०॥ कहे पडयो रहे घेरमें रेलाल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोगी सोगीरो सूत्त ॥ सुमा०॥१६॥ घर शूरो मठ पिंमीयो रे लाल, वात करे अदनत ॥सु बलीन बाटी नथले रे लाल, खाधो पीधो धन सूत ॥९॥ मा०॥१७॥ यतः॥ वस्त्रहीनोऽह्यलंकारो, घृतहीनं च नोजनं ।। कंठहीनंच गांधर्व,नावहीना च मित्रता॥१॥ धूत्ताधूत्त नंमा नंमः, बेलामांहि बयत ॥ एता बंदा चालवे, तोतुं नाह बयल ॥२॥ ढाल पूर्वती ॥ लूखो शूको नावे नहीं रे साल,ताजां धान्य घृत गोल॥सु०॥ अमल यानां रूडां लूगडां रे लाल,जोजें तेल तंबो ल ॥९॥ मा० ॥१॥ सरशे वरशे तो विना रे सा ल, जा पापणें घर बार ॥सु०॥ मावित्र मूषां ताह रां रे लाल, कर घर कुन याचार ॥सु०॥मा०॥१॥ ॥दोहा॥ संवन तिहां न जायें,जिहां कपटका हेत। ज्यांलो कली कणेरकी,तन राता मन श्वेत ॥ १॥ हं सा तो तब लग चुगे,जब लग देखे लाग ॥ लाग विदू णा जे चुगे,हंस नहीं ते काग ॥॥ बग उमाया बा पडा,क्षण सरोवर ण तीर ॥ हंस जमरा सव किम सहे, अमरष जाह शरीर ॥३॥ लीह नहीं लका नहीं, नहीं रंग नहीं राग । ते माणस तिम बंमियें, जिम अंधारे नाग॥॥कडुयां फलां कुमाएसा,जास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) अवगुण जांही॥आडी दीजें नूंय घणी,दूर वसीजें जाइ ॥५॥ ढाल पूर्वती॥ इम मुगी ऊती नीसखो रेला ल, अमरष याणी शरीर ॥सु तेजी न सहे ताज पो रे लाल, हंस सहे नहीं बीर ॥सुमा ॥२०॥ आंख ऊघाडी चिंतवे रे लाल, धिधिग् वेश्या नेह ॥सु॥गिरिवाहला वादल बांहज्यु रे लाल,अंतें दीखा वे देह ।।सुमा०॥२१॥दोहा॥ वेश्यानेह जूधार धन, काती अंबर बार ॥ पाबल पहोर बनत घर, जा तां न लागे वार ॥ १॥ ढालं पूर्वली॥धनदत्तनुं घर पूबतो रे लाल, थावे मारग मांह ॥सु०॥नगरशेठ मल्यो तिसें रेलाल, कुमर पूढे वली राह ॥९॥मा० ॥२॥शेठ कहे जाणे नहीं रे लाल, तुं परदेशीलो क ॥ सु०॥ जुनुं दूलं घर तेहर्नु रे लाल, नाम गडे वली फोक ॥ सुमा०॥२३॥ शेठ शेगणी बे मूओं रे लाल, निवडयो पुत्त कुपुत्त ॥१०॥धन खाधु संघ तिणे रे लाल, वेश्यासेंती विगूत ॥१०॥मा॥२४॥ निज श्रवणें अवगुण सुख्या रे लाल, धिधिग मुज अवतार स॥नयंणे बे यांस जरे रे लाल, जाणे मोतीहार ॥सु०॥मा॥२॥ तीरथनत पिता कह्यो रे लाल, वली विशेषे मात ॥॥ न करी सेवा चाकरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) रे लाल, नली न कीधी वात ॥सुमा०॥२६॥ इम चिंतवतोयावीयो रे लाल,निजघर बार कुमार ॥सु॥ शिर धूणी सोचे घj रे लाल, जोतो पोति प्रकार ॥सुआमा॥७॥ पडया पली पण पाधरो रे लाल, चाले चतुर सुजाण ॥सु०॥ व्यसन साते तजो सातमी रे लाल, ढालें जयतसी वाण सु०॥मा० ॥२०॥ . . ॥दोहा॥ ॥धणी विदूणां धवल घर, ढह दूथा ढम ढेर ॥ दू आमण दूमणो, देखि देखि चन फेर ॥ १॥ जि ण घरमें वत्ती दीसता, जाजां दासी दास ॥ गह मह शोना वगइ, देखी दू उदास ॥ २ ॥ “यतः॥जिए के खंधे कूदते, करते लाड हजार ॥ लाडणहारे रह गए, गये लडावणहार ॥३॥" हवे एकांतें बारणे, उ नो रही अमोल ॥ कुंअर कानें सांजले, निजनारीना बोल ॥४॥ कहे कामिनीसूडाजणी, ऊन ऊठ प्रना त॥ रंग रंगीला सूअडा, सुण सुण मोरी वात ॥५॥ ॥ ढाल बाग्मी॥राग गोडी, सोरत मिश्रा सुवडानी देशीमां ॥ ॥सुण सुण सूवटीया, सूवटीया नाई॥तुंबे चतुर सुजाण होरेहां,रूप रूडं रंलीयाम[सुसू०॥ मीठी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ (१ए) तोरी वाणि होरे हां, बोले जीनडी पडवड़ा सु॥१॥ ॥सू०॥ नीली थारी पांख होरे हां, चांच राती तीखी ताहरी ॥९॥सू०॥ रुडी थारी आंख होरे हां, राती माती रंग वाटली ॥सु॥शासू॥ सोने मढा ताहरी चांच होरे हां, दूधे पखा ताहरी पांख ॥९॥सू॥ तुने बिना हाथ होरे हां,विनतडी सुण माहरी|सु०॥ ॥३॥सू॥ मानीश तुज नपगार होरे हां,जाये जिहां पियु माहरो॥९॥सू०॥ उडे पांख पसारी होरे हां,म करे ढील तुं मारगें।सु०॥॥सू.०॥ कहेजे मुज संदेश होरे हां अबला तुज घर एकली।सुासू॥ विर हिं गीने वेश होरे हां, फुरी फुरी जंखर नंखरी ॥ सु॥ ॥५॥ सूतजीयां तेज तंबोल होरे हां,खानां पीनां खेलगां ॥॥॥ बांच्या अंग रंगरोन होरे हां, पीठी अंजए मंजणां॥ सु०॥६॥ सू०॥ तोडया हीर चीर हार होरे हां, लागे शणगार अंगार सारिखा ॥ सु० ॥ सू॥ विरहा करवत धार होरे हां, रस कस खारा विष दुथा ॥ सु० ॥॥ सू॥ सूवे नहीं सुख सेज होरे हां, नयणें नावे नींदडी।मु० ॥ सू० ॥ धरती पीयुगुं हेज होरे हां, ऊख धरती धरती सूवे॥ सु॥॥॥ वली कहेजे तुज नारी होरे हां, तुमने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) कह्या जे बोलडा ॥ सु०॥ सू०॥ तें लोपी कुलकार होरे हां, लेहेणाथी देणे पडी ॥ सु॥॥ सू ॥ तें पांचारी साख होरे हां, हुँ परणी दुती जोइनें ।सु०॥ सू॥ तजीन अवगुण दाख होरे हां,कलंक चढाव्यां मेहणां ॥ सु॥१॥सू०॥ में तुजने जरतार होरे हां, कल्पतरु ज्युं यादयो ।।मु०॥ सू॥ आक एरंम अनु सार होरे हां, उचो नीच परें नीवडयो ॥ सु॥११॥ सू॥ गांठे बांध्यो ताण होरे हां,रतन अमूलख जा णीने ॥ सु०॥ सू०॥ पण दु पर जाण होरे हां, पाच दून काच सारिखो।सुरशासू०॥ हंस दून जाणे काग होरे हां, सोनो शीसो निवडयो ॥ सुगा सू॥ वेश्यागुं करि राग होरे हां, नाम गमायो बाप रो सु०॥१३॥सू॥ कां सरजी किरतार होरें हां, कंत विदणी कामिनी ॥ सु०॥ सू० ॥ खिणी कोई को नारी होरे हां, पण सघली मो पढ़ें ॥सु॥ ॥१४॥ सू॥ किएने दीजें दोष होरे हां,घाट कमाइ थापणी ॥४०॥ सू०॥ केहो करुं अपशोष दोरे हां, लहिणुं लाने थापणुं ॥ सु० ॥ १५ ॥ ॥दोहा॥ वालम तणो विडोह,किरतार तुं कदि नां जशे॥कहे नें कदी संयोग,करशे ते निरणय कहो॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२१) कोकिल मेघ ज्यु मोरध्वनि,दक्षिण पवनज ढुंति॥चंद किरण तंबोल रस, विरही ए न सहति ॥२॥उस्त ह वेदन विरहकी, साच कहे कवि माल ॥ जिकी जोडी विबडे, तिका कवण हवाल ॥३॥ एक यां ख्यां दीठां दहे, वाला दहे परदेश ॥ सऊन उर्जन बिहुँ दहे, हियडा कादु करेश ॥ ॥ नपर आंबा मो रोया, तले निफरणा जरंत ॥ साजन पाखें दीहडा, ताढा तोही तपंत ॥ ५॥ बाती मांहे शाल, दणद एमें खटके घणां ॥ करस्यां कवण हवाल, मलियां विण मटशे नहीं ॥६॥ जो जस तीनो होय, तो सा हेब वशरंजीयें ॥ घणुं अंधारूं तोय, मोर लवे धन गजीयें ॥७॥ नेदा लगरी नूख,नूलिए नांजे नहीं। देखीजें तो मुख, जो गाजागी तलमिले ॥ ७॥ जो नेटुं किरतार, करुं विनती थापणी ॥ अहो सरजण हार,औजम युंही जायसी॥॥ वयणा तणा विचार, नाखंतां नेद्या नहीं। सावजडा संसार,पातलीया नहीं पालनत॥१०॥ मुखके कहे कहावनें, कागदलखीन जात ॥ आपने मनगुंजानीयो,मेरे मनकी बात॥११॥ ___॥ ढाल पूर्वती ॥ सू०॥ कहेजो मुज बाशीष हो रेहां, कोडी. वरस प्रनु जीवजो ॥ मु॥ सू०॥ मत क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) रजो मन रीश होरे हां, जनुं जाणो करजो जिकूं ॥ सु०॥ १६ ॥ सू०॥ हुँ थाहारी बलिहार होरे हां, कही 1 संदेशनें जावजो || सु०॥ सू०॥ वाट जोवा उनी बार होरे हां, कुशलें वेगा आवजो ॥ सु० ॥ १७ ॥ सू० ॥ सतीय शिरोमणि जाण होरे दां, सीता सती जिम निर्मली ॥ सु०॥सू०॥ जयतसी करे सुवखाण होरे हां, शीतलीला ढाल श्रामी ॥ सु० ॥ १८ ॥ || दोहा सोरठी ॥ ॥ दीधी प्रापणी बांह, चोरी चडी कर मेलतां ॥ पण जिम तनरी बांह, तिम नवि राखी तो कन्हे ॥ १ ॥ फुरके मार्बु अंग, तिण अवसर नारी तणुं ॥ चिंते बाज सुरंग, सही मलशे मुज वालहो ॥ २ ॥ ॥ ढाल नवमी ॥ राग मारु, सोरठमिश्र ॥ नलराजानें देश होजी लवंग हुता पलाणीया ॥ ए देशी ॥ ॥ बेठी कांत ठाण होजी, नारी मन निश्चल की लाल ॥ ना० ॥ सुपि सुपि विरहिणी वाणि होजी, कुमर वज्राहत प्रति हूई लाल || कु० ॥ १ ॥ कुमर गयो घर मांहें दोजी, शौच धरंतो शंकतो लाल ॥ शौ० ॥ चंं ग्रह्मो ज्युं राहु होजी, मुख विजखे बबी शोनती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) लाल ॥ मुख ॥ २ ॥ शंकाणी सुकुलीणी दोजी, सतीय शिरोमणि चिंतवे लाल ॥ स ॥ ए पर पुरुष प्रवीण होजी, किम थाव्यो वही आंगणे लाल ॥ किम ॥ ३ ॥ जा तुं ताहरे गम होजी,पूरी अपूरी करी कहे लाल ॥ पू० ॥ नहीं पर पुरुषांरो काम होजी, ए घर ले सतीया तणां लाल ॥ ए० ॥ ३ ॥ सरणाई सुहडा होजी, केशर केश नुर्यगमणि लातें ॥के०॥ चडशे हाथ मूया होजी, सतीय पयोधर के पण धन लाल ॥ स० ॥ ५ ॥ बीजा नर सदु वीर होजी, बोलु न बोल बीजासेंती लाल ॥ बो० ॥ सगी नणदीरो वीर होजी, कूड. कहूं तो बाखडी. लाल । कू॥६॥ दु प्रिया बुं तेह होजी, कयवनो बोले हसी लाल ॥ क० ॥ धन तुं राखी रेह होजी, चंद नामो तें चाढीयो लाल ॥चंद॥७॥ दोगे घाट सुघाट होजी, सासुरो जायो सही लाल ॥ सा०॥ दुरंग गह गाट होजी. कामिनी तन मन विकसीयां लाल ॥का० ॥ ॥॥ जिम अति वूठे मेह होजी, नवनव रंग धरती धरे लाल ॥ न० ॥ जयश्री तिम पीयु नेह दोजी, नवमी ढाल जयरंग नणे लाल ॥ न० ॥ए॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२४) ॥ ढाल दशमी ॥ वधावो हे सुहव गावगुं॥ अथवा, अयोध्या हे राम पधारीया ॥ अथवा ए देशी॥सीयालानी देशी॥ ॥ बाज वधाको माहरे, बाज जाग्युं हे सखि मा दरूं नाग्य के ॥पायुडो हे घरें यावीयो ॥ए यांकण। सुख दोहग दूरें टव्यो,आज पायो हे सखि सुख सौ नाग्य के ॥पी॥९॥ सुंरतरु फलीयो घांगणे, बाज दूधे हे सखि वूठा मेह के ॥ पी०॥ मुह मांग्या पासा ढल्या, आज उल्लती हे सखि देह सनेह के ॥पी॥ ॥॥ तप जप व्रतनी खडी, आज दूया हे सखि पूरा सूंस के पी०॥ तूग गुरुनें देवता,याज पूगी हे सखि मननी हूंश के पी॥३॥ धन्य वेला धन्य ए घडी, बाज धन्य धन्य हे सखि दिवस उमाह के ॥ पी० ॥ बार वरसने बेहडे, मुज मलियो हे सखि विड डयो नाह के पी॥४॥ मोतीय. वधावीयो,गोरी गावें हे सखि मली मती गीत केपी॥ वर मांझणे घर मांमीयुं, रंग चीतवा हे सखी नीत सचित्त के ॥ पी० ॥ ५॥ विच विच दीये उत्संनडा, सदु काढी हे सखि मननी नास के॥पी०॥ नाह मल्यो आज मा दरो, रंग रतीयां हे सखि तील विलास के॥पी० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) ॥ ६ ॥ रंगमां मीठो रुपयो, जाणे दूधमां हे सखि साकर खके ॥ पी० ॥ खलीयां गलीयां पूग्लां, हसी बोल्या हे सखि मधुरी जाप के ॥ पी० ॥ ७ ॥ साजन सहु यावी मल्या, हुने हर्षित हे सखि कुटुंब पार के ॥ पी० ॥ बांध्यां तोरण बारणें, शोना वधी हे सखि नगर मकार के ॥ पी० ॥ ८ ॥ मनवंडित सुख जो गवे, दीये दानने हे सखि खादर मान के ॥ पी० ॥ गह मह घर वसती हूइ, घर शोहे हे सखि पुरुष प्र धान के पीएम जयश्री शील शोना नली, गुण गावे हे सखि सहु नर नार के ॥ पी० ॥ दशमी ढाल कही जयतसी, शीन सरिखुं हे सखि को न संसार के ॥ पी० ॥ १० ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ जयश्री सम नारी न का, कयवन्नो जरतार ॥ जोडी बिहुं सरखी जुडी, तूगे श्रीकिरतार ॥ १ ॥ हवें वेश्यानी दीकरी, लडी थक्का घर बोडि ॥ यावी वर घर पूछती हूइ जयश्रीनी जोडि ॥ २॥ बिंदु नारी सरखी जुडी, वधतो प्रेम सनेह ॥ कयवन्नो सोनागीयो, लो क कहे धन्य एह ॥ ३ ॥ यांख बिंदु सम नारि बे, माने चतुर सुजाण ॥ पण हाल हुकुम जयश्री तणो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) हाथें घर मंमाण ॥४॥ हवे जयश्रीना नाग्यथी, सुत उपन्यो गर्नवास ॥ कयवनाने पण दुन,आव्यां पूरो मास ॥ ५ ॥ ॥ ढाल अगीधारमी ॥ राग सोरत ॥रहो रहो रहो रहो वालहा॥ ए देशी॥ ॥नाह नगीनो एक दिने,देखी अति दलगीर लाल रे॥ जयश्री नारी मलपती, थावी प्रीतम तीरलाल रे॥१॥ पदमणी प्रिय नणी, हसता देखी सदी व लाल रे॥धाज न बोलो क्युं हसी, प्रीतम मुज जीव लाल रे ॥ प्रो० ॥॥ चिंता का नवी वसी, कांतो मुजशु रीश लाल रे॥ बाज निहेजो वालहो, रूगे विश्वावीश लाल रे ॥ पूजे ॥३॥ खासी दासी हूँ ताहरी, खुन पड्यां द्यो शीख लाल रे ॥ विण बो ल्या जीवू नहीं, न नरं पाठी वीख लाल रे ॥ ॥॥ प्रीतम कहे सुण पदमणी, तोशु केही रीश ला ल रे ॥ तुं घर मंमण माहरे, हियडे रहे निश दीस लाल रे ॥ पूजे ॥ ५ ॥ तोमन मोही रयुं, नमर न्यु फूल सुंगंध लाल रे ॥ चिंता धननी मुज मनें, दोहिलो ले घर बंध लाल रे । पू०॥६॥ कुल घर महोटुं थापj, वड वडां कीधां काम लाल रे ॥पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७) चांमें परगट नला, बाप दादानां नाम लाल रे ॥ ॥ ७॥थाव्यो गयो पही प्रादुणो, रायल देवल काज लाल रे॥ खरच वरच कीधा विना, न रहे घर नीलाज लाल रे॥ पूजे॥७॥ दाने याचक जय नणे,सेव करें सदु कोय लाल रे ॥ ढलकती ढाल थ ग्यारमा, सुणता जयरंग हाय लाल रे॥पूनाए॥ ॥ दोहा ॥ ॥ एकण दीधे बाहरो, नाम न लेवे लोय ॥ दी धारी देवल चढे, इम बोले सदु कोय ॥१॥ ॥ ढाल बारमी ॥ राग गोडी केदारो मिश्र॥ .. ॥ जंबूदीपना जरतमां ॥ ए देशी॥ . ॥ दाम नहीं गांठ माहरे,दाम करे सदु कामो रे।। दामें तूसे देवता, दाम वधारे मामो रे ॥१॥ दाम न लो संसारमां, दीघा दोलत होय रे ॥ ग्रह गोचर पी डा टले, दाम वशे सङ कोय रे ॥ दा० ॥२॥ रूपैये माने राजवी, रूपैये दुवे घृत गोलो रे ॥ रूपैये धरम करम दुवे, रूपैये सदा रंगरोलो रे ॥ दा ॥३॥ दो कडा वाला जगतमां, दोकडे मादल वाजे रे ॥ दोकडे स्नात्र पूजा दुवे, दोकडे जिनगुण गाजे रे ॥ दा०॥ ॥४॥ दोकडे माने नारजा,लाडी हाथ में जोडे रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) दोकडा पाखें लोनणी, रूती कडाका मोडे रे ॥ दा० ॥ ५ ॥ पैसा आइ माई कह्या, पैसा कामणगारा रे।। पैसा वाज करे वली, पैसे जिमण सारां रे॥दा० ॥६॥ कण न करुं शिर माहरे, शपथी रहे मुख का तो रे॥णथी नावे नीड्डी, शाथी सहीयें गालो रे ॥ दा० ॥ ७॥ नारी मंझण नाहलो, धरतीमंझण मेहो रे ॥ पुरुषां मंझण धन सही, णमा नहिं सं देहो रे ॥ दा० ॥ ॥ खूटधुंधन खातां सही, घरमें सबली खोटो रे ॥वज व्यापार न को चले,कुलर पेटने कोटो रे॥ दा० ॥ ए॥ढुंजाइश परदेशडे, धन खाटीश एक चित्तो रे॥ घरमां थें बिहुँ बेनडी, रहेजो रूडी रीतो रे ॥ दा० ॥१०॥ जयश्री सुणी प्रिय बोल डा, घरेणां गांठां उतारी रे ॥ पियु धागल मूकी कहे, ए काया माया ताहारी रे॥दा०॥११॥खा पी खरचो वली, मांफो वएज व्यापारो रे ॥ नाह कहे धन्य तुं सती, तुं मुज प्राण वाधारो रे ॥ दा० ॥१२॥ घरगुं गौतुं वेचता, लाज घटे दुवे खुवारी रे ॥ हुँ चालीश तिणे तुज वसु, घरनी मांम सारी रे ॥ दा० ॥१३॥ नारी मनावी नाहले, चालणरो कीयो संचो रे ॥ माथे नाग्यने चाहडी, न टले कर्मप्रपंचो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२ ) रे॥दा ॥ १४ ॥ तिण अवसर परदेशमें, धनपति सारथवाहो रे ॥ फेरे इम उद्घोषणा, नगरीमाहे उ बाहो रे ॥ दा० ॥ १५॥ धन खाटण जो मन दुवे, तो श्रावो मुज साथो रे ॥ वणिज नला परदेशमां, चडशे बदु धन हाथो रे ॥ दा० ॥ १६ ॥ कयवन्नो सुणी वातडी, मनमां हर खित दून रे ॥ समजी घरणी पण हवे,चालारो दीयो दूत रे ॥दा०१७॥ गुन गुं कने आयां साथमा,जयश्री बावीसाथी रे ॥ देवलमा सेज पाथरी, शाह बेगे तिण माथो रे ॥दागान॥ घरथी बाहिर बावीयो,एहीज पंथ न थाघो रे ॥ बार मी ढालें जयतसी,लखमीखाटण लागो रे॥दा॥१॥ ॥दोहा॥ ॥ हवे कुलवंती कंतने, ऊनी कहे कर जोड ॥ थें सिधावो सिचकरो, पूरा थारा कोड ॥ १॥ ॥ ढाल तेरमी ॥राग मारु॥ नोजराजाना गीतनी॥ हाथीयां रे हलके थावे प्रादुणी रे ॥ ए देशी॥ ॥ वहेली वलण करजो वालहा जी,मत रहेजो पर देश ॥ श्रावतां जातांशु घर मूकजो जी, कुशल खेम संदेश ॥वहे॥१॥ चोर चुगल बहु धूरत माणसांजी, मत करजो विश्वास ॥ खाणे पीणे खरच म सांकजो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ) 1 जी, जिम सो तिम पंचास ॥ वहे || २ || देव गुरु स्मरण करी शासतोजी, जिनधर्म मनमां धार ॥ विच विच मुने पण चितारजो जी, मत मूको वीसार ॥ वहे ० ॥ ॥ ३ ॥ कुशलें खेमें वहेला यावजो जी, धन खाटी सुविचार ॥ थें मुज जीवन में मुज खातमाजी, येँ मु ज प्राण आधार ॥ हे० ॥ ४ ॥ धन्य बेलाने धन्य वली ते घडीजी, धन्य दिन धन्य ते मास ॥ नयणें दरिसण, थांरो देखशुंजी, ते दिन फलशे मुज खाश ॥ वहे ० ॥ ॥ ५ ॥ वली अवधारों मुज विनतीजी, ढुं पतिनक्ति नारी ॥ जिमण जूग्ण वेला यांहरीजी, हुं जी मिश निरधार ॥ वहे० ॥ ६ ॥ हेजें देशो दायें घावीने रे, तेवारें खाशुं पान ॥ चूखा चंदन परिमन थां मल्यां जी, मेवा विगय पकवान ॥ वहे० ॥ ७ ॥ देवगुरु वां दीश प्रहसमे सासतीजी, देहरे घृत दीवेज ॥ तप जप यांबित नीवी एकास एणांजी, धर्में दुवे प्रिय मेल ॥ वहे || गौरी समरे दर रति कामनेंजी, रुक्मिणी समरे कान ॥ चकवी चकवो राम सीता मनेंजी, तिम मुज मन स्वामी ध्यान ॥ वदे॥ ए ॥ मेघ तणी परें नमी यांदरीजी, हुं जोबुं बुं वाट ॥ जनुं थावे मुनें यांहरीजी, घरें यावजो धन खाट ॥ वदे० ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हलीमली शीख करी नारी जी, मूकती वलीनी शास ॥ फरी फरी जोवे मुख फेरीनेजी, रघु मनटुं पीयु पास ।। वहे०॥११॥ पाना वलतां पग बे लड़ थडेजी, मोहनी करम जंजाल ॥ जिम तिम आवे घर थापणेजी, सुखें गमावे काल ॥वहे॥१॥ दोहा॥ चाल सखी नए फॅपडे, साजन वलीया जेण ॥ मत कोई मीठो बोलडो, लागो दुवे तिणेण ॥१॥रे मंदि र रे मालोयां, हवे तुं मग न नरेश ॥ जिण कारण अमें यावतां, सो चाव्या परदेश ॥२॥ जुग विबुरत सारी मरत,यहे काठको प्रीति॥पै सजान विबुरे ना मरे, संब न एह विपरीत ॥३॥ मीन ढाल रमी मन तेरमीजी,जयतसी जयजय कार ॥ फलशे नाग्य न सौजाग्यशुंजी, ते सुणजो अधिकार ॥वहे ॥१३॥ ॥ दोहा॥ ॥ दवे देवलमें चिंततो,घर घरणीरो हेज ॥ निशि नर सूतो निंदमा, कयवन्नो सुख सेज ॥१॥ क्विंत अपुत्रिन, कोई साहूकार ॥ परनवें पोहोतो प्रवहणे, आव्या सम्माचार ॥२॥ तियरीमाता पालीयो,पंथीनें धन बाप ॥ वद चारे मेली कहे, मत रोजो चुप चा प॥३॥ जो सनिलशे राजवी, तो लेशे धन रोक ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) नाम गम जाशे सदु, तिणे मत करजो शोक ॥४॥ घर आणी को राखश्यां, नवलो नर अनूत ॥ पुत्रज होशे ताहरें,रदेशे घरनुं सूत्त ॥ ५॥ कहे वहूरो सासू जणी, की केम अकाज ॥ कहे मोशी रता कांड न लाज ॥ ६ ॥ ॥ ढाल चौदमी॥ चंज्ञवलानी देशी ॥ ॥ वढू चारे साथें करीरे, मोसी जाली मांगो॥न गरी सारी सोजती रे, यावी साथमां रंगो ॥ यावी साथमा रंग सुरंगी, देखे नर सहु दुइ दुइ खंगी। केई नंगी केई जंगी, नजर न आवे को सुचंगी॥१॥ जी कुमरजीजीरेजी ॥ पूरव पुस्य पसाय, सुखसंपत्ति मले रे॥रंग रली नबरंग,आज सदु फले रे॥धा॥ एयांक ण॥ देवल मांहे ते गई रे,सूतो दीगे सेजो। रूप रू डुं रडीयामणुं रे, कयवन्नोधरी हेजो ॥ कयवन्नो धरी हेज उन्हायो, पण नवि जाग्यो निंदें गयो ॥ तिम हिज आल्यो मंच बिबायो, घरमां मेली रंग मचायो ॥जी० ॥ ॥ चारे नारी चउपखें रे, नारी बेठी मं चो॥ कयवन्नो हवे जागीयो रे, देखे तेह प्रपंचो ॥ देखे तेह प्रपंच विलासो, ए कुण ख्याल विनोद त मासो॥ महोटा मंदिर महेल मेवासो,चिहुं दिशि जो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) वे यासो पासो॥जी॥३॥ रंग रंगीला मालीयां रे, चित्रामारी बोलो ॥ जाणे विधातायें रच्यां रे, मोती जामर जोलो॥ मोती जामर जोल तेजाली, विच विच प्रोई लाल प्रवासी ॥ जब जब जाबख जूब रसा तीनला जला गोंख नली चित्रशाली ॥जी॥४॥ सखरा बांध्या चंडवा रे, मखमलरा पंचरंगो॥ नवनव नांतें जातरा रे, पाथरणां अतिचंगो ॥ पाथरणां य तिचंगा फलके, जरबाफ जाजम कसबी फलके ॥लां बी फूलनी माला ललके, धूप धाणानी सलीयां चल के ॥जी॥ ५॥ चंवदनी मृगलोचनी रे, नर यौ वनमें जेहो ॥ नासा दीप शिखा जिसी रे, सोवन व रणी देहो । सोवन वरणी देह रे सारी, घिदूं दिशि निरखे चारे नारी ॥ रूपें रुडी देव कुमारी, मानवणी जिण थामें हारी ॥जी॥ ६॥ पायें नेसर रणकणे रे, काने कुंमल सारो॥मकबेसर शिर राखडी रे, हि यडे नवसर हारो॥ हियडे नवसर हार रे सोहे, मोह नगारी मनटुं मोहे ॥ रंग रंगीली चित्तहुं चोहे, मुख दीनां ए दुःख विनोहे॥जी॥७॥ मगन हट देखि देखिने रे,मनमा करे विचारो॥ ए सुहणो के हुँ सही रे, याव्यो स्वरग मकारो॥ श्राध्यो स्वरम मकार रे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) देखे, मोती माणक रयण अलेखे ॥ सोनुं रू' केहे लेखे, ए नहीं गेह विमान विशेखें ॥जी॥॥शंका मनमा कपनी रे, दु आव्यो किण लामो ॥ सूज न कांश सूची पडे रे, कयवन्नो मुज नामो ॥ कयवन्नो मुज नाम रे सोचे, शिर धूणीने दिल संकोचे ॥ वली वली मनशुं आप बालोचे, हवे किहां नासुं खूणे खोचे ॥ जी० ॥ ए॥ तेहवे यावी मोसली रे, बोले मीठा बोल ॥ ए घर ए वद ताहरी रे, करोणगुं रंग रोल ॥ करो इणयुं रंगरोल रे बेटा, जाग्या दुई ता हरी नेटा ॥ पहेरो उढो खाउ पेटा, तुं घर साहेब सदु तुज चेटा ॥जी॥१०॥ में समरी कुल देवता रे, माग्यो पुत्रप्रधानो॥ तूठी पाणी तुं दीयो रे, वा लो जीव समानो ॥ वालो जीव समान रे जाया,ए डे ताहरी जाया माया ॥ जीव बे एकनें जूई काया, तुने दीते में सुख पाया॥जी॥११॥ सुणि सुणि वात शोहामणी रे, हरख्यो दिये कुमारो॥ किए खाटी को नोगवे रे, जुवो कर्मविचारो ॥ जुवो कर्म विचार रे चंगा, नंदर खणि खणि मरे सुरंगा॥ जोगवे पेसी नोग नुयंगा, बैल मरे वही चरे तुरंगा ॥जी॥१॥ कय वन्नो सुख जोगवे रे, दिन दिन थति गदघाटो॥ वात Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) विसरी गई वांसली रे, हिंचे हिंमोला खाटो॥ हिंचे हिंमोला खाट रे रूडी, नाग्यनी वात न कांऽ कूडी॥ चारे नारी रहे सजूडी, बाहें खलके सोवनचूडी ॥ जी०॥ १३ ॥ पति नक्ति चारे जणी रे, चारे मोहन वेलो॥ चारे बेठी नादा रे,रमे सारी पासा खेलो॥ रमे सारी पासा खेल रे नेला, मांहो मांदि होइस मेला॥ चूआ चंदन तेल फूलेला, शोल सिणगार ब नावे वेला ॥ जी०॥ १५ ॥ चारे बेटा चिहुनें दूया रे, बार वरस घर वासो॥ हवे स्वारथ सखो मोकरी रे, जूवो करे तमासो ॥ जूवो करे तमासो रे गा ढो, कहे वहूरोने ए नर काढो ॥ बेटे थये कलंक म चाढो, ज्यु मुज होवे दियडी टाढो ॥ जी० ॥१५॥ दोहा ॥ निज स्वारथके कारणे, कूदे वाड कुरंग ॥रस कस लै त्यागे तुरत, ए निर्गुणके अंग ॥ १ ॥ ढाल पूर्वली ॥ वदूधांशु लडे सासती रे,नाम ज्युं लाज न सांखो ॥ विलगे जाणे नाहरी रे, रातडी करि करि यांखो ॥ रातडी करि करि बाखो रे मोटी, मनमा खोटी सोटी जोटी॥ पावे न किरणने पाणी लोटी,न दीये किणने रोटी दोटी ॥जी॥१६॥ खावे न पीवे लोनणी रे, खरच न विरच लगारो॥मत आवे एद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) प्रायो रे, जडी राखे घरबारो ॥ जड़ी राखे घर बार रे खडकी, मांहेथी बोले तडकी जडकी ॥ रहे घर बा हिर सहुको खडकी, जोगी जती सहु जावे नडकी ॥ जी० ॥ १७ ॥ चौदमी ढालें जयतसी रे, वहां वे ससने दो || मनमांहें एम चिंतवे रे, विषवेलि विरती एहो । विषवेली विरती एह रे सासु, ए नर निर्मल ज्युं ज ल सुं ॥ जीव ने माहारो ए नहीं फासु, मनरंग रा तो फूल ज्युं जासु ॥ जी० ॥ १८ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ सुणी सासुना बोलडा, उपन्युं दुःख अपार ॥ चारे वढू मली सामटी, करे थालोच विचार ॥ १ ॥ सासु हूई श्वानणी, विरती करे बिगाड ॥ यापें किम बांमी शकां, बार वरसनां नाड ॥ २ ॥ ॥ ढाल पंदरमी ॥ हमीरियानी देशी ॥ ॥ वद्वार हली मली वीनवे, प्रीतम केम माय ॥ सासूजी ॥ बार वरसनी प्रीतडी, जीव रह्यो रंग ला य ॥ सा० ॥ वहू० ॥ १ ॥ पहेलो पोतें तें कीयो, स बल अन्याय काज ॥ सा० ॥ घरघरणें घर राखीयुं, कीधी न कुलनी लाज ॥ सा० ॥ वहू० ॥ २ ॥ जाई प रायें घर वस्यो, गरज सरी कोड लाख ॥ सा० ॥ का For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) म सयुं सुख वीसह्यु, हवे क्युं देखाडो काख ॥ सा० ॥ वढू० ॥३॥ लाज रही लखमी रही, बेटा दूधा वली चार ॥ सा०॥ किरतार तूगे ए दीयो, ना ग्य वडे जरतार ॥ सा ॥ बहू ॥३॥ हवे तो एहने डोडता, न बने काई वात ॥ सा० ॥ नेह न बूटे जीव ता, नीनी साते धात ॥ सा० ॥ वर्॥५॥ण वि ए ए घर कारिमुं, यूनुं जाण मसाण ॥सा॥ इण विण म्हें पण कारमी, गुण विण लाल कबाण ॥सा० ॥ वद ॥ ६ ॥ खाणां पीणां पहेरणां,काजल तिलक तंबोल ॥ सा ॥ इण विण सहु अलखाम णां, लागे विसरे तोल ॥ सा०॥ वर्॥ ७॥ एह ध णी माहारे इण नवें, सो बोलें एक बोल ॥ सा॥ थे साचो करी जाणजो, कहां बी वाजते ढोल ॥ सा ॥वढू॥॥ जोर वहे ते मोकरी, तडकी नडकी बोले वटी ॥ वढूजी॥ रहो रहो आपणी लाजमां, काढीश गंगो कूटी ॥वावहू॥॥ घर माहरु धन माहीं, थाथ नहुँति इण साथ ॥व०॥ ए कुण हुँ कुण श्यो हवे, दारी नरडे साथ ॥व०॥वर्॥१०॥ जार फीटी दूळ घर धणी, विलसे लील विलास ॥व॥ पण बत बल काढो बाहरो, याश करूं खास पास ॥ व०॥ व Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) दू०॥११॥ काढे मोला ज्यु माकिणी,शंखिणी मोम्यो सोर ॥ व०॥ त्रोड फोड मामी घणी, वदुषां उपर गेर ॥व०॥ वर्॥ १२ ॥ पाली न रहे पापिणी,लाज शरम नहीं हाक ॥ सा० ॥ गाली रांझरा बोलडा, बो ले कडूया आक ॥ सा० ॥ वर्॥१३॥ बार वरसने बेहडे, लागी पनोती अंग ॥ सा ॥ जंग करे खाइ नंग ज्युं, रंगमें पाडयो नंग॥सा०॥ वर्॥१३॥ मोशी\ चाले न क्यु, नहीं वदुयारो जोर ॥ सा॥ सबला जीपे जग सही, निबला करे निहोर ॥सा॥ वर्॥१५॥ चारे नारि विचारीने, रतन ले जल कंत ॥सा॥ जल जाये जूडं फाटीने, गुण तीयांरो तंत ॥सा॥वहू॥१६॥ चारे लाडु मोटा कीया, घाल्यां र तन विचाल सा॥ मूकी उशीशे कोथली,नदिज मं चक हाल ॥साणावहू॥१॥ सासु कहे फासुं हवे, राखुं नहीं घरमांह ॥ सा०॥ बारे वरसें ते वली, हिज सारथ वाह॥ सा॥ वह ॥१७॥धावीप ज्यो तिए थानके, साथ सबल गज गाह ॥सा० ॥ निशि नर सूतो निंदमें, देखी कयवन्नो शाह सा॥ वहू० ॥ १ ॥ वढू उनाडी जगाडीने, उपाडयो ते मंच ॥ सा ॥ तिण देवलमें आणीने, मूक्यो तिण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) हीज संच ॥ सा० ॥ वढू ॥ २० ॥ ससनेही चारे जणी, रोती जरि नरि यांख ॥ सा० ॥ सासुगुं था वी घरें, रही नीशासा नाख । सा० ॥ वहू ॥१॥ यतः॥ सयणां एहिज पारिखं, फरी पावू जोवंत ॥ मुख हसतां नयणे मले, तन टाढक उपजंत ॥ १ ॥ नयणे जे साजन मले, ए नहीं जूले बेल ॥ प्रीत रीत पाले नही, माणस रूपें बेल ॥ २ ॥ पीयु पासें सूतां थकां,हेज नही लवलेश ॥ जैसो कंतो घर रह्यो, तैसो गयो विदेश ॥३॥ ढाल पूर्वती॥ पन्नरमी ढालें जयतसी, तेहिज मूलगो वेश ॥ सा० ॥ जैसा कंता घर रह्या, तैसा गया विदेश ॥ सा० ॥ वढू ॥२॥ . ॥दोहा॥ ॥ हवे कुलवंती सुंदरी, लइ श्रीफलने फूल ॥ . वरधन बेटो साथ लइ, गइ जोशी रे मूल ॥१॥ ॥ ढाल शोलमी ॥ सात सोपारी हाथ, पंमयो पूण धण गश्जी ॥ ए देशी ॥ . ॥ पूजे बेकर जोड,श्रीफल आगें मूकिनेंजी ॥ जों शी बालस बोड, जुवो प्रश्न एक माहरुंजी ॥१॥प तडोहा/जीजाति,लगन मांफ्यो मेष वृष सही जी। तंत पाडयो ततकाल, आदित्य सोम मंगल मुखेंजो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) ॥ २॥ थे जो गुणह गंनीर, जाणो वात त्रिवन त पीजी ॥ माहरी नणदनो वीर,कहोने वीरा कदि या वशेजी ॥३॥ मानीश तुज नपगार,देश सखर वधा मणीजी ॥ जाणो ज्योतिष सार, कहो फल पीयर माहरांजी ॥४॥ वरष पूरा दूवां बार, पीयु चाल्यो परदेशडेजी॥ नावी चीही समाचार, सार सुधी काहिं नहींजी॥५॥ चाल्यो धननें काज,माहरो वरज्यो नवि रह्योजी॥ देश विदेशांमांज,घरे घरगी किम होशेजी ॥ ६॥ वाये तू उनाले, वरसालें मेह ऊरहरेजी॥शी त पडे शीयाले, किम सहेशे नाह माहरोजी॥ ७॥ सूती पहुं जंजाल,जाएं पियु घर भावीयोजी॥ हसी मलीयो हेजाल,जबकी जागी देखू नहींजी॥॥ दैव न दीधी पाख, नहीं तो कडी म नाहनेंजी ॥ जो, जरीनरी आंख, बोडुं न पासो जीवतीजीए॥ सही न देती शीख,पहेली इम जो जाएतीजी॥नरण न देती वीख, बेहडो जाली राखतीजी ॥ १०॥ किम जाये जमवार, वरष समी वोले घडोजी॥नाह विद एनार, रस विण जाणे शेलडीजी॥ ११॥ अंगून नी बाग,कदी थावे माथा लगेजी। पियु विण नहीं सौनाग्य,यौवनियु किम जायशेजी॥ १॥ न रहे को Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४१) परदेश, बारां वर्षा कपरांजी ॥ मूके घर संदेश, के थावे पोतें वहीजी॥१३॥ घर याव्या सदु कोश, बाडोसी पाडोसीयाजी॥ माहारो परग्यो सोश, नाव्यो हजी वाट जोवतांजी॥ १३ ॥ जोषी चतुर सु जाण,लगन विचारी बोलीयोजी॥ बहेनी सुण मुज वाणि, म करीश चिंता पीयुतणीजी॥ १५ ॥ जाएं ज्योतिष सार, फलशे वंडित ताहरोजी॥थाज सही निरधार, मलशे तुजनें नाहलोजी॥१६॥ सांजली मी ती वाण, माबु अंग पण फरकीपुंजी ॥धाज सही सुविदाण, वीबडयो मतशे वालहोजी॥१७॥ सोने मढाएं जीन, अमीय नरूं मुख ताहरुंजी ॥ देणुं स दायाशीष, चिरंजीवो जोशी पंमियाजी॥ १७ ॥ लसी थावी घर बार,हियडुं हरख उमाहियुंजी ॥सां नलीयुं तेणीवार,उहिज साथ फरियावीयुंजी॥१॥ हली मली बिन्हे नारी, चाली तन मन उनसीजी॥ शुकन दूयां श्रीकार,साथमां श्रावी मलपतीजी॥२०॥ तंबु मेरा सुविशाल,देखीने मन उल्नसीजी। शोलमी ढाल रसाल, मलशे पीयुजणे जयतसीजी॥ १ ॥ । ॥दोहा॥ ॥ कयवन्नो जाग्यो दवे, हैहै कोण हवाल ॥ कि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हां घर घरणी चारे अरु, किहां मणि मोती माल ॥१॥ किहां कूर कपूरझुं प्रेमरस, किहां हैंमोला खाट । सही धूतारी मोकरी, ए सदु रचीया घाट ॥ २ ॥ तरीयो नेह दाखीयो, सोचें पडयो संदेह ॥ सूतारी पामा जणे,हवे किम जावू गेह ॥ ३ ॥ नारी देवल में गइ, दीनी तेहिज सेज ॥ बेगे प्रीतम उपरें, दीगे मन धरी हेज ॥॥ बोले माता हेजद्यु, बेटा ए तुज बाप ॥ खोले बेठो यावीने, टलिया फुःख संताप ॥५॥ ॥ ढाल सत्तरमी ॥राग मलार ॥ काजलनी ____ कोरेंज लाल ॥ ए देशी॥ ॥ बोले पदमणी बे जणी रे, बाज सफल अव तार ॥ रंगनर जाग्यो रे सनेह ॥ किरतारे पाणी मेल्यो रे, नाग संयोग जरतार ॥ रंग ॥१॥ सुर तरु फलीयो आंगणे रे, दूधे वूना मेह ॥ रंग ॥ मुह माग्या पासा ढल्या रे, उनसीया रोम रोम देह ॥ रंग ॥ २ ॥ विबड़ी मलियां सुख घणुं रे, नयएँ जाग्युं हेज ॥ रंग ॥ अचरिज मनमा उपन्युं रे, ए तो एहिज सेज ॥ रंग ॥३॥ गहेनो गाढो लामो लीलनो रे, अंग सुरंग सुंतेज ॥ रंग ॥नाणां गणां ढुंमी दुशे रे, चिंता न तिरी लेज ॥ रंग ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) मेल नहीं दायें पगें रे, मील न लागी खेद ॥ रंग०॥ मारग खेह दीसे नही रे, चलके फलके देह ॥ रंग ॥ ॥ ५ ॥ धवला खंध बग पारख ज्युं रे, चोखा हीरने चीर ॥ रंग ॥ जाणे रह्यो रंग मेहेलमें रे, खाधी खमने खीर ॥ रंग ॥ ६॥ ताजां पान धारोगीयां रे, राता दांतने होत ॥ रंग ॥ सुंधे नीनो साहेबो रे, जाणे न गयो गाम गोठ ॥ रंग ॥ ७ ॥ पूजे पद मिपी वालहा रे, कांच उडी थाव्या बाकाश ॥ ॥ रंग ॥ के बेसी याव्या विमानमें रे, के बेसीरह्या थावास ॥ रंग ॥ ७ ॥ पाडो उत्तर ये नहीं रे, बदा तने मुह पोल ॥ रंग ॥ हुंदुहुँ कहे गुंग ज्युं रे, मु खें न बोल बोल ॥ रंग०॥ ए॥ दुदु वाणी पण त हां रे, मीती लागे शख ॥ रंग ॥ गुंगो बेटो बापनें रे, बाप कहे ते लाख ॥ रंग ॥ १० ॥ पूरव पुण्य तणे उदें रे, तूटया करम अंतराय ॥ रंग॥ सत्तरमी ढाल जयतसी रे, राग मलार कहाय ॥ रंग॥११॥ ॥दोहा॥ ॥ चालो घर घरणी कहे, काल्या संबल सेज ॥ धणी धणीयाणी सुत मली, याव्यां घर घरों हेज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) ॥१॥शाह बेगे घर श्रावीने, हवे तसे सुत सुकुमा र॥ वरष दू धगीधारनो, नणे गुणे नीशाल ॥२॥ ॥ ढाल बढारमी॥हतीला वैरीनी देशी॥ ॥ जयश्री लीधी कोयली रे,लीधा लाडू चार रे॥ सोहागण॥ देखी सुत कहे मातने रे लाल, ये श। रामण सार रे ॥ सोहागण ॥१॥ नारी मनमें गह गही रे, सखरा मोदक तंत रे ॥सो० ॥रस मूके दी तां जीनडी रे लाल, मबके माढनें दंत रे ॥ सो० ॥ ना० ॥॥ एक मोदक दियो सुत नणी रे, माता धरी उल्लास रे॥ सो० ॥लाडु लईने चालीयो रे ला ल, नगवा पाठक पास रे ॥ सो॥ ना० ॥ ३ ॥ लाडु खाता नीसयुं रें, दीतुं रतन अनूप रे ॥सो॥ ए मुज पाटी चूटj रे लाल, थाशे लागी चंप रे ॥ सो० ॥ ना० ॥ ४॥ बूटी पडियुं हाथथी रे, कं दोई कुंममांदि रे॥ सो० ॥जल फाटयुं जलकंतथी रेलाल, लीयुं कंदोई नहाहि रे ॥सो०॥ नाण॥ ५॥ ये मुज पाटी घटणुं रे, बोले नोलो बाल रे ॥सो॥ रढ लीधी मूके नहीं रे लाल, रोइ रोइ बोले गाल रे ॥ सो० ॥ ना० ॥ ६॥ लाड माघारी रेवडी रे, मी ती मीनाई दीध रे ॥ सो० ॥ मीठे वचने नोलावीने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) रे लाल, रतन अमूलक लीध रे ॥सो॥ ना० ॥ ॥ ७ ॥ हवे मांमी गादी पारखलो रे, मपरें मामी था स रे ॥ सो० ॥ नारी जिमाडे नाहने रे लाल, नवा निपाइ शाल दाल रे ॥ सो० ॥ ना० ॥ ॥ पहेला पीरस्यां नाजिनांजिने रे,लाडू तेहिज खंत रे॥सो॥ नीसरी\ तिण माहिथी रे लाल, लाल रतन जल कंत रे ॥सो० ॥ ना० ॥ ए॥ कहे नारी धन्य पीयु तुमें रे, धन लाव्या नालें सूल रे ॥सो०॥ चोर न देखे कुत्ता नसे रे लाल, अल्प नार बहु मूल रे ॥ सो० ॥ ना०॥ १० ॥ कयवन्नो कहे रे, सूजे क माइ बाप रे ॥सो० ॥ बीजो अदर न उच्चरे रे लाल, दुई पनी चुप चाप रे ॥ सो० ॥ ना० ॥११॥ नारी रतन देखाडीयां रे, रूडो मूल्य अमूल्य रे ॥सो॥ हरखें कयवन्नो कहे रे लाल, बोले मीठा बोल रे॥ ॥सोना॥१२॥नाग्य जागे जिहां तिहां नला रे,आपद संपद जोय रे ॥ सो० ॥ परमेसर पुस्य पा धरो रेलाल,वाल नवांको होय रे॥सो० ॥ ना०॥ ॥१३॥ खाये पीये वितसे हसे रे, दान दीये धन को डी रे ॥ सो० ॥ पति नगति पण बे जुडी रे लाल, सखरी सरखी जोडी रे ॥ सो० ॥ ना० ॥१४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) ःख दोहग दूरे टल्यां रे, सखरो जग सौनाग्य रें ॥ सो० ॥ ढाल अढारमी ए कही रे लाल, जयरंग जाग्युं नाग्य रे ॥ सो० ॥ ना० ॥ १५॥ ॥दोहा॥ ॥ नाम सवायुं नीसयुं, पसरी सबल प्रसिदि॥ पूरव पुण्य पसाग्ले, जडी वत्ती दिने सिदि॥१॥ मति संबाही पापणी, मांमया वगज व्यापार ॥ घर वाधी लखमी घणी, दिन दिन देदेकार ॥२॥ ॥ढाल गणीशमी॥ चतुर चितारोरूप चीतरे ॥देशी॥ ॥तिण अवसर तिण नगरमें रे, वाजे ढंढेरानो ढोल रे॥फिरतो चोराशी चावे चोहटे रे, बोले एह वा बोल रे॥१॥ बाजरे निवाजे राजा तेहनें रे, आरो जे हाथी बोडाय रे॥लहे अर्ध राज राजकुंवरी रे, जाणे जे कोई उपाय रे ॥ आज ॥२॥ सेंचाक गज श्रेणिकतणो रे, पाणी पीवा नदी मांहि रे॥ पेठो थाघो जलमां क्रीडतो रे, शुढ उलाले कमाहि रे॥आज०॥३॥ पग जालीने तास्यो माबले रे, स बलो तंतू जीव रे ॥ जोर होवे जलमा तेहर्नु रे, हा थी पाडे रीव रे ॥ आज ॥४॥ चतुर विवेकी जोग जोगीया रे, विद्यावंत कलावंत रे॥याणे महोरा ज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) डी उषधी रे, सिदि साधक मंत्र तंत्र रे॥याज ॥ ॥५॥ खलक मल्या लोक हल किनें रे,एक शूरा एक वीर रे॥पए नवि चाले जोरो केहनो रे, सदु नना रह्या तीर रे॥था०॥६॥लाख उपाय करीलोनी या रे, केलवे हकुमत कोडि रे॥ कोडि मनावे देवी देवता रे,पण फिका पडचा मुख मोडि रे ॥धा॥७॥ राजमंमण गजराज ने रे, श्रेणिक करे दुःख सोर रे॥ कोइ सनूरो पूरो पुस्यनो रे,हाथीबोडावे जोर रे ॥धान॥ ऐरावणनो साथी हाथीयो रे, उत्तम जा ति सुविनीत रे ॥ राज्य निःफल इण बाहिरो रे, श्रे णिक दूरी सचिंत रे॥या०॥ ए॥दाय नपाय बुद्धि केलवे रे, मली मंत्रीने नपाल रे॥इणि परें नारखी उगणीशमी रे, जयरंग ढाल रसाल रे ॥धा०॥१०॥ ॥दोहा॥ ॥ कंदोई पडहो सुणी, मनमा करे विचार ॥ धू श्रा फुका कुण करे, लालच लोन अपार ॥१॥ ॥ ढाल वीशमी ॥राग खनाती॥शोहेलानी देशी॥ ॥ कंदोई पडेहो बिन्यो रे,रतन थमूलक पासो रे, राज शदि सुख जोगवं रे, मनमा महोटी धाशो रे ॥ १॥ तोरे कोडले पर| राय कुंवरी रे, नली ना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४ ) ग्य दशा ए जागी माहरी रे ॥ ए 'यांकणी ॥ राजा मन हर खिन दून रे, कौतुक लोक निहाले रे ॥ गो दडीमां गोरख सही रे, अर्जुन जे गाय वाले रे॥ तो रे ॥ २ ॥ रतन जतनशुं संग्रही रे, चाल्यो घणो गहगाट रे ।। पेठो नदीमा पाधरो रे,फाटयु जल दश वाट रे ॥ तोरे० ॥ ३ ॥ तेतू मत्स अलगो रह्योरे, जल विण जोर न कोइ रे ॥ लूटयो सींचाणक हाथीयो रे. जलमांहे पसखो सोइ रे ॥तो॥॥ हरख्यो नगरी नो राजीयो रे, हरख्यां नगरी लोक रे ॥ दरबारें या एयो हाथीयो रे, पुण्ये टले रोग शोक रे॥ तोरे॥५॥ कंदोनें कहे राजवी रे, किहांथी रतन अमूल रे ॥ कहे साचुं नहीं तुं नणी रे, मारीश कूडे बोल रे॥ ॥ तोरे० ॥ ६ ॥ लक्षणाथी देणे पडयुं रे, मनमा र ही सदु श्राश रे ॥ हैहै दैव तें झुं कीयु रे,नांग्यो मां मयो घरवास रे ॥ तोरे ॥ ७ ॥ कूड कपट जायगा नहीं रे, कूडे विणसे गोठ रे॥ होठ ध्रुजे कूडं बोलतां रे, कूडे पडे नाव नोठ रे । तोरे०॥ ॥ साच वडुं सं सारमा रे, साचे बीक न शंको रे ॥ फुरे साच वाच जतीसतीरे,धन्य साच काच निकलंको रे ॥तोरेगा। मंत्र यंत्र फुरे साचथी रे,साच सम मित्र न कोय रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) रण वन राउल देवलें रे, वाल न वांको होय रे ॥ तोरे ॥१०॥ श्म जाणी साचु बोलीयो रे, कहे के दोइ एम रे॥ कयवन्नासुत पासथी रे, रतन लीयुं में प्रेम रे । तोरे० ॥११॥साच वचन मुख बोलतां रे, जग संघलुं वश होइ रे ॥ श्म सुणी राजा श्रेणिके रे, बोडयो तेह कंदो रै॥ तोरे० ॥ १२॥धन्य धन्य जे साधु चवे रे, तिणरे कोइ न तोलें रे॥ वीश विश्वा ढाल वीशमी रे,मीठी जयतसी बोले रे॥तोरे॥१॥ ॥दोहा॥ - बूटो साच पसायथी, हवे कंदोई तेह ॥ कुशलें खेमें भावीयो, रंगरली निज गेह ॥ १ ॥ श्रीश्रेणिक राजा हवे, मनमा करे विचार ॥ में बोली वाचा ति का, विघटे नहीं संसार ॥२॥ साधु सतीने सूरिमा, ज्ञानी अरु गजदंत ॥ उलटी पू- नहीं फरे, जो जग जाय अनंत ॥ ३ ॥ पहिला बोले बोलडा, पळी न पाले जेह ॥ खाणो ते नर लहे,सिंधू साटुं जेह ॥॥ वाचा अविचल पालवा,मंत्री अजय कुमार ॥ घर मू की तेडावीयो, कयवन्नो दरबार ॥ ५॥ पुम्याइ प्रग टी थश्याव्यो शाह कतपुस्य ॥ राजाने पायें पडयो, सद्ध बोजे धन्य धन्य ॥६॥ पूबी गाबी वारता,जाम्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) ए वड शाह ॥ परीयागत लखमी घणी, नागो तोही वराह ॥ ७॥ जाग्यु नाग्य वली तेद, तूने श्रेणिक राय ॥परणावे निज पुत्रिका,नखं लगन जोवराय॥॥ ॥ ढाल एकवीशमी ॥ उनहो कृष्ण उल्लही राधिका ॥ ए देशी अथवा ॥ सोहलानी देशी ॥ ॥ रंग नरी रंग नरी परणे दो रायनी कुंवरी जी, धन्य कयवन्नो शाह ॥ वरनें वरनें कन्या हो इथलेवो मल्यो जी, बैठां चोरी मांह ॥ रंग ॥१॥ धवल ध वल गावे हो नारी गोरडी जी,वाजे मंगल तर ॥ जा नीवड जानीवड मानी सघला मल्या जी, प्रगटयो आनंद पूर ॥रंगण॥२॥ वींदने वींदने वींदणी बेहडा बांधीयाजी, जाणे कीधो बंध एह ॥ ढुं ताहारी हुँ ता हारीने वली तुं माहरोजी,जीव एक जूदी देह ॥रंग ॥३॥ रंगरस रंगरस चोधु मंगल वरतीयुं जी, कन्या फरी वर केडि ॥ वरनें वरने पूठे परठे कामिनी जी, वसती दुवे नावें वेडि ॥रंग॥४॥ दायजो दायजो दीधो घोडा हाथीया जी,वली दीधां गाम हजार ॥ पंचरंग पंचरंग वाघा हो मुकुट शोहामणा जी, कुंमल हार शिंगार रंगायाजोजन नोजन जति हो जिमण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नव नवांजी, कूर कपूर नरपूर ॥थारिम आरिम का रिम कीधा रंगशुंजी,ला. कोडें पमूर ॥रंग॥६॥ वंत्रि त वंबित फलियां हो टलियां उःख सहु जी,हलीयां मलीयां हेज॥ वलीयां वलीया वखत रंगरलीयां करें जी, रंग महेल सुख सेज ॥ रंग ॥ ७ ॥त्रण कतु त्रण कतुना हो सुख जोगवे जी, त्रिदुं नुवनें साना ग्य ॥त्रणेही त्ररोही नारी हो सारी अप्सराजी, प ति नगति प्रेम राग ॥ रंग ॥७॥त्रणेही त्ररोही शोहे तिम मन मोहतीजी, पान सोपारी काथ ॥ रंग रस रंगरस शोहे त्रये एहवी जी, खीर खांम घीनी साथ ॥ रंग ॥ ए॥ दोगुंदक दोगुंदक सुर जिम नो गवे जी, मनवंडित काम नोग ॥ पुरुष पुरुष रतन जगें परगडो जी, कतपुस्य पुस्य संयोग ॥रंग॥१॥ मधुरी मधुरी कही ए एकवीशमीजी, जयतती ढाल सुरंग ॥ पदवी पदवी उंची हो पामी पुण्य थीजी, क. तपुस्य नाम तिवं चंग ॥ रंग ॥ ११ ॥ ॥दोहा॥ ॥ कयवन्नो सुख जोगवे, सोनागी शिरदार ॥ माने श्रेणिक राजवी, माने अनय कुमार ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५२) ॥ ढाल बावीशमी ॥राग सोरठ ॥ निश्डी वैरण दुइ रही ॥ए देशी ॥ ॥ एक दिन मनमा चिंतवे, मंत्री पासे हो कयव नो शाह के ॥ देखो पापिणी मोसली, मुने काढयो दो राखी घर मांह के ॥१॥ अनयकुमर बुदिया गलो, बुदें जीत्या हो दाणवनें देव के ॥ माणस केहे मात्रमा, बुद्धि तूनी हो सही सरसती देव के॥यन ॥ ॥ बुद्धि बलें राज्य नोगवे, सदु शंके हो राणाने राय के । बुद्धियें सुरगुरु सारिखो, बु अमृत हो रसदूजणी गाय के ॥ अन॥३॥शाह जाणी मं त्रीनणी, कही वीतक हो सघली ते वात के॥ मंत्री सर बुद्धि केलवी, कीयो देवल हो धवलरंग नांत के॥ ॥अन॥४॥ चित्रामें थति चीतस्यो,नाम चरमुख हो कीधो मन कोड के ॥ मूरति मांझी यहनी, रूपें रूडी हो कयवन्ना जोड के ॥धन ॥ ५॥ नगर ढंढेरो फेरीयो, ए जागतो हो यह देव प्रत्यक्ष के॥ पूजो परचो एहनें, रोग टाचे हो लइ नोग समद के॥अन॥६॥ कयवन्नो मंत्रीसरू, बेद्ध उना हो मंझप मनरंग के ॥ नगरीनी नारी चली,टोलें टो लें हो ले सुतने संग के ॥बन० ॥ ७ ॥ बोरू था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) पे सदु नारिने, बोरु तेडी दो थावे दरबार के ॥ तु से सदु जात्रा कीयां, रूसे नायाँ हो नारी सुत नार के॥धन ॥ ॥ सघनी यावीमलपती, गावे वा वे हो करे जेठी जात्र के ॥ तवजे बापजी मत रूसे, मूके नैवेद्य हो थागत ते मात्र के ॥अन ॥ ए॥ हवे मोकरडी मांगडी, जालीदाथें हो मग मगती दा ल के ॥ चारे वढू साथै मली, चाजे आगे हो चार न्हाना बाल के ॥अन॥ १०॥ दलवें हलवें हालती, थावी पेठी दो सदु देवल मांदि के ॥ मूरती मोहन वे लडी, बेठी दीती हो मन धरीय नमाहि के॥यन॥ ॥ ११ ॥ प्रत्यक्ष कयवनो तिसो, रूप रूड़े हो नख शिख आकार के ॥ पंचरंग वाघो पहेरणे, काने कुं मल हो शोहे हियडे हार के ॥अन०॥१२॥ जो जोइ बहू चारे हसी,मन नलस्यो हो विकस्यो वती गात के ॥ नयणें नयण मला रह्यां, जोती करती हो करे सफली जात के ॥अन०॥ १३ ॥ ते सूरत मूर ति देखीने,मोसी पोसी दो जगदीशनी नाल के॥ पा पें शंके पापिणी, रखे लागे हो इहां कोई जंजाल के॥ ॥धन॥१४॥ हियडु दटक्युं नवि रहे, मुखें नाखे हो नीशासा नारि के ॥ नयरों नीर करे घj, जाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) टो हो मोतीनो दार के ॥धन ॥ १५ ॥ हियर्नु हेजें पूरी, नसें दीगे हो जरतार सरूप के ॥ ढाल बावीशमी जयतसी,मन मोयुं हो देखी रूप अनूप के ॥धन ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ रमता हसता खेलता, चारे न्हाना बाल ॥ मू रति पासें थावीया, हरख्या नयण निहाल ॥ १ ॥ ॥ ढाल त्रेवीशमी। बादु बलीनी॥ बालु दणरी चाकरी रे, बालु दखणीरो घाट ॥ साहिब पोढे जातिमा रे, धणनू बाले खाट ॥ नमर - लिंजालारां लेजो राज ॥ ए देशी ॥ बोले बालक बोलडा रे, मुण मुण मीठी वाणी॥क्युं बेग इहां श्रावीने रे, रूता मनरा दाणी ॥१॥को बाबाजी घरे आज्यो अाज, थाने माउ रोजीरी बाण, थाने दादोजीरी थाण, थेंतो म करो खांचा ताण, थेंतो नाशि वाया इण गण, यांने तेडी जास्यां प्राण ॥ तो० ॥२॥ कोई ताणे यां गुली रे, कोई ताणे हाथ ॥ कोई पग मूके नहीं रे, कोई घाजे बाथ ॥ कठो॥३॥ एक कहे बापो माहरो रे, बीजानें ये गाल ॥एक बेसे खोले भावीने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) रे, एक चुंबी ये गाल गोमा एक कहे नेला बे सीने रे, जिमगुं बापानी साथ॥ बीजो कहे जिमण न धु रे, देई मुख आडो हाथ ॥ ॥ ५॥ एक कहे खास्यां लाडुवा रे,एक कहे खीर खांम॥ एक कहे सीरा लापसी रे,महोटी थाली मांग ॥ को ॥६॥ एक कहे नेता बेसस्यां रे, आफै सघता आज ॥ बापो सदुनें सारिखो रे, एक पंथ दो काज ॥ कठो० ॥ ॥७॥न्हानडीयाने बोल. रे, लीधी सघली सार॥ कयवन्नो प्रगट हून रे, मंत्री बनयकुमार ॥ोगा ॥ ७॥ देखी धूजी ते मोकरी रे, वाय फकोल्युं ज्युं जाड ॥ मोसी पोसी बापडी रे, जाणे पडी चोरधा ड॥ कठो० ॥॥ धृतारी ते मोसती रे, घरथीका ढी कूट ॥ हरखी चारे पदमिणी रे,पाप कटथु ख बूट ॥ कठो० ॥ १० ॥ हेजें मली निज नाहमें रे,ट लीयां सुख दोहग ॥ बेटा चारे फूटरा रे,प्रगट्युज श सौनाग्य ॥कगे॥११॥ कयवन्नो सुख नोगवे रे, रमणी सात अनूप ॥ इंश चंद पण देखता रे, थाणे मनमां चूप ॥ को० ॥ १२ ॥ दानें तूसे देवता रे, दाने दोलत होय ॥ दान वडुं संसारमा रे,जश गावे सहु कोय ॥ कठो० ॥ १३॥ कयवन्ने सुख नोगव्यां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) रे, दान तणे सुपसाय ॥ नाम रघु त्रिदुं वनमा रे, मान्यो श्रेणिक राय ॥कतो० ॥१४॥ सखरी साते पदमिणी रे, नोगी नमर सुख लीन ॥ जयरंग ढाल शोहामणी रे, वीश उपर थश्तीने ॥ कठो॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥सीनो नीनो लीलमां, रहे सुखी दिन रात ॥ हवे सनिलजो चोंपलं, धरम करमनी वात ॥१॥ ॥ ढाल चोवीशमी॥ काची कली अनारकी रेहां, नमर रह्यो ललचाय ॥ मेरे ढोलणाए देश। ॥तिण कालें ने तिण समे रेहां, जंगम तीरथ जेह॥ श्रीमहावीरजी ॥ तीर्थ नाथ त्रिजुवन धणी रेहां, नांजे सयल संदेह ॥ श्री० ॥ १ ॥ पाप टले प्रनु पेखता रेहां, नाम तणे बलिदार ॥ श्री० ॥ चिं तामणि सुरतरु समो रेहां, वंबित फल दातार ॥ श्री० ॥२॥ सात हाथ प्रनु शोजता रेहां, धन्य जे लोचन दीठ ॥ श्री० ॥ चरण कमलनी रजें करी रेहां, करता पवित्र नूपीत ॥ श्री० ॥ ३ ॥त्रीश सहस सवि साधवी रेहां, चन्द सहस्स अगार ॥ श्री० ॥ गौतम स्वामी प्रमुख सहु रेहां, गणधर सा थें अगीयार ॥ श्री० ॥४॥ सती यतीश्वर महाव्रती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) रेहां, सखरो प्रनु परिवार ॥ श्री० ॥बे कर जोडी ना वयं रेहां, वंदना करुं वारंवार ॥ श्री० ॥ ५॥ कोडा कोडी के देवता रेहां, परिवरीया परिवार ॥ श्री०॥ पग तलें नव सोवन तणां रेहां,कमल रचे सुर सार ॥ श्री. ॥६॥ अति उँचो रतीयामणो रे हां,सहस जोयानो दंग ॥ श्री० ॥ गयणांगण ध्वज लहलहे रेहां, टाले कुमति पाखंग ॥ श्री० ॥ ७ ॥ ग्रामागर पुर विचरता रेहां, करता उग्र विहार ॥ श्री०॥ नग री राजगृही परिसरें रेहां, गुणशील वन डे सार ॥ श्री० ॥ ॥ नंदन वन सम शोहतुं रेहां,वेली र द मांझवा सार ॥ श्री० ॥ कोयलडी टदुका करे रे हां, नमर करे गुंजार ॥ श्री० ॥ ए॥ स्वामी यावी समोसस्या रेहां,निरवद्य सखरे गम ॥श्री॥ मलिया चनविद देवता रेहां, विरचे त्रिगडो ताम॥श्री॥१०॥ समवसरण शोहामणुं रेहां, तरु अशोक विकसंत ॥ श्री० ॥ चन्मुख चिहुँ सिंहासरों रेहां, बेठा श्री जगवंत ॥ श्री० ॥११॥ नामंगल पूठे नखं रेहां, दी पे तेज दिद॥ श्री०॥ तीन बत्र शिर शोनता रे हां, चामर ढाले इंद ॥ श्री० ॥ १२ ॥ वैर विरोध सहु उपशमे रेहां, रीजे सुणी सुविचार ॥ श्री॥ बेसे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) बारे परखदा रेहां, सफल करे अवतार ॥ श्री० ॥ ॥ १३ ॥ चोत्रीश अतिशय शोनता रेहां, वचनाति शय पत्रिीश ॥श्री॥ धर्म प्रकासे जगधणी रेहां,जग नायक जगदीश ॥श्री॥१॥ धन्य धन्य ते जग जीव डा रेहां, वाणी सुणी करे सेव ॥श्री॥ ढाल चोवी शमी जयतसी रेहां,नमुं चोवीशमो देव।।श्री॥१५॥ ॥दोहा॥ ॥हरण वानरनी परें, नरतां लांबी फाल ॥श्रे बिकने वधामणी, थावीदीये वनपाल ॥१॥श्रेणि क मनमां हरखियो, जिम घन आगम मोर ॥ मन वंजित वधामणी, दीधी तियांने जोर ॥२॥राजा श्र गिक दरखियो, हरख्यो अजय कुमार ॥ शाह कय वन्नो हर खियो, हरख्यां लोक अपार ॥३॥ ॥ढाल पच्चीशमी॥राग खमायची॥ महाराज . चढे गजराज रथ तुरियां ॥ ए देशी॥ ॥श्रीश्रेणिक महाराज, मनोरथ फलीया ॥नलें थाज या मो रंग रसीयां ॥ ए थांकणी ॥ जिनवर वंदन सजे सजाइ, उवटणां अंगें मलीयां ॥ अंजन मंजन स्नान सुगंधी, गंगाजल खल हलीयां ॥ श्री० ॥ ॥१॥ पहेंयां हीर चीर पटंबर, हियडे हार रलत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) लीयां ॥ चूया चंदन अंग विलेपन, केशर कपूर मृग मद तलीयां ॥श्री० ॥२॥ पंच रंग फूल ज्युं चंगा वाधा, कुंमल कानें मणि जडीयां ॥ सहस दल जाल तिलक अनोपम, शिरमुकुट सोवन घडीयां ॥ श्री० ॥३॥ बिटुं बांहे बहिरखा बांध्या, हाथें दो हथ सांकलीयां ॥ नंग जडित कनक मुदरडी, जलके दश कर अंगुलीयां ॥ श्री०॥४॥ पट हस्ती चडीचडयो मगधेसर, वड वडा जोधा साथै जुडीयां ॥ हय गय रह पायक परवरिया, जाणे इंश दल कप डीयां ॥ श्री०॥५॥ मेघामंबर शिर नत्र बिराजे, जब जब तेजें जलमलीयां ॥ निर्मल चंद किरण ज्यु धवलां, बिहुँ पासें चामर ढलीयां ॥ श्री० ॥ ६ ॥ फरहरे आगे नेजा ताजा, जुलमति घोडा हल ब लीयां ॥ याचक जय जय वाणी बोले, दाने माने दारिश दलीयां ॥ श्री० ॥ ७ ॥ नेरी नफेरी नादी न गारां, नवल नीशाने घान वलीयां ॥ वाजे वाजां गा ज अवाजां, ज्युं वरसालें वादलीयां ॥ श्री० ॥ ७॥ मोतीडे वधावे गलीये रती ए, गोरी रची रची गुह लीयां ॥ कोकिलकंठी मीठी वाणी, सोदव गावे सोह सीयां ॥ श्री० ॥ ए॥ धागें वांसे वहे दल वादल, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्युं वरसाले वाहलीयां ॥धूजे धरणी गिरिवर वड गढ, शेष नाग तो सल सलीयां ॥ श्री० ॥१०॥ दिशि दिशि देश नंगाणां पडीयां, सीमाडा सदु खल नली या ॥ केई नाता केई त्राग, केश नमीया श्रावी कति यां ॥ श्री० ॥ ११ ॥ साथें अंतेनर लीघां सघलां, श्रीयनय कुमर बुद्धि बलीया ॥ साथै साह वलीक यवन्नो, सदुको प्रनु वंदण चलीयां ॥ श्री० ॥१॥ के हयगया गयगया केश, केश पाला केई चडियां ॥ केई पालखीयें केई रथ बेता, जन सदु वंदण पर वरीयां ॥ श्री० ॥ १३ ॥ समोसरण देखत सदु वि कस्या, धन्य दिन थाज वखत वत्तीयां ॥ हरख हि लोला चित्त कनोला, चंद चाहे सिंधु नबलीयां ॥ ॥ श्री० ॥ १५ ॥ प्रातीहारज थावे पेखत, कुमति गरव गुमान गतीया ॥नव्य जीवारा पातक गलियां, ज्यं पाणीमें कागतीयां ॥ श्री० ॥ १५ ॥ हाथीथी उतरीयो राजा, धागें पालो दुई पलीयां, जिनवर द रिसए चाह धरता, ढोल नहीं दूर्वा हलफलीयां ॥ ॥ श्री० ॥ १६ ॥ एक रंग दूओ पांचे इंश्य, वली मुनिशुं हिली मिलीयां ॥ चलीया रती ए नगवंत नेट ए, जीव तणां वंदित फलीयां ॥ श्री०॥१॥ श्रीवीर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६१) जिनेसर नयणे दोग, सुःख दोहग दुरे टलीयां ॥ज यतसी ढाल कही पञ्चवीशमी, सुणतां हरख सुमंग लीयां ॥ श्री० ॥१७॥ ॥दोहा॥ ॥ पंचानिगम साचवी, श्रीश्रेणिक महाराय ॥ देश तीन प्रदक्षिणा,वांदे जिनवर पाय ॥१॥प्रयागल कर जोडीनें, बेठो श्रेणिक जाम ॥ नगर लोय पण वां दीने, सदु बेठां तिण गम ॥ ॥ जिनवर रूप शोहा मj, तन मन हुया लय लीन ॥ मगन दूधा जग ती न तिम, ज्युं पाणीमें मीन ॥३॥ ॥ ढाल बबीशमी ॥ करडो तिहां कोटवाल ॥ ए देशी॥ ॥नाव नक्ति मन थाणी, बेगथागे बारे परखदा जी॥योजन गामिनी वाणी, मीठी देवे जिनवरं देश नाजी॥१॥ समकित धर्मनुं मूल, समकित पालो या तम हित नणीजी॥थवर सहु थाक तुल्य,सुरतरु स रिखं समकेत नांखीयुंजी॥॥ देव नमो अरिहंत,गुरु गिरुवा श्रीसाधुसु वांदीयेंजी॥ केवलिनाषित तत्त्व, श्री जिनधर्म सूधो मन थापीयें जी॥३॥ श्रावकनां व्रत बार,थाठे प्रवचन माता साधुनीजीपालो निर तिचार, मनमा आणी सूधी नावनाजी ॥॥लाधो नरनव सार, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) दश दृष्टांतें सहेतां दोहोलो जी॥धारज देश अवतार, जिनधर्म लाधो एलेम हारजो जी॥५॥ ए संसार असा र, तन धन यौवन सघलां कारिमांजी ॥ कारिमो एप रिवार,स्वारथ राचे सदु को पापणे जी॥ ६॥ माता पिता सुत नार, ए पण सघला शत्रु पणुं नजेजी ॥ ज्ञातासूत्र विचार, वली रायपसेणी उपांगमेंजी॥७॥ चंचल नरजव थायु, जिम तरुवरचं पाकुं पानडुं जी ॥ उत्तराध्ययननी साख, मान यणी जिम पाणी बिं उन जा॥॥ विरुथा विषय सवाद, पांचे शय सब ल जगमा नडे जी॥ पामे जग विखवाद, एक एक ही परवश प्राणीयो जी ॥ए॥ देखी रूप पर्त ग, नादें मृगलो रस वश माबलो जी ॥ पामे रंग विरंग, नमरो वासें फरसें हाथीयो जी॥ १० ॥ शुन मतिशुं प्रतिकूल, फलकिंपाक समां फल जेहनां जी॥ नवतरुनां ए मूल, चार कषाय निवारो जिम त रो जी॥११॥म करो ममता संग, समता रसमां जीलो मल तजो जी॥ रमतां दया रस रंग, मन ग मतां सुख पामो शाश्वती जी॥१२॥ दान शोयल तप नाव, चारे गति बेदण चारे यादरो जी ॥ कूड Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६३ ) कपट रोषनाव, बोडो जोडो मन वैरागनुं जी ॥ १३ ॥ म करो पराइ तात, पारकी निंदा नारक गति दीये जी ॥ धर्म ध्यान दिन रात, पालो निर्मल व्रत नियम खाखडी जी ॥ १४ ॥ एकलो याव्यो जीव, परजवें प ए जाये एकलो जी ॥ तन धन सयण सदीव, सा थ न चाले को करणी विना जो ॥१५ ॥ ए संसार स्व रूप, जाणी प्राणी धर्म करो खरो जी ॥ जयतसी ढा ल धनूप, समजो बूको ए बवीशमी जी ॥ १६ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ जिनवर वाणी सांगली, प्रति बूऊया बहु लोक ॥ के श्रावक व्रत खादरे, केइ माहाव्रत जोग ॥ १ ॥ व ली विशेष जिन देशना, मीठी लागें जोर ॥ कयवन्नो मन हरखियो, जिम घन गाजे मोर ॥ २ ॥ याज म नोरथ सवि फल्या, याज जनम मुंज धन्य ॥ याज हू सुकृतारथो, इम उल्लस्यो कृतपुण्य ॥३॥ वांदी ने पूढे वली, मया करो महाराज ॥ में चुं दीधुं या चयुं, कहो पूरव जव खाज ॥ ४ ॥ लोकालोक प्र काश कर, केवल ज्ञान अनंत ॥ कयवन्ना यागल क हे पूरव जव विरर्तत ॥ ५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) ॥ ढाल सत्तावीशमी, राग सिंधूडो। एक लहरी ले गोरला ॥ ए देशी॥ ॥ शालीग्राम नामें गाम डे, नरी\ धण कण सूत॥ वसे तिहां एक गोवालिणी, मोसी एक तस पूत ॥१॥ दान धरम फल रूथडा,जश बोले सङ कोय ।। नगवंत नांखे स्वयंमुखें, दान समुं नहीं कोय ॥ दान ॥ ॥ धन पाखें ते मोकरी, करे परघर काम ॥ याथ पाखें बादर नहीं,पूढे न को नाम नाम ॥दा ॥३॥ बेटो बालक न्हानडो, करी न सके काम नेट ॥ चारे परायां वाबडा, नीट नरे एम पेट दा॥ ॥ ॥ परव महोत्सव एक दिने,रांधे घरघर खीर ॥ दीनां बालक जिमतां, दूळ मनमें दिलगीर ॥ दा०॥ ॥५॥ खीर जिमण मनसा थमांगे माताने तीर ॥ हम ले बेटो कहे, मा जिमण द्ये खीर ॥ दा०॥६॥ समजायो समजे नहीं, जाणे नहीं घर सार ॥ई बामण दमणी, नयए फरे जलधार ॥ दा० ॥ ७ ॥ मायडी कहे पूत माहेरा, घर नहीं कूशक नात ॥ ले करी तू सूकुं जिमी, बोडी दे खीर वात ॥ दा० ॥ ॥ ॥ कीडी मंकोडी त्रीया, हा गेडे नहिं बाल । रोवें थाडो मामीनें, बेडो मातानो जाल ॥दा॥॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) ॥ ए ॥ आवी पर नपगारिणी, पाडोसण मनी चार ॥ बाल रोवाडे क्युं रोइनें, पूड़यां कहयो सुविचार ।। ॥ दा॥१०॥ दूध दी) एकण त्रिया,बीजी शालि अखंम ॥ घी सुरहो त्रीजीयें दीयो, चोथी बूरा खां म ॥ दा० ॥ ११ ॥ खीर रांधी मीतीतिणे, मनीरू डी सान्निधि ॥ कारण सदु मलियां पडो, तरत दुवे काम सिदि॥ दा०॥ १२ ॥ बेसाडी बालक नणी, मामी थाली स्नेह ॥ अमिय नजर नरीमायडी,खोर परीसे तेह ॥ दा॥१३॥ यति नन्ही जाणीकरी, देश गरे फंक ॥ पण चतुराइबालनी, न पडे खीरमां थंक ॥ दा० ॥ १४ ॥ जननी कारण नपने, घरथी बाहिर जाय ॥ अचिरज एक दुळ तिसें, ते सुगजो चित्त लाय ॥ दा० ॥ १५॥ नवितव्यता वशे नीप जे, गुनागुन कारज सिदि॥ ढाल कही सत्तावीशमी, जयतसी निश्चल बुद्धि ॥ दा० ॥ १६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ नंच नीच कुल विहरतो, दीणदेह गुण गेह।। यतिथि एक आव्यो तिसें, जंगम तीरथ जेह ॥ १ ॥ पानं तरे ॥ चंच नीच कुल विहरता,मुनिवर महिमा पात्र ॥ पावि चना तेहनें घरे,जंगम तीरथ यात्र ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) ॥ ढाल अहावीशमी॥राग सोरठ ॥राणां राजसी हो, मेवाडा महीपति हो, चित्रोडा गढपति हो, राजा देजो थारां गढपतियांने शीख ॥ ए देशी॥ ॥ मास खमणने पारणे रे, सेतो गुरू थाहार॥ थाल्यो वखतें ताणिने रे, जलो हरख्यो बाल तिवार हो॥१॥ रूडा साधुजी हो, महोटा महंतजी हो, याज नसें अांगण्डे पानधास्या हो पूज्य ॥ ए अांक णी॥बेकर जोडी नतीने रे, वांदे ऋषिना पाय ॥ तन विकस्युं मन उन्नस्युं रे, वली हियडे हरख न माय हो ॥रू0 ॥२॥धादर मान दीये घj रे,धन्य धन्य तुंथ एगार ॥ मुख कमल तुज निरखता रे, महारो सफल दू अवतार हो ॥रू० ॥३॥ मुह माग्या पासा ढ व्या रे,दूधे वूग मेह॥ घर बेठ सद्गुरु मढ्यो रे,याज प्रगटी दि सिदि गेह हो ॥रू०॥४॥याज मनो रथ सवि फल्या रे,सुरतरु फलियो गेह ॥ पाप कटगुं पुण्य प्रगटीयुं रे,चड्यो हाथ चिंतामणि एह हो ॥रू० ॥ ५ ॥ सोवन पुरिषो चालतो रे, निर्मल नही दोष मात्र ॥ घरें बेां नेटा दूई रे,एतो जंगम तीरथ यात्र हो ॥ रू० ॥ ६ ॥ गंगाजलमा जोलतां रे,दुधां निर्म ल गात्र ॥ मनमोहन महिमानिलो रे, जलें नेट्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधु सुपात्र हो ॥रू०॥७॥ दोहिली सामग्री ते जडी रे, आज जाग्युं मुज नाग्य ॥ थालमांहे कीधी लोहटी रें, कीधा खीर तणा त्रण नाम हो ॥रू॥॥ बालक बोल्यो नावगुं रे,स्वामी वोहोरो खीर खंम ॥ मुनिवर पडयो मांमीयों रे,जाणे धरम रतननो करंम हो॥रू. ॥ए॥ वोहोरावे हवे पहेलडो रे, खीर नाग धरी राग॥ अल्प जाणीने वली तिणे रे, दीयो बीजो पण खीर नाग हो ॥रू० ॥ १० ॥ नत्तम पात्र दीगो नलो रें, जाग्युं तेहy नाग्य ॥ वोहोरावे नावें चढयो रे,वली खीर तणो त्रीजो नाग हो ॥रू०॥ ११॥ पात्र दान फल तेहनें रे,महोटुं होवण हार ॥ अंतराय होशे ना कह्यां रे, तिए साधे न कह्यो नाकार हो॥रू॥१॥ पाठांतरे ॥ पात्र दान फल रूअडु रे, मत होजो अंत राय॥णी परें ना न कही जती रे, पण लालच नहीं काय हो ॥ रू॥ १३ ॥ नाग्य योगें आवी मल्यो रे, उत्तम पात्र तत्काल ॥ दान दीधु तिणें तिण परें रे, पूवें थाल रह्यो सुविशाल हो ॥ रू० ॥ १४ ॥ चित्त वित्त पात्र त्रणे मल्यां रे, वायुं सुत्रे बीज ॥ पुण्य कल्पवृक्ष कगीयो रे, हवे नीपजशे फल बीज हो॥रू ॥ १५॥ नाव घणे ते साधुनें रे, बार लगे पढुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६८ ) चाइ ॥ करी वंदन पाटो वढ्यो रे, वली बेगे पाठो थाइ हो ॥ रु०॥ १६ ॥ जननी फरी यावी घरें रे, याली ते खाली देख ॥ तृप्तिकरण बालक जणी रे, वली खीर पोर से शेष हो ॥ रू० ॥ १७ ॥ मातने वात न का क ही रे, दीधुं बानुं दान ॥ फल तो तेहीज जोगवे रे, जे देश न करे गुमान हो ॥ रू० ॥ १८ ॥ देखी बालक जिमतो रे, माता चिंते घरी नेह ॥ एटली नूख खमे सदा रे, मुज धिग जमवारो एह हो । रू०॥ १९ ॥ न जर लागी माता तणी रे, दुइ मूर्ती ततकाल ॥ काल कियो शुन ध्यानमा रे, हवे पाभ्यो जोग रसाल हो ॥ रू० ॥ २० ॥ दान बानुं न रहे कदी रे, महके फूलनी वास ॥ कदे वूगे वटानडा रें, दुवे प्रगट्यो चंप्र काश हो ॥ रू० ॥ २१ ॥ दान सुपात्र दीयो सुणी रे, माता पाडोसा नार ॥ धनुमोदन करी ते हूइ. रे, ए तुज नारी चार हो ॥ रू० ॥ २२ ॥ उत्तम कुल तुं धवतस्यो रे, उत्तम दान प्रभाव | पुण्य कीधुं तें पूरवें रे, तिरों दु कृतपुष्य नाव हो ॥ रू० ॥ ॥ २३ ॥ त्रस्य नाग करी खीरना रे, दान दीयुं तिप मेल ॥ त्रण वेला ऋद्धि तें नदी रे पडी अंतराय तीन वेज हो ॥ रू० ॥ २४ ॥ नाव जलो खाली करी रे, दी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६ए ) जे अढलक दान ॥ वडबीज ज्युं फल-विस्तरे रे, वली लहीयें नोग प्रधान हो ॥रू०॥ २५ ॥ अनंत अनंत फल पामो रे,सुपात्र फले सुविशेष ॥ जयतसी ढा ल अहावीशमी रे, इणमें मीन न मेष हो ॥रू॥२६॥ ॥दोहा॥ ॥ पर उपगारी परमगुरु, संशय नंजण हार ॥ कयवन्ना बागें कह्यो, पूरव नव सुविचार ॥ १ ॥ सु णी पूर्व नव आपणो,दान तणां फल देख ॥ कयव नो नत्सुक थयो, धर्म करए सुविशेष ॥ २॥ ॥ढाल योगपत्रीशमी॥राग मारुणी ॥ राम लंकागढ लीनो, लइने बिनीषण दीनो॥ ए देशो॥ ॥ वीर तणी वाणी सुणी रे, मीठी अमिय समा न रे ॥ रंग नीनो साते धातडी रे, समज्यो चतुर सु जाण ॥ प्रतिबूजयो प्रति बज्यो हो कयवन्नो शाह ॥प्रति॥ जाणीने जिन मारंग सूधो, कयवन्नो शाह प्रति बज्यो ।ए थांकण॥१॥बे कर जोडी वीनवे रे, ए संसार असार रे ॥ तारो तारो प्रजो मुज नणी रे, लेश संयमनार रे॥॥॥ वीर कहे देवाणुप्रिया रे, मा प्रतिबंध करेह रे ॥ जीवितमां जाये घडी रे, पाबी नावे तेह रे ॥प्र० ॥३॥ अशुन फल आश्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) व तणां रे, नरक तणा दातार रे ॥ सखरां फल संव र तणां रे, पामीले नवपार रे॥प्र० ॥४॥ वीर जिनेसर वांदीने रे, पोहोतो निज घरवास रे ॥ पुत्र कलत्र मित्र मेलीने रे, बोले एम नन्नास रे ॥प्र० ॥ ५ ॥ सूधो धर्म में सर्दह्यो रे, जाग्यो अथिर संसा र रे॥धधर्मथी कुःख उपजे रे, धर्म दूए नहार रे ॥ ॥प्र०॥ ६ ॥ राग देष रूडा नहिं रे, कडुथा कर्म वि पाक रे॥ विषयसुख विष सारिखा रे, विरुया जेह वा याक रे॥३०॥७॥को केहनो नहिं जगतमां रे, कारिमु सगपण एह रे ॥ वेला न लागे विहडतां रे, तडके पडयो जेम त्रेह रे॥प्र०॥ ॥ वीर जिनेस र आगलें रे, हवे हूँ लेइश दीख रे ॥ इंम कही बेटो थापीयो रे, निजपाटें द शीख रे॥3॥ए ॥ साते खेत्रे वावीयुं रे, सखरे चित्ता बीज रे। तो जिम मेह धर्मनो रे, विण गाजे विण वीज रे ॥०॥१०॥ दीन दीनने निस्तस्या रे, ममियो देदेकार रे॥ यश न पाने करी पोषीया रे, पहिराया परिवार रे ॥ प्र० ॥ ११॥ सुकुलिणी साते मली रे, कहे प्रीतमने वा त रे ॥ तुम विण घर शोने नहीं रे, जिम चंद विहू एी रात रे ॥प्र०॥ १२॥ तुम तननी अमें बंगहडी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) रे,केहनां घर सुत बाथ रे ॥ दीक्षा लेशं तुमशं सही रे, सतीन तजे पियु साथ रे ॥३०॥ १३ ॥ दीदा महोत्सव मामीयो रे,आमंबर अति जोर रे ॥ वाजां वाजे अति घणां रे,जाणे गाजे घनघोर रे॥०॥१४॥ रंगरली सुवधामणां रे, धवल मंगलगीत गान रे ॥ चारित्र रमणी परणवा रे,जाणे चढे वर जान रे॥प्र० ॥१५॥ स्नान करी पखां जला रे, आनरणने य लंकार रे॥ सहस्त पुरुषनी वाहिनी रे,शीविका बेसी श्रीकार रे॥प्र०॥१६॥ सात नारी पाप घाउमोरे, राजगृहि नगर मोकार रे ॥ दीक्षा लेवा नीसयो रे, सा थे बदु परिवार रे॥प्र०॥ १७॥ नर नारी राजा प्रजा रे, मुख बोले धन्य धन्य रे ॥ इंम बाशीष सुणतो थ को रे, निर्मलतर तन मन्न रे ॥प्र० ॥ १७ ॥ तुरत श्राव्या वही पाघरा रे,समवसरण मकार रे ॥ पालखी थी जतस्या रे, नारीने जरतार रे ॥३०॥ १ ए॥ वीर जिनेसर दरिसणे रे, पायो हरख अपार रे॥पंचालिग म साचवी रे, विनयवंत सुविचार रे ॥प्र० ॥ २०॥ संचित अचितइन्य बोडीया रे, एकंत करी मनरंग रे॥ कर जोडी शिर चाढिया रे,कीधो उत्तरासंग रे॥प्र०॥ ॥ २१॥ वीर जिनेसर वांदीया रे,नारीशु सुविनीत रे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२ ) लोच करी प्रभु स्वहयें रे, लीधो दीरक पवित्त रे ॥ प्र० ॥ ११ पूरी सरस कहे जयतसी रे, ए कही नगरात्रोशमी ढाल रे ॥ कयवन्नो व्रत व्यादरे रे, वां चरण त्रिकाल रे ॥ २३ ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ जिनवर मुनिवर वांदीनें, राजा प्रजा बहु लोक ॥ सहु याव्या घर छापणें सुखें वसे शुभ योग ॥ १ ॥ कयवन्नो मदोटो जती, पाले सखरी दीख ॥ ग्रहणाने प्रासेवनी, शीखे हितधरी शीख ॥ २ ॥ चारित्र बेइ चोंपशु, पाजे निरतिचार || पांचे इंद्रिय वश करे, धन्य तेहनो अवतार ॥ ३ ॥ ॥ ढाल त्रीशमी ॥ राग धन्याश्री ॥ मो मनरो हेडाव हो मिसरि ठाकुर महिदरो ॥ अथवा ॥ नोलीडा हंसा रे विषय न राचीयें ॥ ए देशी ॥ ॥ चारित्र पाले हो सूधुं सिंह ज्युं, धन्य कयव नो साध ॥ यविरां पासे हो सूत्र जो जलां, शीखे खरथ अगाध ॥ चारि ॥ १ ॥ जयणा करतो दो चाले मारगें, कनो रहे जोइ जीव ॥ जयणासेंती हो बेसे पूंजीनें, सूतां जया सदीव ॥ चा० ॥ २ ॥ जयपासेंती हो मुख साधुं चवे, न वदे मिरषा वाद ॥ जया करीनें हो जिमे सूजतुं, जूखुं यन्न निःखाद ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) चा० ॥३॥ करे रखवाली हो नवे वाडनी,सखलं पा ले शील ॥ जिम रखवाले दो वनवाडी फले,माली पा सेंलील ॥चा॥॥ ममता निवारे हो समता आदरे, न करे संनिधि संच॥ तप जप किरिया हो खप या करी करे, पाले महाव्रत पंच॥ चा०॥ ५ ॥ दूषण टालें दो लाग्युं जाणीने, मिजामुक्कड देय ॥ खाम णां खामे हो पडिक्कमणुं करे, अतिचार बालोय ॥ चा० ॥ ६॥ मित्र शत्रु सरिखा हो माने साधुजी, तृ ए मणि कंचन काय ॥रज राज्य सरिखा हो लोन र ती नही, निकलंक काचने पाच ॥ चा॥9॥ जणि गुणीद हो ते श्रुत केवली, चौदे पूरव धार ॥ तर ए तारण हो ज्ञानी गुरु नलो, नहीं प्रमाद लगार ॥ चा०॥ सद्गुरु संशय होनांजे मन तणा, तु रत उतारे पार ॥ बलिहारी जान हो एहवा साधुनी, नाम लीयां निस्तार ॥ चा० ॥ ॥ संवेगी सोनागी हो वैरागी वडो, धन्य धन्य ए अणगार ॥ महावीर स्वामी हो वहथें दाखियो, गिणती चौद हजार ॥ चा॥१०॥ साधु गुण गातां हो ही उनसे,त्रीशमी ढाल रसाल ॥बे कर जोडी हो जयरंग इंम कहें, क. रुं वंदना त्रण काल ॥ चा० ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) ॥दोहा॥ ॥ कयवन्ने संयम ग्रह्यो, करतो उग्र विहार ॥ मासें करे मन रंगयुं, निर्दूषण थाहार ॥ १ ॥ ॥ ढाल एकत्रीशमी ॥ राग धन्याश्री ॥ सुण बेहेनी, पीयुडो परदेशी॥ ए देशी॥ . ॥ धन्य धन्य साधु नमुं कर जोडी,जेणे माया म मता बोडी जी॥ तप जप खप करी काया शोषी,होशे सिम पडोशी जी ॥ध॥१॥ महोटो मुनिवर श्रीकय वन्नो, धन्य धन्य सोवन वन्नो जी॥ घणां वरस लगें संयम पाली, दूषण सघलां टाली जी॥ ध० ॥ ॥ यतिचार बालोई नंदी, वीर जिनेसर वंदी जी॥थ ल्प पाउ जाणी नाणी,लियुं अनशन नाव आणी जी ॥ध० ॥ ३ ॥ चौराशी लख जीव खमावी,चि ढुं शरणे चित्त लावी जी ॥ सुरगति साहामा जोड्या हाथो, कुंण लीये नरकशुं बाथो जी ॥ध ॥४॥ पंमित मरणें कालज कीधो, चाल्यो परमहंस सीधो जी॥ नांग्या बदु नवनवना फेरा,दीधा सारथें मेरा जी ॥ध० ॥ ५ ॥ तेत्रीश सागर बायु नोगवशे, स वारथथी चवशे जी॥ माहाविदेहें नरनवलेशे, या करम तिहां दहशे जी॥ ध० ॥६॥ केवल पामी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५) पार उतरशे, अविचल शिव सुख वरशे जी ॥ धन्य कयवन्नो करी ए करणी, सुणतां दुवे पुण्य नरणी जी ॥ध० ॥ ७ ॥ जोगी नोगी या नर जाजा, पए ए सदु शिरराजा जी ॥ उत्तम साधु तणा गुण गाया, अनंत लान सुख पाया जी ॥ध० ॥ ॥ ॥ दान तणुं फल प्रत्यक्ष देखी, द्यो दान सुवि शेषी जी ॥ परें सूधी नावना नावो, ज्युं मन वं बित पावो जी ॥ध० ॥ए ॥ कवियण वचनें रच ना कीधी, सरस चौपै ए सीधी. जी ॥ मिहाडक्कड अधिके ने, में दीधो गुन शोचें जी॥ ध० ॥१०॥ संवत सत्तरशें एकवीशे, बीकानेर सुजगीरों जी ॥ आदीश्वर मूलनायक सोहे, नर नारी मन मोहे जी ॥ध० ॥ ११ ॥ ए संबंध रच्यो हित काजें, श्रीजिए चंद सूरिराजे जी ।। नएतां गुणतां बहु सुखदायी, सु जो चित्त लगाइजी॥ध० ॥१२॥ श्रीजिराचं सूरि सुखदाइ, सुरतरु साख सवार जी॥ वाचक श्री नयरंग विख्याता, वडवडा जस अवदाता जी॥ध. ॥ १३ ॥ विमल विनय तमु शिष्य बिराजे, वाचक अधिक दिवाजे जी ॥ श्रीधरम मंदिर वैरागी, तास शिष्य वड नागी जी॥ ध० ॥ १४ ॥ महोपाध्याय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) पदवी शोहे, संघ तणां मन मोहे जी ॥ सुगुरु पुण्य कलश गुन नामें,जाणीता गम गमें ज॥ध०॥१५॥ तास शिष्य जयतसी इंम बोले,नहीं कोई दानने तो ले जी॥ दान तणां फल दीसे चावां, दिन दिन अ धिक दीवाजा जी ॥धा१६॥ सरस ढाल न कोई पडती, त्रीश नपर एक चडती जी॥ पूरण सुगतां हियडु विकसे,धर्म करण मन उनसे जी ॥ध॥१७॥ इतिश्री कयवन्ना शाह शेठनी चोपाइ समाप्ता॥ ॥ इति कवि जयतसीहत श्री कया वना शाहनो रास संपूर्णः ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) ॥अथ वैराग्य सबाय प्रारंनः॥ - ॥श्रीसीमंधर साहेब सानलो ॥ ए देशी॥ ॥ कां नवि चिंते हो चित्त में जीवडा,यायु गले दिन रात ॥ वात विसारी रे गर्न तणी सवे,कुण कुण ताह। जात ॥कां ॥१॥ तुं मत नाणे रे ए सदु माहरां,कुए माता कुण तात ॥श्राप स्वारथ ए सदु को मल्या,मक र पराइ रे वातक॥शादोहिलो दिसे रेनव माणस तणो,श्रावक कुन अवतार ॥प्राप्ति पूरी रे गुण गिरुया तणी,नहीं तुज वारो वार ॥कां ॥३॥ पुस्य विहूणो रे कुःख पामे घj,दोष दीये किरतार॥आप कमाइ रे पू रव नव तणी, नवि संनारे गमार कां॥॥ कठिन कर्मने रे अदनिश तुंकरे,जेहना सबल विपाक॥हुँ नवि जापुंरे शीगत ताहरी,ते जाणेवीतरागकoयातुज देखतां रे जोने जीवडा, के के गया नर नार ॥ एम जाणवू रे निचे जाय,चेतन चेतो गमारकां०॥६॥तें सुख पाम्यां रे बहु रमणी तणां,अनंत अनंती रे वार॥ सब्धि कहे रे जो जिनगुंरमे,तो सुख पामे अपार ॥७॥ ॥अथ परस्त्रीत्याग सद्याय ॥ ॥प्रनु साथे जो प्रीत वांडो तो,नारीसंग निवारो रे।। कपट निपटने कामगारी॥निचे नरक उधारो॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 96 ) एहनी एह गत जाण ॥राजषि को संदेह आयो। एहनी॥ए आंकणं॥१॥ अबला एहवं नाम धरावे, पण सबलाने समजावे रे॥हरि हर ब्रह्म पुरंदर देवा,ते पण दास कहावें ॥एहनी॥शापगले पगले नाम पल टावे,श्वास उसासें जूदी रे॥गरज पडे त्यारे घेजी थाये, काम सरे-जाये कूदी रे ॥एहनी॥३॥ जंघा चोरी मांस खवाडे,तोय न थाये तेहनी रे ॥ मुखनी मीठी दिलनी रे जून,कामिनीन थाये केहनीरे॥एहनी॥॥करणी एहनी कहीन जाये, कामण तणी गति न्यारी रे॥ गायुं एहनुं जे नर गाशे,तेहने शिवगति वारीरे।एहनी॥५॥ जो लागी तो सर्वे लूंटे,रूती राक्षस तोलें रे॥श्म जाणी ने अलगा रेहेजो,नदय रतन इम बोलेरे॥एहनी॥६॥ ॥ अथ स्त्रीवर्कीन शिखामण सवाय ॥ ॥ धर्म नणी जातां धरा, वचमांहे पाडे वाट ॥ लहिलीए सर्व लूंटीने,व्रतनी जे वहे उवाट ॥ बला हो,बदु बहु बोली बाल, जे अबता उपाये बाल, जे वाघण्थी विकराल,जे थापे मरण अकाल ॥ब०॥॥ संसारे सदु सरिखं नहीं,जोडे वसंतांजोय॥ एक वांको एक पाधरो,बोस्डीयें कांटा जिम होय ॥ब०॥॥ बला बला सङ को कहे,बीजी बला बलवंत ॥ एजेवी एके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) नहीं, जे बलें पाडी उलंत ॥ब॥३॥आखाढो गाढोड व्यो,केई बट्या नर कोड ॥गुणवंतनुं पण नहीं गजु,जे हणमा लगाडे खोड ॥ ब० ॥४॥ नताले आकाशमा एक,आंखें नताले अनेक॥महीयें पग मंझे नहीं वली, नासे विनय विवेक॥ब०॥५॥जशोधर जिस्या जालमी, वली मुंज जिस्या महाराज ॥ पुण्यवंत परदेशी सारि खा,ते कांतायें दण्या निजकाज॥ब०॥६॥ जोरावर जंबु जिस्या,वंकचूल सरिखा वीर ॥ समर्थ थलिन सारि खा, जेहनां नारियें न उतास्यां नीर ॥ब॥७॥ शोल सती यादें थमहासती जग हितकार ॥ अनेकनर तेणें नइखा, रहनेमि आदें निरधार ॥॥॥ सुद शेन बलतां नवि बल्यो थयो केवल कमलाकंत ॥ पर मोदय पामे सही, जे पास एहने न पडंत ॥बनाए॥ ॥ अथ शीयलनी सद्याय ॥धणरा ढोला ॥ ए देशी ॥ ॥शीख सुणो पीन माहरी रे, तुजने कहूं कर जो ड॥धारा ढोला॥प्रीत म कर परनारीयुं रे,यावे पग पग खोड ॥१०॥ कडं मानो रे सुजाण, कर्वा मानो। वरज्यां लागो मारा ताल, वरज्या लागो, परनारीनो ने हडलो निवार ॥धणरा ढोला ॥१॥ जीव तपे जिम वी. जली रे,मनडुं न रहे गमाध॥काया दाद मिटे नहीं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७०) रे, गांठे न रहे दाम ॥०॥॥ नयणें नावे निड्डी रे, थाले पोहोर नदेग ॥ध०॥ गलीधारे नमतो रहे रे, लागुं लोक अनेक ॥ध०॥३॥धान न खाये ज्ञाप तो रे, दीतुं न रुचे नीर ॥०॥ नीसासा नाखे घणा रे, सांजल नणदीना वीर ॥ध ॥४॥जतलमें नि शि नीतरे रे,जूरी जूरी पिंजर होय ॥ध०॥ प्रेम त णे वश जे पडे रे,नेह गमे तव दोय ॥१०॥५॥ रात दिवस मनमा रहे रे, जिपणुं अविहड नेह ॥ध०॥ वीसाखा नवि वीतरे रे, दाजे क्षण क्षण देह ॥ध॥ ॥ ६ ॥ माथे बदनामी चढे रे, लागे कोड कलंक ॥ध ॥ जीवितना संशय पडे रे, जूवो रावण पति लंक ॥ध० ॥ ७॥ परनारीना संगथी रे, नलो न था ये नेत ॥ध ॥ जूवो कीचक नीमडे रे, दीधो कुंनी देव ॥ध०॥ ७ ॥ थाये संपट लालची रे, घटती जा ये ज्योत ॥ध० ॥ जीत न थाये तेहती रे,जिम राय चंप्रद्योत ॥ध०॥॥ परनारी विष वेलडी रे, विष फ ल नाग संयोग ॥ध ॥ आदर करी जे पादरे रे,ते हने नवनय शोग ॥ ध० ॥ १०॥ वाहाला माहारी वीनति रे, साची करीने जाण ॥धा कहे जिनहरष तुमें सोनलो रे, हियडे आणि मुजवाण ॥ध०॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa Internatianal For Personal and Private Use Only