________________
(२१) कोकिल मेघ ज्यु मोरध्वनि,दक्षिण पवनज ढुंति॥चंद किरण तंबोल रस, विरही ए न सहति ॥२॥उस्त ह वेदन विरहकी, साच कहे कवि माल ॥ जिकी जोडी विबडे, तिका कवण हवाल ॥३॥ एक यां ख्यां दीठां दहे, वाला दहे परदेश ॥ सऊन उर्जन बिहुँ दहे, हियडा कादु करेश ॥ ॥ नपर आंबा मो रोया, तले निफरणा जरंत ॥ साजन पाखें दीहडा, ताढा तोही तपंत ॥ ५॥ बाती मांहे शाल, दणद एमें खटके घणां ॥ करस्यां कवण हवाल, मलियां विण मटशे नहीं ॥६॥ जो जस तीनो होय, तो सा हेब वशरंजीयें ॥ घणुं अंधारूं तोय, मोर लवे धन गजीयें ॥७॥ नेदा लगरी नूख,नूलिए नांजे नहीं। देखीजें तो मुख, जो गाजागी तलमिले ॥ ७॥ जो नेटुं किरतार, करुं विनती थापणी ॥ अहो सरजण हार,औजम युंही जायसी॥॥ वयणा तणा विचार, नाखंतां नेद्या नहीं। सावजडा संसार,पातलीया नहीं पालनत॥१०॥ मुखके कहे कहावनें, कागदलखीन जात ॥ आपने मनगुंजानीयो,मेरे मनकी बात॥११॥ ___॥ ढाल पूर्वती ॥ सू०॥ कहेजो मुज बाशीष हो रेहां, कोडी. वरस प्रनु जीवजो ॥ मु॥ सू०॥ मत क
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org