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रजो मन रीश होरे हां, जनुं जाणो करजो जिकूं ॥ सु०॥ १६ ॥ सू०॥ हुँ थाहारी बलिहार होरे हां, कही 1 संदेशनें जावजो || सु०॥ सू०॥ वाट जोवा उनी बार होरे हां, कुशलें वेगा आवजो ॥ सु० ॥ १७ ॥ सू० ॥ सतीय शिरोमणि जाण होरे दां, सीता सती जिम निर्मली ॥ सु०॥सू०॥ जयतसी करे सुवखाण होरे हां, शीतलीला ढाल श्रामी ॥ सु० ॥ १८ ॥ || दोहा सोरठी ॥
॥ दीधी प्रापणी बांह, चोरी चडी कर मेलतां ॥ पण जिम तनरी बांह, तिम नवि राखी तो कन्हे ॥ १ ॥ फुरके मार्बु अंग, तिण अवसर नारी तणुं ॥ चिंते बाज सुरंग, सही मलशे मुज वालहो ॥ २ ॥
॥ ढाल नवमी ॥ राग मारु, सोरठमिश्र ॥ नलराजानें देश होजी लवंग हुता पलाणीया ॥ ए देशी ॥
॥ बेठी कांत ठाण होजी, नारी मन निश्चल की लाल ॥ ना० ॥ सुपि सुपि विरहिणी वाणि होजी, कुमर वज्राहत प्रति हूई लाल || कु० ॥ १ ॥ कुमर गयो घर मांहें दोजी, शौच धरंतो शंकतो लाल ॥ शौ० ॥ चंं ग्रह्मो ज्युं राहु होजी, मुख विजखे बबी शोनती
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