________________
डो न करे सार,कुःखी रहे जीवडो॥ सा ॥३॥ मु जणुं न करे राग, वैरागी सारीखो ॥ सा० ॥ जोग स जाइ बोडी, जोगीसर आरोखो ॥ सा॥४॥ करे विद्या अन्यास, ए पोथी पिंमीयो॥ सा० ॥ न रहे घरमा जाणी, वटान हिंमीयो ।सा॥५॥ ढुंतो सुगंधी जाइ, नमर नहीं जोगीयो ॥सा॥ मुजने न माने नाह, रहे वियोगीयो । सा० ॥ ६ ॥ जले सुरंगी देह, सु यौवन जागीयो ॥ सा ॥ हुँ कुलवंती नारी, नाह नीरागी यो । सा० ॥ ७ ॥ दूई चिंताजोर, के काली कोयली॥ सा॥ सखी सहेली साथ,हसे दुं दोहलीसा॥ नयणे नावे निंद, के सूतां सेजड़ी।सा॥ जांखर थ जूरी जूरी, हुँ रत खेजडी ॥ सा० ॥ एराचे न रूप सरूप, खल गुल सारिखो ॥ सा॥ समजे न संसार वात, जोयो में पारिखो। सा० ॥ १०॥ ए नहीं ब यल बबाल, बयलमां पूतडो॥ सा॥ न रुचे सरस सवाद, जाणे नई नूतडोसा॥११॥ जातां न कहे जाने, श्रावो नहीं आवतां॥ सा० ॥ नहीं नयणानुं हेज, न खाता पीवतां ॥ सा० ॥ १२॥धापणी जांघ नघाड, करुं नहीं लाजती॥सा ॥ थां धागें कही वात, बीजागुंजाजती ॥ सा०॥१३॥ वदूधरना बहु
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org