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(४) रण वन राउल देवलें रे, वाल न वांको होय रे ॥ तोरे ॥१०॥ श्म जाणी साचु बोलीयो रे, कहे के दोइ एम रे॥ कयवन्नासुत पासथी रे, रतन लीयुं में प्रेम रे । तोरे० ॥११॥साच वचन मुख बोलतां रे, जग संघलुं वश होइ रे ॥ श्म सुणी राजा श्रेणिके रे, बोडयो तेह कंदो रै॥ तोरे० ॥ १२॥धन्य धन्य जे साधु चवे रे, तिणरे कोइ न तोलें रे॥ वीश विश्वा ढाल वीशमी रे,मीठी जयतसी बोले रे॥तोरे॥१॥
॥दोहा॥ - बूटो साच पसायथी, हवे कंदोई तेह ॥ कुशलें खेमें भावीयो, रंगरली निज गेह ॥ १ ॥ श्रीश्रेणिक राजा हवे, मनमा करे विचार ॥ में बोली वाचा ति का, विघटे नहीं संसार ॥२॥ साधु सतीने सूरिमा, ज्ञानी अरु गजदंत ॥ उलटी पू- नहीं फरे, जो जग जाय अनंत ॥ ३ ॥ पहिला बोले बोलडा, पळी न पाले जेह ॥ खाणो ते नर लहे,सिंधू साटुं जेह ॥॥ वाचा अविचल पालवा,मंत्री अजय कुमार ॥ घर मू की तेडावीयो, कयवन्नो दरबार ॥ ५॥ पुम्याइ प्रग टी थश्याव्यो शाह कतपुस्य ॥ राजाने पायें पडयो, सद्ध बोजे धन्य धन्य ॥६॥ पूबी गाबी वारता,जाम्यो
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