________________
( ३६ )
प्रायो रे, जडी राखे घरबारो ॥ जड़ी राखे घर बार रे खडकी, मांहेथी बोले तडकी जडकी ॥ रहे घर बा हिर सहुको खडकी, जोगी जती सहु जावे नडकी ॥ जी० ॥ १७ ॥ चौदमी ढालें जयतसी रे, वहां वे ससने दो || मनमांहें एम चिंतवे रे, विषवेलि विरती एहो । विषवेली विरती एह रे सासु, ए नर निर्मल ज्युं ज ल सुं ॥ जीव ने माहारो ए नहीं फासु, मनरंग रा तो फूल ज्युं जासु ॥ जी० ॥ १८ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ सुणी सासुना बोलडा, उपन्युं दुःख अपार ॥ चारे वढू मली सामटी, करे थालोच विचार ॥ १ ॥ सासु हूई श्वानणी, विरती करे बिगाड ॥ यापें किम बांमी शकां, बार वरसनां नाड ॥ २ ॥
॥ ढाल पंदरमी ॥ हमीरियानी देशी ॥
॥ वद्वार हली मली वीनवे, प्रीतम केम माय ॥ सासूजी ॥ बार वरसनी प्रीतडी, जीव रह्यो रंग ला य ॥ सा० ॥ वहू० ॥ १ ॥ पहेलो पोतें तें कीयो, स बल अन्याय काज ॥ सा० ॥ घरघरणें घर राखीयुं, कीधी न कुलनी लाज ॥ सा० ॥ वहू० ॥ २ ॥ जाई प रायें घर वस्यो, गरज सरी कोड लाख ॥ सा० ॥ का
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa International
www.jainelibrary.org