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(१४) ॥ ढाल सातमी ॥ अलबेलानी देशी ॥ ॥ हवे ते अक्का मोकरी रे लाल, बेटी कहे ते डि ॥ सुविचारी रे ॥ कयवन्नो निर्धन दुळ रे लाल, बांम तुं एहनी केडि ॥सु०॥१॥ माने वात तु माहरी रे लाल ॥ म करे एहनो संग ॥सु०॥ रहेजे रीश जरी रूशणे रे लाल,करजे रंग विरंग ॥
सुमा ॥२॥ माल विना ए मुथा जिस्यो रे लाल दीगे न थावे दाय॥सु॥ अखट ए असुहामणो रे लाल, काढीश कूटी धकाय ॥सु० ॥ मा० ॥३॥ व्यसनीने वेषरची वली रे लाल, मरे न बोडे मंच ॥सु० ॥ स्वारथ विए किए कामनो रे लाल, नगलो कर संच ॥सु॥ मा०॥॥ किण किणनें चीतारस्यां रे लाल,लख आवे लख जा य ॥सु०॥ नाई मूमे नव नवा रे लाल,वेश्या गिगि खाय ॥९॥मा॥ ५ ॥ कहे बेटी सुणो मातजी रे लाल,ए सुकुलीण सुजात ॥सु०॥ नेह न बूटे एहनो रे लाल, पडी पटोले नात ॥९॥ मा० ॥ ६ ॥ मन मान्यो ए माहरे रे लाल, बीजो नावे दाय ॥९॥ जिम नयणां विच पूतली रे लाल, तिम तन मनने सुहाय ॥ सु०॥ मा० ॥ ७ ॥ लागो रंग मजीठनो रे लाल, बगेह लागे जिम जीत ॥सु०॥ वलगी रहें वेली
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