________________
(२४) ॥ ढाल दशमी ॥ वधावो हे सुहव गावगुं॥ अथवा, अयोध्या हे राम पधारीया ॥
अथवा ए देशी॥सीयालानी देशी॥ ॥ बाज वधाको माहरे, बाज जाग्युं हे सखि मा दरूं नाग्य के ॥पायुडो हे घरें यावीयो ॥ए यांकण। सुख दोहग दूरें टव्यो,आज पायो हे सखि सुख सौ नाग्य के ॥पी॥९॥ सुंरतरु फलीयो घांगणे, बाज दूधे हे सखि वूठा मेह के ॥ पी०॥ मुह मांग्या पासा ढल्या, आज उल्लती हे सखि देह सनेह के ॥पी॥ ॥॥ तप जप व्रतनी खडी, आज दूया हे सखि पूरा सूंस के पी०॥ तूग गुरुनें देवता,याज पूगी हे सखि मननी हूंश के पी॥३॥ धन्य वेला धन्य ए घडी, बाज धन्य धन्य हे सखि दिवस उमाह के ॥ पी० ॥ बार वरसने बेहडे, मुज मलियो हे सखि विड डयो नाह के पी॥४॥ मोतीय. वधावीयो,गोरी गावें हे सखि मली मती गीत केपी॥ वर मांझणे घर मांमीयुं, रंग चीतवा हे सखी नीत सचित्त के ॥ पी० ॥ ५॥ विच विच दीये उत्संनडा, सदु काढी हे सखि मननी नास के॥पी०॥ नाह मल्यो आज मा दरो, रंग रतीयां हे सखि तील विलास के॥पी० ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org